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यूक्रेन-रूस युद्ध से भारत को लग सकती है 1,00,000 करोड़ की चपत, जानिए और क्या होंगे असर

जानकारों का कहना है कि भले ही यूक्रेन और रूस के बीच हजारों किलोमीटर दूर युद्ध चल रहा है लेकिन उसका साफतौर पर असर भारत के ऊपर पड़ने की आशंका है.

Updated on: 28 Feb 2022, 09:52 AM

highlights

  • रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंचा 
  • क्रूड महंगा होने से सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान की आशंका
  • नवंबर 2021 से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी 

नई दिल्ली:

रूस (Russia) के यूक्रेन (Ukraine) पर हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों के नाम पर दांव-पेंच फिर से शुरू हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में रूस के खिलाफ लाए गए निंदा प्रस्ताव के गिर जाने के बाद यूएनएससी का सोमवार तड़के फिर से आपातकालीन सत्र बुलाया गया. इस सत्र का मकसद यूक्रेन मसले पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) का विशेष सत्र बुलाए जाने पर मतदान करना था. इस सत्र को इसी वजह से ऐतिहासिक करार दिया जा रहा है. बता दें कि दुनियाभर में कहीं भी युद्ध हो उसकी वजह से मानवीय से लेकर आर्थिक तबाही जैसे संकट उत्पन्न होते ही हैं. युद्ध की वजह से एक ओर जहां लड़ाई में शामिल देशों को भारी नुकसान पहुंचता है तो वहीं दूसरी ओर उनसे जुड़े हुए देश भी इसका नुकसान उठाते हैं.

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घरेलू महंगाई में भी होगी बढ़ोतरी: SBI 
जानकारों का कहना है कि भले ही यूक्रेन और रूस के बीच हजारों किलोमीटर दूर युद्ध चल रहा है लेकिन उसका साफतौर पर असर भारत के ऊपर पड़ने की आशंका है. बता दें कि युद्ध की वजह से कच्चे तेल का भाव भी 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया है और ऐसे में भारत को करीब 1 लाख करोड़ रुपये की चपत लग सकती है. भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल में आए भारी उछाल की वजह से वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के राजस्व में 95 हजार करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऑयल महंगा होने की वजह से घरेलू महंगाई में भारी बढ़ोतरी की आशंका है.

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जापान की रिसर्च कंपनी नोमुरा ने दावा किया है कि रूस-यूक्रेन संकट की वजह से एशिया में भारत को सबसे ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. भारतीय स्टेट बैंक के समूह प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2021 से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि भारत सरकार ने देश में इसकी कीमतों में फिलहाल काबू में रखा हुआ है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर कच्चे तेल का दाम 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहती है तो वैट के ढांचे के अनुसार पेट्रोल और डीजल का दाम मौजूदा दर से 9 रुपये से 14 रुपये प्रति लीटर ज्यादा होनी चाहिए. वहीं अगर मोदी सरकार उत्पाद कर में कटौती करके कीमत को बढ़ने से रोकती है तो सरकार को हर महीने करीब 8 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा.