नए सेना प्रमुख ले. जनरल मनोज पांडेय को इन चुनौतियों का करना होगा सामना
लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने देश के 29वें सेना अध्यक्ष के रूप में पद संभाल लिया है. उनका कार्यकाल 2 वर्ष से अधिक को होगा. हालांकि, इस दौरान उन्हें कई गंभीर स्थितियों का सामना करना होगा. इसमें धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में उपजे हालात, भारत-चीन सीम विवाद, कोविड 19 की वजह की रुकी हुई सेना की भर्ती को फिर से शुरू करने के साथ ही गुणवत्ता पूर्ण स्वदेशी हथियारों और नई तकनीक सेना में शमिल कर देश को और सुरक्षित बनाने की अहम जिम्मेदारी है.
highlights
- नए सेना प्रमुख को गंभीर चुनौतियों का करना होगा सामना
- 3 वर्ष से सेना में रुकी भर्ती को फिर से करना होगा शुरू
- पाकिस्तान और चीन के साथ भी तनाव को करना होगा कम
नई दिल्ली:
लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने देश के 29वें सेना अध्यक्ष के रूप में पद संभाल लिया है. उनका कार्यकाल दो साल से अधिक को होगा. हालांकि, इस छोटे से कार्यकाल में ही उन्हें कई गंभीर स्थितियों का सामना करना होगा. इसमें धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में उपजे हालात, भारत-चीन सीम विवाद, कोविड 19 की वजह की रुकी हुई सेना की भर्ती को फिर से शुरू करने के साथ ही गुणवत्ता पूर्ण स्वदेशी हथियारों और नई तकनीक सेना में शमिल कर देश को और सुरक्षित बनाने की अहम जिम्मेदारी उनके सिर पर है. आइए जानते हैं नए आर्मी चीफ मनोज पांडे को किन-किन चुनौतियों से होना पड़ेगा दो चार...
लद्दाख मुद्दे का निकालना होगा हल
भारत और चीन के बीच तकरीबन दो वर्षों से लद्दाख में तनाव की स्थिति बनी हुई है. दरअसल, पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों ने सेनाओं की तैनाती में इजाफा कर रखा है. दोनों देशों के बीच सैन्य तैनाती 3 बार में कम की जा चुकी है. हालांकि, अब भी सीमा पर 50 से 60 हजार सैनिकों की तैनाती है. यहां गलवान, पैंगोंग और गोगरा में तनाव की स्थिति अब भी बरकरार है. तनाव कम करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं के बीच 15 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अब भी विवाद को कोई हल नहीं हो सका है. ऐसे में नए सेना प्रमुख के तौर पर मनोज पांडे के सामने चीन से तनाव को कम करने की बड़ी चुनौती है.
थिएटराइजेशन पर भी करना होगा फोकस
देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत सेनाओं के थिएटराइजेशन पर काम कर रहे थे, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है. खासतौर पर भविष्य के युद्धों और तकनीकों में तेजी से हो रहे बदलाव के लिहाज से यह जरूरी है. सेना के पास मौजूद अब तक के प्लान के मुताबिक 4 कमांड्स का गठन होना है. मौजूदा मॉडल के तहत दो लैंड थिएटर कमांड, एक एयर डिफेंस कमांड और एक मैरीटाइम कमांड स्थापित होनी है. बताया जाता है कि इसी महीने तीनों सेनाओं की ओर से थिएटराइजेशन पर रिपोर्ट सौंपी जा सकती है. अब उस पर सेना प्रमुख के रूप में जनरल मनोज पांडेय को ही फैसला लेना होगा.
स्वदेशी हथियारों में आत्मनिर्भरता बनेगी चुनौती
नए सेना प्रमुख मनोज पांडे की नियुक्ति ऐसे वक्त में हो रही है, जब सरकार सेना को हथियारों के मामले में स्वदेशी हथियारों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही है. सरकार ने चरणबद्ध तरीके से 310 हथियारों के आयात को प्रतिबंधित कर चुकी है. दरअसल, पिछले 2 वर्षों से सरकार का पूरा फोकस इस बात पर रहा है कि भारतीय सेना हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर बन सके. लिहाजा, नए सेना प्रमुख पर विदेशी हथियारों की खरीद को कम करने और गुणवत्तापूर्ण स्वदेशी हथियारों को भारतीय सेना में शामिल करना भी एक चुनौती है. गौरतलब है कि यूक्रेन जंग के चलते रूस पर काफी पाबंदियां लगी हैं और इससे भारत के आगे भी हथियारों के आयात को लेकर चुनौती पैदा हो गई है. गौरतलब है कि रूस पर अमेरिका ने बड़े पैमाने पर पाबंदियां लगा दी हैं.
धारा 370 के बाद जम्मू कश्मीर में उपजे हालात से निपटना होगा
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में आतंकी वारदात में इजाफा हुआ है. यहां आए दिन सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की खबरें हर दूसरे दिन आती रहती है. ऐसे हालात में नए सेना प्रमुख की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि कैसे लोगों में देश और सुरक्षाबलों के प्रति विश्वास पैदा किया जाए, ताकि इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हो और ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आतंक के रास्ते से अलग कर समाज के मुख्य धारा में लाना होगा.
सेना में रुकी हुई भर्ती को फिर करना होगा शुरू
पिछले साल यानि 2021 तक के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारतीय सेना में 7476 अधिकारियों की कमी थी. यहां उन कमीशंड अधिकारियों की बात हो रही है, जो लेफ्टिनेंट के तौर पर भर्ती होते हैं और जनरल के ओहदे तक पहुंचते हैं. यानि ऐसे अफसर जो अपने कार्यकाल में टुकड़ियों, यों बटालियनों, नों ब्रिगेड और विभिन्न सैन्य कमांड के नेतृत्व से लेकर सेनाध्यक्ष तक बनने के पात्र हो सकते हैं. ऐसे महत्वपूर्ण पदों में से थल सेना में 7476 पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा थल सेना में जवानों और जेसीओ के 97177 पद खाली पड़े थे. इसके लिए कुछ हद तक परिस्थितियों का दोष माना जा सकता है, लेकिन बड़ी वजह सरकार की वर्तमान अनिर्णय वाली नीति ज़िम्मेदार है. दरअसल, 2019 में कोविड-19 जनित कोरोना वैश्विक महामारी में तब्दील होने के बाद वायरस संक्रमण को रोकने के लिए देश में तालाबंदी कर दी गई. लिहाजा, सेना में जवानों की भर्ती भी रोक दी गई. शुरुआती दिनों में तो संक्रमण फैलने से रोकने के हिसाब से और आवाजाही के संकट आदि व्यवहारिक कारणों से ये रोक ठीक लगी, लेकिन ये रोक अब भी लगी हुई है. ऐसे में सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में सेना प्रमुख की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे किस तरह से सेना भर्ती प्रक्रिया शुरू कर पाते हैं. दरअसल. भारत की 12-13 लाख नौकरी वाली सेना में हरेक साल तकरीबन 60 हज़ार के आसपास फौजी रिटायर होते हैं. क्योंकि सेना को युवा भी रखना होता है. ऐसे में तीन साल तक भर्ती रुकने से सेना में बड़े पैमाने पर जवानों की कमी होने से सेना की ताकत और कार्यक्षमता प्रभावित होगी. लिहाजा, नए सेना प्रमुख के सामने इस समस्या से जल्द से जल्द निपटना होगा.
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युद्ध के लिए रहना होगा तैयार
इस वक्त पूरी दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी है. रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की दुर्बल स्थिति सामने आई है. ऐसे में ताकतवर देशों के बेलगाम होने की आशंका है. लिहाजा, पाकिस्तान और चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत को भी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. गौरतलब है कि पूर्व सीडीएस दिवंगत जनरल बिपिन रावत अकसर ढाई मोर्चे की युद्ध की बात करते थे. इसके तहत वह चीन को दुश्मन नंबर एक मानते थे और पाकिस्तान को दूसरे नंबर पर रखते थे, इसके अलावा आधी लड़ाई देश में फैले माओवाद और आतंकवाद से आधी लड़ाई की बात करते थे. ये हालात आज बी जस के तस बने हुए हैं.
इसका एहसास ले. जनरल मनोज पांडेय को भी है. यही वजह है कि पदभार संभालने के बाद मीडिया से बात करते हुए खुद उन्होंने भी इस ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि उनकी सबसे पहली प्राथमिकता रणनीतिक तैयारियों के उच्च मानकों को सुनिश्चित करना होगा. जिससे कि आने वाली चुनौतियों से निपटा जा सके. उन्होंने कहा कि हमारा जोर सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और आधुनिकीकरण पर होगा. इसके अलावा हम नवीनतम तकनीकों से लाभ उठाकर भारतीय सेना को और मजबूत करेंगे.
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