गांधी-नेहरू के तुष्टीकरण से आजिज आ जनसंघ की स्थापना की श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने

मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप कांग्रेस पर लगते रहे हैं और यही वह प्रमुख वजह थी जिसकी वजह से तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार के कई निर्णयों से नाराज होकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Syama Prasad Mookerjee) ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी.

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Nihar Saxena
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Shyama Prasad Mookerjee Pt Nehru

पंडित नेहरू, सरदार पटेल साहब और श्यामा प्रसाद मुखर्जी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

बात-बात में जनसंघ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को कोसने वाली कांग्रेस (Congress) और उसके नेताओं को शायद ही इस बात का गुमान हो कि जनसंघ की स्थापना के प्रेरक एक लिहाज से आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ही थे. उस वक्त भी मु्स्लिम तुष्टीकरण के आरोप कांग्रेस पर लगते थे और यही वह प्रमुख वजह थी जिसकी वजह से तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार के कई निर्णयों से नाराज होकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी. फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व से सलाह मशविरा कर जनसंघ की स्थापना की थी.

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'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे' का नारा किया था बुलंद
सच तो यह है कि पिछले साल मोदी 2.0 सरकार के गठन के साथ ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के ख्वाब को ही पूरा करने का काम किया था. डॉक्टर मुखर्जी अनुच्छेद 370 के मुखर विरोधी थे और चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने और वहां अन्य राज्यों की तरह समान क़ानून लागू हो. अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने आज़ाद भारत में आवाज़ उठाई थी. उनका कहना था कि 'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.'

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बैरिस्टरी पास कर हुए राजनीति में सक्रिय
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था, जो बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में जाने जाते थे. कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद 1926 में सीनेट के सदस्य बने. साल 1927 में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की. 33 साल की उम्र में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति बने थे. चार साल के कार्यकाल के बाद वह कलकत्ता विधानसभा पहुंचे.

प्रखर राष्ट्रवाद के अगुआ
माना जाता है कि डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी प्रखर राष्ट्रवाद के अगुआ थे. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री भी बनाया था. हालांकि बहुत थोड़े समय के लिए ही वह मंत्री रहे. उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था. वह इस बात पर दृढ़ थे कि 'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.' कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया और उसके बाद फिर से स्वतंत्र रूप से विधानसभा पहुंचे.

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इस तरह हुआ जनसंघ का गठन
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कई मसलों पर मतभेद रहे थे. यह मतभेद तब और बढ़ गए जब नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ. इसके समझौते के बाद छह अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर से राय-मशविरा कर मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की. इसका बाद में जनता पार्टी में विलय हो गया और फिर पार्टी में बिखराव के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ. 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉक्टर मुखर्जी भी थे.

रहस्यमयी रही थी मौत
वह चाहते थे कि कश्मीर में जाने के लिए किसी को अनुमति न लेनी पड़े. 1953 में आठ मई को इसी कारण वह बगैर अनुमति के दिल्ली से कश्मीर के लिए निकल पड़े. दो दिन बाद 10 मई को जालंधर में उन्होंने कहा था कि 'हम जम्मू कश्मीर में बिना अनुमति के जाएं, ये हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए.' 11 मई को वह श्रीनगर जाते वक़्त गिरफ्तार कर लिए गए. उन्हें वहां की जेल में रखा गया और फिर कुछ दिनों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. 22 जून को उनकी तबीयत खराब हो गई और 23 जून 1953 को उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई. भारतीय जनता पार्टी इस दिन को 'बलिदान दिवस' के रूप में मनाती है.

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