logo-image

कांग्रेस दक्षिण भारत से साफ, महज पांच राज्यों में ही बची है सत्ता

कांग्रेस के पास अब सिर्फ राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ में अपने बलबूते और महाराष्ट्र-झारखंड में गठबंधन सरकार ही बची है. हालांकि इस साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए राह जबर्दस्त चुनौती भरी है.

Updated on: 22 Feb 2021, 03:19 PM

highlights

  • कर्नाटक के बाद पुडुचेरी में सत्ता से बेदखल हो कांग्रेस दक्षिण भारत से साफ
  • अब सिर्फ तीन राज्यों में खुद की और दो में गठबंधन की सरकार ही बची
  • इस साल 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव बने हैं कड़ी चुनौती

नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में नई कड़ी पुडुचेरी के रूप में जुड़ी है. मुख्यमंत्री वी नारायणसामी (V Narayanasami) उपराज्यपाल के निर्देश पर सोमवार को सदन में बहुमत साबित करने में असफल रहे और अंततः इस्तीफा देने को बाध्य हो गए. इसके साथ ही कर्नाटक के बाद कांग्रेस (Congress) ने दक्षिण भारत में दूसरा राज्य गंवा दिया है. एक समय था जब कांग्रेस की दक्षिण भारत (South India) में न सिर्फ तूती बोलती थी, बल्कि दक्षिण उसका मजबूत गढ़ माना जाता था. यह अलग बात है कि पुडुचेरी (Puducherry) के साथ अब कांग्रेस दक्षिण भारत के सभी राज्यों में सत्ता से बाहर हो चुकी है. अगर समग्र भारत की बात करें तो कांग्रेस के पास अब सिर्फ राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ में अपने बलबूते और महाराष्ट्र-झारखंड में गठबंधन सरकार ही बची है. हालांकि इस साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए राह जबर्दस्त चुनौती भरी है. 

बीजेपी से 2014 से पिछड़ रही कांग्रेस
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस सत्ता से लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी से लगातार पीछे रह रही है. एक तरह से देखें तो पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़कर कांग्रेस आज पूरे देश में सत्ता से बाहर है. महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस भले ही सत्ता में हो, लेकिन यहां पार्टी की भूमिका क्रमशः नंबर तीन और नंबर दो की ही है. वह यहां एक ऐसे गठबंधन का हिस्सा है, जो मूलतः सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए ही अस्तित्व में आया. इसके बावजूद कांग्रेस विद्यमान राजनीतिक संकट को दूर करने के लिए व्यावहारिक कदम नहीं उठा रही है. कमजोर संगठन और समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी इस विशालकाय वृक्ष में लगी दीमक के लिए जिम्मेदार है. फिर अंदरुनी कलह और राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में पनप रहा असंतोष अब सार्वजनिक हो चुका है. यहां तक कि पार्टी के भीतर ही दो धड़े हो गए हैं.

यह भी पढ़ेंः पुडुचेरी भी कांग्रेस के हाथ से गया, विश्वास मत में नाकाम रहे नारायणसामी ने दिया इस्तीफा

एक साल में कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में छिनी सत्ता
यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी, लेकिन वह सत्ता में 15 महीने भी नहीं टिक पाई. ज्योतिरादित्य सिंधिया के तगड़े झटके यानी भाजपा में उनके शामिल होने के बाद मार्च 2020 में, कांग्रेस पार्टी के 25 विधायकों के राज्य विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा. फ्लोर टेस्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार नाटकीय रूप से सत्ता से बाहर हो गई. यही हाल कर्नाटक में हुआ था. जुलाई 2019 में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. कर्नाटक में जेडीएस के साथ कांग्रेस की गठबंधन सरकार सदन में विश्वास मत साबित करने में असफल रही थी. कांग्रेस ने इसके लिए विधायकों के विश्वासघात को जिम्मेदार माना था. बीजेपी की सरकार बनने के बाद 15 सीटों पर हुए उप चुनाव हुए में भाजपा ने 13 दल बदलुओं को टिकट दिया और 12 सीटों पर जीत हासिल की.

यह भी पढ़ेंः सोनिया और राहुल गांधी की बढ़ी मुश्किलें, नेशनल हेराल्ड मामले में HC का नोटिस

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं बड़ी चुनौती
कांग्रेस की इस पतली हालत के बीच इस साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों में पार्टी के लिए जीत हासिल करना बड़ी चुनौती है. पश्चिम बंगाल में तो मुख्य लड़ाई इस बार भाजपा और तृणमूल के बीच ही मानी जा रही है. यहां कांग्रेस-लेफ्ट के साथ गठबंधन में है. वहीं तमिलनाडु में पार्टी डीएमके के साथ गठबंधन के जरिये सत्ता में आने की कोशिश करेगी. केरल में पार्टी का वाम नीत एलडीएफ से मुकाबला है. असम में भाजपा को फिर से सत्ता में आने से रोकना चाहेगी. राजनीतिक स्तर पर तो कांग्रेस कमजोर हो ही रही है, आर्थिक चोट भी उसकी राह में बड़ी अड़चनें डाल रही है. ऐसे में बीजेपी से निपटना उसके लिए किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा ही मसला है.