चाय की प्याली भी और उपवास की चिट्टी भी, हरिवंश के दांव का क्या है सियासी समीकरण?
कृषि विधेयकों के विरोध में संसद की मर्यादा तोड़ने वाले सांसदों पर कार्रवाई हुई तो सारा विपक्ष गुटबंदी कर मॉनसून सत्र के बहिष्कार की धमकी देने लगा है.
highlights
- उप-सभापति ने परोसी चाय, निलंबित सांसदों का लेने से मना
- निलंबित सदस्यों का धरना खत्म, सत्र का करेंगे बहिष्कार
- सांसदों के व्यवहार के विरोध में उप-सभापति करेंगे अनशन
नई दिल्ली:
किसानों से जुड़ाव की सबकी अपनी-अपनी कहानी है, मगर मकसद सबका सिर्फ अपने हित (लाभ) से है. कृषि विधेयकों के विरोध में संसद की मर्यादा तोड़ने वाले सांसदों पर कार्रवाई हुई तो सारा विपक्ष गुटबंदी कर मॉनसून सत्र के बहिष्कार की धमकी देने लगा है. राज्यसभा से निलंबित सांसदों ने रातभर संसद परिसर में रात गुजारी और दिन निकलते ही सारा विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. कोई लगा है निंदा करने में और कोई लगा है सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को घेरने में. इसकी काठ निकालते हुए सत्तारूढ़ एनडीए ने भी हरिवंश के रूप में ऐसी चाल चली है, जो सीधे तौर पर बिहार के आसन्न विधानसभा चुनाव से जा जुड़ी है.
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संसद परिसर में रातभर 8 निलंबित सांसदों ने धरना दिया तो अगली सुबह राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह 'चाय पर चर्चा' करने सांसदों के पास पहुंच गए. हरिवंश ने सांसदों को चाय परोसी, मगर अपने अंदर गुस्सा लिए बैठे राज्यसभा सदस्यों ने चाय पीने से इनकार कर दिया. भले ही 'चाय पर चर्चा' का परिणाम शून्य रहा, मगर इसका पूरा फायदा हरिवंश नारायण सिंह को मिला है. यहां से लौटने के कुछ देर बाद ही हरिवंश ने राज्यसभा के सभापति को एक चिट्टी लिख डाली और अपनी पीड़ा बताते हुए एक दिन के उपवास की घोषणा कर दी.
हरिवंश 20 सितंबर को कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान विपक्षी सांसदों द्वारा किए गए अनियंत्रित व्यवहार के खिलाफ 24 घंटों के लिए उपवास रखेंगे. हरिवंश ने राष्ट्रपति को विपक्षी सांसदों द्वारा सदन में उनके साथ किए गए अनियंत्रित व्यवहार पर एक पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र में लिखा कि 20 सितंबर को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, वह उससे पिछले दो दिनों से आत्मपीड़ा, आत्म तनाव और मानसिक वेदना में हैं. हरिवंश ने लिखा, 'उच्च सदन की मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मैं एक दिन का उपवास करूंगा. शायद इससे सदन में इस तरह का आचरण करने वाले सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो जाए.'
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एनडीए राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह के साथ आ खड़ा हो गया है. यहां तक की प्रधानमंत्री मोदी भी खुद हरिवंश के व्यवहार की प्रशंसा करने के लिए खुद आगे आ गए है. मोदी ने ट्विटर पर लिखा है, 'हर किसी ने देखा कि दो दिन पहले लोकतंत्र के मंदिर में उनको (हरिवंश) किस प्रकार अपमानित किया गया, उन पर हमला किया गया और फिर वही लोग उनके खिलाफ धरने पर भी बैठ गए. लेकिन आपको आनंद होगा कि आज हरिवंश जी ने उन्हीं लोगों को सवेरे-सवेरे अपने घर से चाय ले जाकर पिलाई. यह हरिवंश जी की उदारता और महानता को दर्शाता है. लोकतंत्र के लिए इससे खूबसूरत संदेश और क्या हो सकता है. मैं उन्हें इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे लिखा, 'बिहार की धरती ने सदियों पहले पूरे विश्व को लोकतंत्र की शिक्षा दी थी. आज उसी बिहार की धरती से प्रजातंत्र के प्रतिनिधि बने हरिवंश जी ने जो किया, वह प्रत्येक लोकतंत्र प्रेमी को प्रेरित और आनंदित करने वाला है. राष्ट्रपति जी को माननीय हरिवंश जी ने जो पत्र लिखा, उसे मैंने पढ़ा. पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है. यह पत्र प्रेरक भी है और प्रशंसनीय भी. इसमें सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी. मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे जरूर पढ़ें.'
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बहरहाल, हरिवंश सिंह के चाय, चिट्ठी और उपवास के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. जिन्हें सीधे तौर पर बिहार चुनाव से जोड़ा जा रहा है. क्योंकि अपनी चिट्ठी में हरिवंश ने बिहार का जिक्र किया है. बीजेपी के तमाम नेता भी हरिवंश के प्रकरण को बिहार अस्मिता का मुद्दा बनाने में लग गए हैं और यह बताने की कोशिश की कि विपक्ष ने उन्हें अपमानित करने का काम किया है. हरिवंश ने चिट्ठी लिखकर अपनी जो पीड़ा बयां कर दी है, उससे एनडीए को और आधार मिल गया है. ऐसे में बीजेपी की इससे बिहार चुनाव के समीकरण को साधने की कवायद है. कुल मिलाकर विपक्ष के इस व्यवहार का फायदा बीजेपी बिहार के चुनाव में उठाना चाहती है.
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