Independence Day Special: कौन थी ये प्रसिद्ध तिकड़ी जिससे हिल गई थी अंग्रेज हुकूमत

आजादी की लड़ाई के दौरान सन 1905 से 1918 में उग्रवाद का उदय हुआ और भारतीय कांग्रेस दो भागों में बंट गई. गरम दल और नरम दल.

आजादी की लड़ाई के दौरान सन 1905 से 1918 में उग्रवाद का उदय हुआ और भारतीय कांग्रेस दो भागों में बंट गई. गरम दल और नरम दल.

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Aditi Sharma
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कौन थे गरम दल के नेता, जानिए उनकी भूमिका( Photo Credit : फाइल फोटो)

आजादी की लड़ाई के दौरान सन 1905 से 1918 में उग्रवाद का उदय हुआ और भारतीय कांग्रेस दो भागों में बंट गई. गरम दल और नरम दल. गरम दल के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय शामिल थे. इन सभी ने मिलकर क्रांतिकारी हवा चलाई और स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों में जोश भरा.

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आइए जानते हैं क्या थी गरम दल नेताओं की भूमिका-

गरम दल के नेता सरकार के कार्यों और उनके द्वारा दिए गए अधिकारों से संतुष्ट नहीं थे. उनका मानना था कि स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है. इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार थे. गरम दल के नेता हमेशा वंदे मातरम का नारा लगाते थे क्योंकि अंग्रेजों को ये नारा पसंद नहीं था.
बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय ने स्वदेशी आंदोलन की वकालत करते हुए सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया. वे विदेशी चीजों को अंग्रेजों के सामने जला देते थे. इन नेताओं का मानना था कि शांति और विनीत से अब काम नहीं चलने वाला.

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बाल गंगाधर तिलक: बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे और भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे. उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ. अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की. उन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे. केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया.

बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे. 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी.1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया.जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट जी और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की. लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया. इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया.

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विपिन चंद्र पाल: लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में एक नाम विपिन चंद्र पाल का भी था. इस तिकड़ी का मानना था कि विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और लोगों का काम भी छिन रहा था. अपने आंदोलन में उन्होंने इसी बात को सामने रखा. पाल अपने निजी जीवन में भी इन विचारों का पालन करने वाले शख्स ते. इसी के साथ उन्होंने दकियानूसी मान्यताओं का भी जमकर विरोध किया. उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था जो उस समय दुर्लभ बात थी. इसके लिए उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा. किसी के विचारों से असहमत होने पर वह उसे व्यक्त करने में पीछे नहीं रहते. यहां तक कि सहमत नहीं होने पर उन्होंने महात्मा गांधी के कुछ विचारों का भी विरोध किया था.


लाला लाजपत राय: लाला लाजपत राय गरम दल के प्रमुख नेता थे. इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया. लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जानते हैं. लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी. 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गए. उस समय इन्होंने कहा था, "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी.'' यह हुआ भी. लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया. 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया

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