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Kargil Vijay Diwas: 16 हजार फुट ऊंची बर्फीली चट्टान पर बिना जूते पहने चढ़ गए थे नींबू साहब, दुश्मन के उड़ा दिए थे होश

Kargil Vijay Diwas 2023: आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. देशवाली कारगिल युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान और योगदान देने वाले योद्धाओं को याद कर रहा है. ऐसे में हम आपको एक ऐसे योद्धा की कहानी बताने जा रहे हैं

Updated on: 26 Jul 2023, 09:16 AM

highlights

  • आज देश मना रहा कारगिल विजय दिवस
  • बिना जूतों के ही बर्फीली चट्टान पर चढ़ गया था ये जवान
  • नींबू साहब कहकर बुलाते थे साथी

New Delhi:

Neikezhakuo Kenguruse: कारगिल विजय दिवस के मौके पर आज पूरा देश भारतीय सेना के जांबाज योद्धाओं को याद कर रहा है. जिन्होंने 24 साल पहले पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और कारगिल पर तिरंगा फहराया था.  कारगिल युद्ध में अपना पराक्रम दिखाने वाले हजारों योद्धाओं की कहानियां शामिल हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी के दम पर दुश्मन को घुटनों पर ला दिया था. इन्हीं में से एक योद्धा थे कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे (Neikezhakuo Kenguruse). सर्वोच्च बलिदान देने वाले नागा योद्धा शहीद कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे इतने बहादुर थे कि कारगिल युद्ध के दौरान वह बिना जूतों के ही बर्फीली पहाड़ी पर चढ़ गए और चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. केंगुरुसे 25 साल के थे उनके साहस के सामने दुश्मन मैदान छोड़ने पर मजबूर हो जाते थे.  उनके दोस्त प्यार से उन्हें 'नींबू' और साथी जवान 'नींबू साहब' कहकर बुलाते थे.

बिना जूतों के की थी बर्फीली पहाड़ी पर चढ़ाई

नेइकेझाकुओ केंगुरुसे के साहस को इस घटना से समझा जा सकता है. केंगुरुसे 28 जून 1999 को द्रास सेक्टर में 16000 फुट ऊंची एक बर्फीली चट्टान पर दुश्मन पर धावा बोलने के लिए चढ़ाई कर रहे थे. तब तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस था. केंगुरुसे के पैर बार-बार फिसल रहे थे. दुश्मन को सबक सिखाने के लिए केंगुरुसे का चट्टान पर चढ़ना जरूरी था. इसके लिए उन्होंने अपने जूते उतार दिए और हाड जमा देने वाली ठंड में भी वह चट्टान पर चढ़ गए. गैलेंट्री अवार्ड्स की वेबसाइट पर मिली जानकारी के मुताबिक, कैप्टन केंगुरुसे और उनकी बटालियन ने दुश्मन की मशीन गन पर हमला करने के लिए एक खड़ी चट्टान पर चढ़ाई शुरू की थी.

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जैसे ही बटालियन चट्टान के पास पहुंची. दुश्मन ने उनपर गोली चला दी. कैप्टन केंगुरुसे के पेट में छर्रे लगे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. शरीर से बहुत खून बहने लगा, लेकिन वह साथी जवानों को आगे बढ़ने के लिए उनका हौसला बढ़ाते रहे. दुश्मन की मशीन गन के बीच चट्टान की एक दीवार थी. केंगुरुसे ने बिना समय गंवाएं नंगे पैर रॉकेट लॉन्चर लेकर चट्टान की दीवार पर चढ़ाई कर दी. उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और दुश्मन की मशीन गन पर रॉकेट लॉन्चर दाग दिया.

महावीर चक्र से किए गए थे कैप्टन केंगुरुसे

उसके बाद कैप्टन केंगुरुसे दुश्मन सैनिकों से भिड़ गए और उन्होंने अपने चाकू से दो दुश्मन सैनिकों का मार गिराया. उसके बाद दो अन्य सैनिकों को अपनी राइफल की गोली से मार गिराया. केंगुरुसे इतने बहादुर थे कि उन्होंने अकेले ही दुश्मन की मशीन गन को तबाह कर दिया. इस दौरान केंगुरुसे बुरी तरह घायल हो गए और आखिर में उन्होंने वीरगति की प्राप्ति की. रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा में अदम्य संकल्प, प्रेरक नेतृत्व और आत्म बलिदान प्रदर्शित करने के लिए कैप्टन केंगुरुसे को महावीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया.

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योद्धा समुदाय से आते थे केंगुरुसे

कैप्टन केंगुरुसे का जन्म 15 जुलाई 1974 को हुआ था. उनके पिता का नाम नीसेली केंगुरुसे और मां का नाम दीनुओ केंगुरुसे है. उन्होंने कोहिमा साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी. सेना में शामिल होने से पहले वह एक सरकारी स्कूल में टीचर थे. वह एक योद्धा समुदाय से आते थे. सेना में शामिल होने के लिए उनके परदादा उनकी प्रेरणा बने. उनके परदादा गांव में एक सम्मानित योद्धा के रूप में हमेशा याद किए जाते हैं. वह मूल रूप से नागालैंड के कोहिमा के नेरहेमा गांव के निवासी थी. 12 दिसंबर 1998 को केंगुरुसे को भारतीय सेना की सेना सेवा कोर (ASC) में नियुक्त किया गया, 2 राजपूताना राइफल्स के साथ अटैचमेंट होने पर उन्होंने काम किया. वह ASC से महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले एकमात्र आर्मी ऑफिसर हैं. कैप्टन केंगुरुसे के सम्मान में नागालैंड के पेरेन जिले के जलुकी में एक स्मारक स्थापित किया गया है और बेंगलुरु में सेना सेवा कोर मुख्यालय (दक्षिण) में एक प्रतिमा भी लगाई गई है.