ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम कर रहा है 'कूल रूफ', जानें कैसे बचाता है हर साल हजारों जिंदगियां

अहमदाबाद वर्ष 2010 में भीषण लू का गवाह बना था. मई, 2010 में अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया.

अहमदाबाद वर्ष 2010 में भीषण लू का गवाह बना था. मई, 2010 में अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया.

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Pradeep Singh
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कूल रूफ( Photo Credit : News Nation)

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम से कोई देश अछूता नहीं है. दुनिया भर में इसके घातक परिणाम आने लगे हैं. मानसून अनियंत्रित हो गया है. कहीं पर भारी बारिश से बाढ़ तो कहीं सूखा का मंजर है. ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कुछ उपायों पर काम शुरू हो गया है. विकसित देशों ने ग्रीनहाउस गैसों से निपटने की सारी जिम्मेदारी गरीब और विकासशील देशों पर डाल दी है. ऐसे ही देशों में भारत का भी नाम है. ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए भारत का एक शहर ‘कूल रूफ’ बना रहा है, जिससे हर साल 1,000 से अधिक जिंदगियां बचा रहा है.

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भारत का पश्चिमी राज्य गुजरात ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए कूल रूफ बना रहा है. अहमदाबाद में कूल रूफ से हर साल कम से कम 1,000 लोगों की जिंदगी बचायी जा रही है. इसके लिए लोगों को जागरूक किया गया. आधारभूत ढांचों में कुछ बदलाव किया गया और ग्लोबल वार्मिंग के असर से होने वाली मौतों पर बहुत हद तक काबू पा लिया गया.  

अहमदाबाद में हर साल गर्मी का कहर

गुजरात का अहमदाबाद ऐसा शहर है, जहां के लोग हमेशा से गर्मी का सामना करता रहा है. लेकिन, जलवायु परिवर्तन और धीमी गति से आगे बढ़ रहे चक्रवात के दौरान वर्ष 2010 में उसे भीषण लू का प्रकोप झेलना पड़ा था. उस घातक सप्ताह के बाद अहमदाबाद नगर निगम  ने गर्मी से निपटने के लिए भारत की पहली कार्य योजना तैयार करने के वास्ते भारतीय जन स्वास्थ्य संस्थान-गांधीनगर (IIPH-G) और प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद (NRDC) से हाथ मिलाया. वर्ष 2013 में इस कार्य योजना पर काम शुरू हुआ और गुजरात के अहमदाबाद शहर में हर साल औसतन 1,190 जिंदगियां बचाने में मदद मिली. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के जरिये यह कार्य योजना 23 राज्यों के 100 से ज्यादा शहरों और जिलों में लागू की जा चुकी है.

क्या है कूल रूफ

झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग और निम्न आय वाले समुदायों पर खासतौर से ठंडी, गर्मी और बरसात का असर ज्यादा पड़ता है. गर्मी में परेशानी और बढ़ जाती है. क्योंकि घनी बस्ती के चलते उनके घर ज्यादा हवादार नहीं होते और इन्हें ठंडा रखने के उपाय करना भी मुश्किल होता है. ‘कूल रूफ’ गर्मी से निपटने की कार्य योजना का एक प्रमुख घटक है. यह एक विशेष परत या सामग्री है, जो सूर्य की रोशनी को परावर्तित करती है, जिससे छतें गर्म नहीं होतीं.

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इलाके के हिसाब से ‘कूल रूफ’पारंपरिक छतों  के मुकाबले भवन के अंदर के तापमान को दो से पांच डिग्री सेल्सियम तक कम रखने में सक्षम हैं. वर्ष 2017 की एक पायलट योजना की सफलता को देखते हुए अहमदाबाद ने वर्ष 2020 में 15,000 झुग्गी-झोपड़ियों और एक हजार सरकारी इमारतों की छतों को ‘कूल रूफ’ से बदलने की योजना घोषित की.

कैसे बनता है‘कूल रूफ’

कूल रूफ ‘सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट’ (सूर्य की रोशनी को परावर्तित करने वाला पेंट) और ‘मोडरूफ’ (नारियल की भूसी और रद्दी कागज से स्थानीय स्तर पर तैयार ईको-फ्रेंडली सामग्री) की मदद से बनाये गये हैं. देश के अन्य हिस्सों में भी ‘कूल रूफ’ स्थापित करने का चलन जोर पकड़ रहा है.

2010 में अहमदाबाद में लू से हुई थी 800 लोगों की मौत

अहमदाबाद वर्ष 2010 में भीषण लू का गवाह बना था. मई, 2010 में अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया. लगभग 800 लोगों की मौत हो गयी. अस्पतालों पर मरीजों का बोझ बढ़ने लगा, तो प्राधिकारियों ने लोगों को दिन में बाहर न निकलने की सलाह जारी की थी. उस दौरान बड़ी संख्या में पक्षियों और चमगादड़ों की भी जानें चली गयीं थीं. 

HIGHLIGHTS

  • गुजरात में बन रहा ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए कूल रूफ 
  • अहमदाबाद वर्ष 2010 में भीषण लू का गवाह बना था 
  • ग्रीनहाउस गैसों से निपटने की सारी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर  
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