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पराली नहीं अपनी किस्मत ही खाक कर रहे हैं आप

पराली के साथ आप फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जलाने जा रहे हैं.

Updated on: 15 Oct 2020, 01:49 PM

नई दिल्ली:

धान की कटाई शुरू हो चुकी है. रबी के सीजन में आम तौर पर कंबाइन से धान काटने के बाद प्रमुख फसल गेंहू की समय से बोआई के लिए पराली (Parali) जलाना आम बात है. चूंकि इस सीजन में हवा में नमी अधिक होती है. लिहाजा पराली से जलने से निकला धुंआ धरती से कुछ ऊंचाई पर जाकर छा जाता है, जिससे वायु प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर बहुत बढ़ जाता है. कभी-कभी तो यह दमघोंटू हो जाता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (NGT) ने पराली जलाने को दंडनीय अपराध घोषित किया है. किसान ऐसा न करें इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार भी लगातार जागरुकता अभियान चला रही है. ऐसे कृषि यंत्र जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है, उनपर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है.

फसल के लिए जरूरी पोषक तत्व हो रहे नष्ट
बावजूद इसके अगर आप धान काटने के बाद पराली जलाने जा रहे हैं, तो ऐसा करने से पहले कुछ देर रुकिए और सोचिए. आप पराली के साथ अपनी किस्मत को खाक करने जा रहे हैं, क्योंकि पराली के साथ आप फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जलाने जा रहे हैं. यही नहीं, भूसे के रूप में बेजुबान पशुओं का हक भी मार रहे हैं.

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NPK है बोनस
कृषि विशेषज्ञ गिरीष पांडेय बताते हैं कि शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है. जलाने की बजाय अगर खेत में ही इनकी कम्पोस्टिंग कर दें तो मिट्टी को कुछ मात्रा में एनपीके की क्रमश: 4, 2 और 10 लाख टन मात्रा मिल जाएगी. भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टीरिया, फंफूद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी बोनस होगी.

लागत घटेगी लाभ बढ़ेगा
अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत इतनी घटेगी और लाभ इतना बढ़ जाएगा. एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं. प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए मान लें तो डंठल के रूप में 7,200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में यही चारे के संकट की वजह बनता है.

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सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है
उन्होंने बताया कि फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान सम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं. अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है. इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है. साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है.

डंठल की गहरी जुताई कर पलट दें
पांडेय कहते हैं कि डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जुताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें. शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं. इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध हैं. किसान सुपर स्ट्रा, मैनेजमेंट, सिस्टम, हैपी सीडर, सुपर सीडर, जीरो सीड ड्रिल, श्रव मास्टर, श्रेडर, मल्चर, रोटरी स्लेशर, हाइड्रोलिक रिवर्सेविल एमबी प्लाऊ, बेलिंग मशीन, क्रॉप रीपर, रीपर कम बाइंडर आदि कृषि यंत्रों पर पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है.

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योगी सरकार कर रही है जागरूक
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि राज्य में किसी भी स्थान पर पराली जलाने की घटना ना होने दी जाए. इसके लिए गांवों में पोस्टर, बैनर और लाउडस्पीकर से लोगों को जागरूक करने का काम करें. यदि कहीं पर पराली जलाने की घटना होती है तो संबंधित व्यक्ति के साथ ही ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई की जाए.