कांग्रेस में स्वीकार्य चेहरा बन उभर रहीं प्रियंका, संकटमोचक की भूमिका में भी फिट
हाल ही में जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पार्टी पर निशाना साधा, तो उत्तराखंड संकट को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी ने कदम बढ़ाया और बातचीत से असंतुष्ट नेता को शांत किया.
highlights
- यूपी कांग्रेस में जान फूंकने में निभाई बड़ी भूमिका
- आंतरिक कलह वाले राज्यों में भी सुलझाए कई पेंच
- विधानसभा चुनाव बाद पार्टी में बड़ी भूमिका संभव
नई दिल्ली:
अगर हालिया उत्तराखंड घटनाक्रम या उसके ठीक पहले पंजाब संकट को आधार बनाएं, तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) पार्टी के भीतर संकटमोचक बन कर उभर रही है. तमाम बड़े निर्णयों में प्रियंका की राय-शुमारी की जा रही है. कह सकते हैं कि कांग्रेस में संकटमोचक बतौर विख्यात रहे अहमद पटेल की जगह वह ले सकती हैं. इस संभावना को इससे बल मिलता है कि प्रियंका पार्टी के भीतर भी असंतोष को दबाने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. संभवतः यही वजह है कि कांग्रेस नेता अब उनके पास फरियाद लेकर भी पहुंच रहे हैं. पार्टी भीतर ऐसे कयास लग रहे हैं कि प्रियंका को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव बाद कोई बड़ी भूमिका दी जा सकती है.
हालिया उत्तराखंड संकट को सुलझाने में भी सक्रिय
गौरतलब है कि हाल ही में जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पार्टी पर निशाना साधा, तो उत्तराखंड संकट को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी ने कदम बढ़ाया और बातचीत से असंतुष्ट नेता को शांत किया. यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी के अलावा प्रियंका ने पार्टी में संकट को कम करने के लिए प्रबंधक की भूमिका का निर्वहन किया है. उन्होने पंजाब में पिछले दिनों उपजे राजनीतिक संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अमरिंदर सिंह को हटाने और नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में स्थापित करने के पीछे उन्हीं की अहम भूमिका थी. इसके बाद जब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ असंतुष्टों ने मोर्चा खोल दिया, तो उन्होंने राहुल गांधी के साथ मिलकर प्रदेश सरकार में सचिन पायलट के वफादारों को समायोजित करने के लिए अशोक गहलोत पर दबाव बनाया था.
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यूपी चुनाव बाद बड़ी भूमिका की संभावना
राजनीतिक पंडितों को भी लगता है कि उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद कांग्रेस को प्रियंका गांधी को एक बड़ी भूमिका की पेशकश करनी होगी. यह इस लिहाज से भी जरूरी है क्योंकि जो नेता राहुल गांधी के साथ तारतम्य रखने में अपने आपको असहज मानते हैं, वे अपनी बात प्रियंका गांधी से खुले मन से कहते हैं. इसके अलावा असंतुष्ट नेताओं और जी-23 समूह के नेताओं को साधने में भी वह मुख्य भूमिका निभा सकती हैं क्योंकि जिस प्रकार लखीमपुर खीरी घटना के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में इस मामले को उठाया वह कांग्रेस की छवि सुधारने में काफी हद तक बेहतर रहा क्योंकि अन्य पार्टियों को भी इस मसले को उठाना पड़ा था. इसके लिए राजनीतिक क्षेत्र में प्रियंका गांधी की जोरदार तारीफ भी हुई.
लखीमपुर खीरी मसले में लिया स्टैंड
प्रियंका गांधी ने इतने कम समय में ज्वलंत मसलों को उठाकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदगी का अहसास लोगों को करा दिया और पार्टी को इसका फायदा भी आगामी विधानसभा चुनावों में मिल सकता है. पार्टी उन्हें भविष्य के चुनावों में स्टार प्रचारक के रूप में देख रही है और उनका, 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' उद्घोष देश में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है. प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाने में उनका अभियान काफी सार्थक सिद्ध हुआ है और पार्टी इसे भाजपा की धर्म तथा जाति आधारित राजनीति के जवाब में देख रही है.
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लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के लिए किया बसों का इंतजाम
जिस समय कांग्रेस महासचिव प्रचार अभियान में उतरी उस समय देश का ध्यान कोविड महामारी की ओर था फिर भी हाथरस और सोनभद्र मामले को जोरदार तरीके से उठाकर उन्होंने अपने विरोधी खेमे को अपनी ताकत का अहसास करा दिया. जिस समय लोग कोरोना के कारण अपने अपने प्रदेशों को लौट रहे थे, तो उस दौरान उन्हें उनके घरों तक भेजने के लिए प्रियंका ने बसों का इंतजाम कराकर प्रभावित लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने की पेशकश कर दरियादिली का परिचय दिया. किसान आंदोलन के दौरान भी वह सबसे आगे रहीं, लेकिन फिर देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर बरपा और लोगों को लॉकडाऊन का सामना करना पड़ा.
पार्टी अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाने की भी उठ रही मांग
अगले साल की शुरूआत में उत्तराखंड और पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं और इसे देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व इस बात पर बहस कर रहा है कि क्या प्रियंका को पार्टी में अधिक बड़ी या राष्ट्रीय स्तर की भूमिका सौंपी जानी चाहिए. इस मुद्दे पर कांग्रेस के कई नेता सामने आ रहे हैं और ऐसे ही एक शख्स हैं आचार्य प्रमोद कृष्णम, जो कहते रहे हैं कि प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए. इसके अलावा कईं अन्य नेता जो राहुल गांधी के कामकाज से खुश नहीं हैं, उनका सुझाव है कि सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष के पद पर बरकरार रखा जाए और प्रियंका को उत्तर भारत का प्रभारी उपाध्यक्ष बनाया जाना चाहिए.
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राहुल की तुलना में सहज छवि
जब कांग्रेस पर नेतृत्व का संकट आया, तो सोनिया गांधी की सहायता के लिए नेताओं की एक टीम सामने आई थी. पिछले साल सितंबर में एके एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक और रणदीप सिंह सुरजेवाला को लेकर एक समिति बनाई गई थी. अहमद पटेल की मृत्यु के बाद हालांकि समिति की कभी-कभी बैठकें होती रही हैं. कांग्रेस के संविधान में उपाध्यक्ष के लिए कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अतीत में राहुल गांधी, अर्जुन सिंह और जितेंद्र प्रसाद इस पद पर थे. कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी के काम करने का अंदाज बहुत ही सहज है. वह लोगों की बातों को बहुत ध्यान से सुनती हैं और इसी खूबी के कारण उन्होंने राजस्थान और पंजाब के संकट को हल करने की दिशा में वहां के असंतुष्ट नेताओं की बातों को भी सुना था.
विधानसभा चुनावों में बड़ी जिम्मेदारी संभव
कांग्रेस इस समय उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और गुजरात में अंदरूनी कलह में फंसी है. इन राज्यों में 2022 में चुनाव भी हैं, जबकि मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होने हैं. इसे देखते हुए अगर उन्हें पार्टी संगठन में बड़ी भूमिका दी जाती है तो यह पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. कांग्रेस में कुछ नेताओं का यह मानना है कि राहुल गांधी बिना किसी पद के भी पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं. इन नेताओं का कहना है कि वह विभिन्न मुद्दों पर सरकार पर निशाना साधते रहे हैं. यहां तक कि उनके आलोचक भी कोरोना महामारी और आर्थिक संकट जैसे मसलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार किए गए हमलों के लिए उनकी साख को स्वीकार करते हैं.
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