logo-image

नेपाल की बदली सुर-लय-ताल से चीन में मची खलबली

चीन ने एक साथ दो काम किए. पहला, भारत पर जासूसी का आरोप मढ़ा. दूसरे, अपने पुराने मित्र पुष्प कमल दहल को भारत के सामने लोकतंत्र की दुहाई देने को मजबूर कर दिया. इस बीच ओली के भारत दौरे की भी चर्चा है.

Updated on: 30 Dec 2020, 03:29 PM

नई दिल्ली:

भारत विरोधी अड़ियल रुख पर अड़े नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली ने संसद भंग कर सियासी तूफान ला खड़ा किया है. इससे न सिर्फ नेपाल की अदरूनी राजनीति बल्कि उसे कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रही चीन सरकार के भी हाथ-पांव फूल गए हैं. ओली ने यह फैसला तब लिया जब नरम रुख अपनाते हुए वह भारत संग दोस्ती का हाथ बढ़ाने के संकेत दे चुके थे. ओली के इस दांव से बौखलाए चीनी प्रशासन ने आनन-फानन में अंतरराष्ट्रीय विभाग के उप मंत्री के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल काठमांडू भेज दिया. हालांकि बात बनी नहीं तो चीन ने एक साथ दो काम किए. पहला, भारत पर जासूसी का आरोप मढ़ा. दूसरे, अपने पुराने मित्र पुष्प कमल दहल को भारत के सामने लोकतंत्र की दुहाई देने को मजबूर कर दिया. इस बीच ओली के भारत दौरे की भी चर्चा है. ऐसे में फिलहाल नेपाल के हालात बेकाबू हैं और आम जनता सड़कों पर उतरी हुई है. 

दो धड़ों में बंटी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पिछले रविवार को अचानक से संसद को भंग कर दिया था. उनके इस फ़ैसले से सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी दो खेमों में बंट गई. एक धड़े का नेतृत्व प्रधानमंत्री ओली कर रहे हैं और दूसरे धड़े का पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल 'प्रचंड'. जानकार मानते हैं कि चीन को नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी का इस तरह बंटना ठीक नहीं लगा. यही वजदह है कि रविवार को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विंग के उप-मंत्री गुओ येझाओ एक उच्चस्तरीय टीम के साथ नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे. उन्होंने अलग-अलग धड़ों से बात की, लेकिन कोई सम्मति बन नहीं सकी.

यह भी पढ़ेंः  रक्षामंत्री राजनाथ बोले- चीन की विस्तारवाद की नीति का देंगे जवाब

चीन ने फिर मढ़े भारत पर झूठे आरोप
ऐसे में ड्रैगन का फुफकार मारना स्वाभाविक ही थी. ग्लोबल टाइम्स जैसे चीनी मीडिया ने भारत को ही दोष देना शुरू कर दिया है. चीन ने आरोप लगाया कि भारत उसकी जासूसी कर रहा है, जबकि दुनिया भर में कई देश चीन पर ही हैकिंग से लेकर जासूसी तक के आरोप लगाते रहते हैं. और तो और ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप का आरोप लगाया है, जबकि सच्चाई यह है कि चीन का उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल कोरोना के नाम पर चर्ता की आड़ में बीजिंग के हित साधने की मुहिम में जुटा हुआ था. दावा किया गया है कि भारत के ख़ुफ़िया एजेंट एनसीपी नेताओं पर नजर रख रहे हैं.

चीन का असफल प्रयास
चीन ने नेपाल की सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी को राजनीतिक स्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा, देश के हित, विकास और संपूर्ण परिदृश्य को ध्यान में रखने की सलाह देते हुए आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए कहा है. उधर ग्‍लोबल टाइम्‍स ने फूदान यूनिवर्सिटी के प्रफेसर लिन मिनवांग के हवाले से दावा किया है कि नेपाल के विवाद में भारतीय हस्तक्षेप से चीन चिंतित है. उसकी चिंता को बढ़ाने का काम उन खबरों ने ज्यादा किया है, जो कहती हैं नेपाल के भारत संग उसके रिश्ते आगे बढ़ते रहेंगे. नेपाल ने कहा कि वहां की राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव भारत के साथ उसके रिश्तों पर नहीं पड़ेगा.

यह भी पढ़ेंः कृषि कानूनों पर सरकार से किसानों की वार्ता में यह होंगे अहम मुद्दे 

प्रचंड ने मांगी भारत से मदद
ऐसे में चीन ने कभी निकट रहे पुष्क कमल दहल प्रचंड को फिर आगे कर दिया. एक वक्त कट्टर भारत विरोधी नेता कहे जाने वाले नेपाल के माओवादी नेता प्रचंड ने भारत से मदद मांगी है. नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के अध्यक्ष रहे प्रचंड इस समय प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं. एक टीवी इंटरव्यू में प्रचंड ने कहा, 'नेपाल के लोकतांत्रिक प्रक्रिया और शान्ति प्रक्रिया मे भारत का भरपूर सहयोग था, लेकिन भारत अभी मौन है, मैं आग्रह करना चाहता हूं भारत हमें सहयोग करे.' गौरतलब है कि प्रचंड के वजह से ही नेपाल-भारत के संबंधों दरार आयी थी. प्रचंड दो बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. जब वो पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो खुलेआम भारत को चुनौती दी थी. प्रचंड ने पशुपतिनाथ मन्दिर से भारतीय पुजारियों को भी निकालवा दिया था.

विदेश मंत्री के बाद ओली कर सकते हैं भारत दौरा
इश बीच चीनी प्रभाव को बेअसर करने के लिए नेपाल कूटनीतिक संबंध बहाली में जुट गया है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली वास्तव में केपी शर्मा ओली की भारत यात्रा की तैयारी के सिलसिले में जल्द ही भारत का दौरा करेंगे. माना जा रहा है कि केपी ओली नए साल के मौके पर भारत की यात्रा कर सकते हैं. नेपाल के विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक केपी शर्मा ओली की भारत यात्रा की तारीख लगभग तय हो गई है. कहा जा रहा है कि केपी ओली 4 जनवरी को भारत की यात्रा कर सकते हैं. इससे पहले भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने पिछले महीने ही नेपाल का दौरा किया था. उस यात्रा के बाद नेपाल और भारत की उच्च-स्तरीय यात्रा के लिए रास्ता खोला गया.

यह भी पढ़ेंः आंदोलनकारी जिन टावरों को जियो का समझकर तोड़ रहे, इसी साल बेच चुकी है रिलायंस

चीन चल रहा प्लान बी के दांव
हालांकि अपना दांव उलटा पड़ता देख बीजिंग प्रशासन ने नया पैतरा खेला है. नेपाल के विश्लेषकों का कहना है कि चीनी प्रतिनिधिमंडल इस बात को समझ चुका है कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों धड़ों के मतभेदों को सुलझाना अब संभव नहीं है. इसी के मद्देनजर, अब चीन प्रचंड, माधव नेपाल के गुट और नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी को मिलाकर नए समीकरण बनाने की कोशिश कर रहा है. अगर सुप्रीम कोर्ट ओली के फैसले को रद्द करता है तो चीन का ये प्लान बी काम आ सकता है. नेपाली मीडिया में ये भी कहा जा रहा है कि चीन ओली के हालिया रुख से खुश नहीं है और भारत की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. नेपाल के अंग्रेजी अखबार काठमांडू पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हाल में भारत के कई अधिकारियों के दौरे हुए हैं और ओली नेतृत्व के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी थी.

भारत ने भी चले मजबूत दांव
हालांकि नेपाल की प्रमुख प्रतिपक्षी दल 'नेपाली कांग्रेस' ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ओली के द्वारा उठाए गए असंवैधानिक कदम के खिलाफ जरूर है, लेकिन ताजा जनादेश लेने के लिए चुनाव में जाने से पीछे नहीं हटेगी. यानी कि कांग्रेस पार्टी ने चीन के चंगुल में नहीं फंसने का संकेत दे दिया है. इसके पीछे भारत की मोदी सरकार की कूटनीति कहीं अधिक जिम्मेदार है. इसके तहत सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे, रॉ प्रमुख सामंत गोयल समेत बीजेपी की अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रकोष्ठ के प्रमुख के विजय चौथाईवाले की काठमांडू यात्रा के भी कम मायने नहीं हैं. इनकी यात्रा के बाद ही ओली ने चीन के चंगुल से निकलने के लिए असंवैधानिक कदम उठाते हुए संसद भंग करा दी. 

यह भी पढ़ेंः गायत्री प्रजापति के आवास और बेटे के दफ्तर पर ED का छापा

चीनी राजदूत के इशारे पर नाच रहे थे ओली
गौरतलब है कि ओली पर चीन की राजदूत हाओ यांकी के इशारों पर चलने के गंभीर आरोप हैं. न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में यह सियासी उथल-पुथल ऐसे समय पर हो रहा है जब चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. यही नहीं, भारत और चीन दोनों ही नेपाल में अपनी मनपसंद सरकार को लाने के लिए पूरी ताकत झोके हुए हैं. ओली के नेतृत्‍व में नेपाल अब तक चीनी राजदूत के इशारे पर एक के बाद एक भारत विरोधी कदम उठा रहा था. चीन ने ओली के नेतृत्‍व में नेपाल से काफी फायदा उठाया लेकिन नए राजनीतिक तूफान से ड्रैगन को करारा झटका लगा है. अपने कार्यकाल के दौरान ओली अपने चुनावी वादों को भी पूरा नहीं कर पाए, इस कारण भी अंदरूनी 'प्रचंड दबाव' उन पर था.