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नक्सलियों की मांद में बिछ रहा 700 किमी सड़कों का जाल

सुरक्षा बलों की कैंप स्थापना से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हुए विकास कार्य. दो सालों में 28 सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए.

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Nihar Saxena
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Naxal

कोरोना काल में नहीं रुकी विकास कार्यों की गति.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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पहले बस्तर के नक्सल प्रभावित पहुंच विहीन क्षेत्रों में पैदल चलना मुश्किल था. अब वहां सड़क है, बिजली है, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं. हालांकि कुछ साल पहले तक यह सब बुनियादी सुविधाएं यहां के लोगों के लिए सपना था. इस सपने को हकीकत में बदलने का प्रयास किया है प्रशासन ने. विकास कार्यों को गति देने के लिए बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले दो सालों में 28 सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए हैं. इन कैंपों की स्थापना से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों में तेजी आ पाई है. दिसंबर 2018 से अब तक नक्सल प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों में 21 सड़कें बनाई गई. बीजापुर-आवापल्ली-जगरगुंडा रोड, नारायणपुर-पल्ली-बारसूर रोड, अंतागढ़- बेड़मा रोड, चिन्तानपल्ली-नयापारा रोड, चिंतल नार-मड़ाई गुड़ा रोड, कोंटा-गोल्ला पल्ली रोड आदि पर लगभग 700 किमी सड़कों का जाल बिछा कर दूरस्थ क्षेत्रों को जोड़ा जा रहा है.

कोरोना काल में भी जारी रहा विकास कार्य
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि हमने सुरक्षा, विश्वास ओर विकास की नीति पर अमल करते हुए, नक्सलवाद को मिटाने की दिशा में कार्य किया है. यही कारण है कि विगत दो वर्षों में हमने बस्तर की दूरस्थ अंचलों में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा को पहुंचाया है. वहीं, कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान बस्तर के धुर नक्सल इलाकों में 450 किमी सड़कों का काम पूरा किया गया है. 132 पुल-पुलिया का भी निर्माण कराया गया है. ये सड़कें ऐसे इलाकों में बनी हैं जो नक्सलियों के कब्जे में रहे थे. छोटे पुलों के साथ ही इंद्रावती नदी पर निर्माणाधीन चार बड़े पुलों में से एक छिंदनार के पुल का काम लगभग पूरा हो चुका है. यह पुल जून के आखिरी सप्ताह तक आम जनता के लिए खुल जाएगा. इसके बनने से दंतेवाड़ा की ओर से अबूझमाड़ के जंगलों का रास्ता खुल जाएगा. नदी के उस पार सड़क का काम चल रहा है.इस सड़क के बनने से करका, हांदावाड़ा समेत एक दर्जन गांव जुड़ जाएंगे.

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कैंप स्थापना नीति से नक्सली सीमित दायरे में सिमटे
बस्तर में नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के लिए सुरक्षा-बलों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में कैंप स्थापित किए जाने की जो रणनीति अपनाई गई है, उसने अब नक्सलवादियों को अब एक छोटे से दायरे में समेट कर रखा दिया है. इनमें से ज्यादातर कैंप ऐसे दुर्गम इलाकों में स्थापित किए गए हैं, जहां नक्सलवादियों के खौफ के कारण विकास नहीं पहुंच पा रहा था. अब इन क्षेत्रों में भी सड़कों का निर्माण तेजी से हो रहा है, यातायात सुगम हो रहा है, शासन की योजनाएं प्रभावी तरीके से ग्रामीणों तक पहुंच रही हैं, अंदरुनी इलाकों का परिदृश्य भी अब बदल रहा है.

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आदिवासियों के जीवन में आया बदलाव
आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि नए कैंपों की स्थापना से आदिवासियों के जीवन में बदलाव आया है. इंद्रावती नदी पर चार पुल बनाये जा रहे हैं. आजादी के बाद से अब तक इंद्रावती नदी पर 200 किमी में सिर्फ 3 पुल थे, जो कि अगले साल तक सात हो जाएंगे. इसी तरह पिछले 30 सालों से बंद पड़ी पल्ली-बारसूर रोड, बासागुड़ा-जगरगुंडा रोड, उसूर-पामेड़ रोड सरकार ने सुरक्षा बलों के कैंप लगा कर खुलवाए हैं.

HIGHLIGHTS

  • पिछले दो सालों में 28 सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए
  • फिर लाई गई विकास कार्यों में तेजी, जिसने बदली फिजा
  • कोरोना काल में भी बिछाया 450 किमी लंबी सड़कों का संजाल
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