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Congress के दुर्दिनः 17 राज्यों से एक भी RS सांसद नहीं, पूर्वोत्तर में भी सफाया

खाली सीटों पर चुनाव होने के बाद राज्यसभा में कांग्रेस की संख्या ज्यादा से ज्यादा 30 सदस्यों की रह जाएगी.

Updated on: 04 Apr 2022, 11:44 AM

highlights

  • राज्यसभा में भी कांग्रेस का दायरा लगातार रहा है सिकुड़
  • पूर्वोत्तर के 8 में 7 राज्यों पर कभी था कांग्रेस का शासन
  • अब यहां भी कांग्रेस का पूरी तरह से हो गया सूपड़ा साफ

नई दिल्ली:

कांग्रेस (Congress) के इससे ज्यादा दुर्दिन औऱ क्या होंगे की फिलवक्त समग्र भारत (India) में महज दो राज्यों में उसकी अपने बलबूते सरकार है, तो दो राज्यों में वह गठबंधन का हिस्सा है. राज्यसभा (Rajya Sabha) में भी कांग्रेस का कभी दबदबा हुआ करता था, तो अब यहां भी इसका प्रतिनिधित्व सिकुड़ रहा है. अब 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कांग्रेस का राज्यसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं बचा है. और तो और, कभी पूर्वोत्तर (North East) के 8 राज्यों में से 7 पर शासन करने वाली कांग्रेस की संभावनाएं इस क्षेत्र में राज्यसभा चुनावों में हाल ही में मिली हार के बाद अगले साल चार पूर्वोत्तर राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले धूमिल होती दिख रही हैं. जाहिर है कि राज्यसभा के आगे आने वाले चुनावों में भी कांग्रेस के सांसदों की संख्या और कम ही होनी हैं. 

17 राज्यों में कांग्रेस का एक भी राज्यसभा प्रतिनिधि नहीं होगा
अगर आंकड़ों की भाषा में बात करें तो महज 100 घंटे पहले मार्च के आखिरी में राज्यसभा में कांग्रेस के 33 सांसद थे. एके एंटनी समेत चार सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया, तो जुलाई में 9 और सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. इनमें पी चिदंबरम, अंबिका सोनी, जयराम रमेश और कपिल सिब्बल भी शामिल हैं. यानी इन खाली सीटों पर चुनाव होने के बाद राज्यसभा में कांग्रेस की संख्या ज्यादा से ज्यादा 30 सदस्यों की रह जाएगी. यानि नेता प्रतिपक्ष का तमगा भी छिनने का खतरा सिर पर आन खड़ा हुआ है. ऐसे में कांग्रेस तमिलनाडु में 6 सीटों में से एक के लिए डीएमके से उम्मीद लगाए बैठी है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के राज्यसभा में 31 सदस्य हो जाएंगे. फिर भी 17 राज्यों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने वाला है, जहां से कांग्रेस का एक भी राज्यसभा सांसद नहीं होगा. पंजाब हाथ से जाने से भी कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है.  इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्क्मि, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा शामिल हैं.

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पूर्वोत्तर में भी हो गया है सूपड़ा साफ
गौरतलब है कि कभी पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में से 7 पर शासन करने वाली कांग्रेस की संभावनाएं भी इस क्षेत्र में बद्तर ही है. असम में दो राज्यसभा सीटों और त्रिपुरा और नागालैंड में एक-एक के लिए चुनाव हाल ही में हुए थे और कांग्रेस अपने सहयोगियों की ताकत को देखते हुए, असम में एक सीट जीतने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन कांग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस-वोटिंग के कारण संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार और उच्च सदन के मौजूदा सदस्य रिपुन बोरा की अपमानजनक हार हुई. राज्यसभा चुनाव के परिणाम के बाद राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र से संसद के उच्च सदन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व अब शून्य है.

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पूर्वोत्तर में लोकसभा सीटों पर भी सिकुड़ गई कांग्रेस
असम में 7 राज्यसभा सीटें हैं, जबकि पूर्वोत्तर के शेष सात राज्यों में एक-एक सीट है और इन 14 उच्च सदन सीटों पर अब भाजपा और उनके सहयोगियों का कब्जा है. आठ पूर्वोत्तर राज्यों की 25 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 14 सीटें भाजपा के पास हैं, जबकि केवल चार सीटें कांग्रेस के पास हैं और एक पर मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, एक मुस्लिम के पास है. शेष पांच सीटों पर मणिपुर में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), नागालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) का कब्जा है. भाजपा के पास 14 लोकसभा सीटों में से नौ असम में, दो-दो अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में और एक मणिपुर में है, जबकि कांग्रेस के पास असम में तीन और मेघालय में एक है.