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Independence Day Special: स्वतंत्रता संग्राम में महिला सहयोगियों की अहम भूमिका

15 अगस्त को भारत में 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा. आजादी का ये जश्न लोगों के लिए काफी मायने रखता है. स्वतंत्रता दिवस के दिन हम उन शूरवीरों को भी याद करते हैं जिन्होंने इस देश को आजाद कराने में अपना सर्वत्र न्योछावर कर दिया.

Updated on: 14 Aug 2020, 08:00 PM

नई दिल्ली:

भारत.... अलग राज्यों, अलग भाषाओं, अलग वेषभूषा, अलग धर्मों और अलग विचारों का देश. लेकिन आज भी जब बात देश की आती है तो ये सारी विविधताएं एक रंग में आकर मिल जाती है. वो रंग है देशभक्ति का रंग. भारत की यही विशेषता उसे दुनिया में सबसे खास बनाती है क्योंकि यहां लोग अलग होकर भी एक हैं और एक रंग में रंगे हैं. अब यही देश आने वाले कुछ दिनों में अपनी आजादी के 73 साल पूरे कर रहा है. 15 अगस्त को भारत में 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा. आजादी का ये जश्न लोगों के लिए काफी मायने रखता है. स्वतंत्रता दिवस के दिन हम उन शूरवीरों को भी याद करते हैं जिन्होंने इस देश को आजाद कराने में अपना सर्वत्र न्योछावर कर दिया. जिनकी बदोलत आज हम इस खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं और अपने सपने पूरे कर पा रहे हैं. इन शूरवीरों में सबसे अहम नाम है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी. वही गांधी जिन्होंने लोगों को सिखाया कि अपना मकसद पूरा करने के लिए ये जरूरी नहीं कि हम हिंसा के मार्ग पर चलें. अपना सपना पूरा करने के लिए अहिंसा को भी अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया जा सकता है. महात्मा गांधी ने इसी राह पर चल अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और देश को आजाद करवाया. हालांकि महात्मा गांधी इस लड़ाई में अकेले नहीं थे. अहिंसा के इस पथ पर चलने के लिए उन्हें कई सहयोगी भी मिले जिनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता. लेकिन आज हम बात करेंगे उन महिला सहयोगियों की जिनका योगदानभी स्वतंत्रता संग्राम में काफी अहम रहा.

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कस्तूरबा गांधी

इस कड़ी में सबसे पहला नाम है कस्तूरबा गांधी. महात्मा गांधी की पत्नी और भारत में बा के नाम से प्रसिद्ध कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल सन् 1869 ई. में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था. कस्तूरबा गांधी आयु में गांधी जी से 6 मास बड़ी थीं. वह 1888 ई. तक लगभग साथ-साथ ही रहे लेकिन बापू के इंग्लैंड प्रवास के बाद से लगभग अगले 12 वर्ष तक दोनों प्राय: अलग रहे. इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद शीघ्र ही बापू को अफ्रीका जाना पड़ा. जब 1896 में वे भारत आए तब बा को अपने साथ ले गए. तब से बा बापू के पद का अनुगमन करती रहीं. उन्होंने उनकी तरह ही अपने जीवन को सादा बना लिया. वे बापू के धार्मिक एवं देशसेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं. यही उनके सारे जीवन का सार है. बापू के अनेक उपवासों में बा लगभग हमेशा उनके साथ रहीं और उनकी सार संभाल करती रहीं. जब 1932 में हरिजनों के प्रश्न को लेकर बापू ने यरवदा जेल में आमरण उपवास आरंभ किया उस समय बा साबरमती जेल में थीं. उस समय वे बहुत बेचैन हो उठीं और उन्हें तभी चैन मिला जब वे यरवदा जेल भेंज दी गईं. 

कस्तूरबा गांधी ने बापू के हर आंदोलन में उनका साथ दिया. वह खुद एक राजनीतिक कार्यकर्ता और नागरिकों के हक के लिए लड़ने वाली स्वतंत्रता सेनानी थी. देश को आजाद कराने में एक अहम योगदान देते हुए  22 फ़रवरी 1944 को उनका निधन हो गया. 

मनुबेन 

इस कड़ी में अगला नाम है सुशीला नायर का. वह गांधीजी की निजी सहायक थीं और प्यारेलाल जी की पत्नी की बहन थी. वह भी युवा महिलाओं में शामिल थीं जो गांधी जी के बेहद करीबी थीं. सुशीला नायर उनकी निजी डॉक्टर भी बनीं थीं. जब नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारी तब सुशीला नायर उनके साथ थीं.

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आभा

आभाबेन भी महात्मा गांधी की काफी करीबी सहयोगी मानी जाती हैं. वह उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. कनु महात्मा गांधी के फोटोग्राफर थे औऱ उन्ही के साथ रहते थे. इसलिए आभाबेन के जीवन पर भी महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था. आभाबेन भी महात्मा गांधी की हत्या के समय, उनके साथ मौजूद थीं.

मीराबेन

मीराबेन के नाम से जानी जाने वाली ब्रिटिश सैन्‍य अधिकारी की बेटी 'मैडलिन स्‍लेड' भी गांधी की करीबी सहयोगी थीं.मीराबेन के जीवन पर महात्मा गांधी का इस कदर प्रभाव पड़ा की उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में खादी का प्रचार किया. गांधी जी ने ही उन्हें मीरा नाम दिया था. गांधीजी को मीरा बेन एक बहन, एक बेटी, एक मित्र से भी बढ़कर मिलीं, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया. गांधीजी के विचारों को मानने वाली मीरा बेन सादी धोती पहनती थीं, सूत कातती, गांव-गांव घूमतीं. मैडलिन स्लैड जब साबरमती आश्रम में बापू से मिलीं तो उन्हें लगा कि जीवन की सार्थकता दूसरों के लिए जीने में ही है। वह गुजरात के साबरमती आश्रम में रहने लगीं.

सरोजनी नायडु

सरोजनी नाचडु पहली बार सन 1914 में इंग्लैंड में महात्मा गांधी से मिली. इस दौरान वह उनके विचारों से काफी प्रभावित हुईं और देश के लिए समप्रित हो गईं. उन्होंने अपनी प्रतिभार का हर क्षेत्र में परिचय दिया. उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं