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Congress के गले की हड्डी बनी कैप्टन-सिद्धू रार, आसान नहीं अमरिंदर को नाराज करना

कांग्रेस के लिए इस तरह का फैसला आसान नहीं होगा, क्योंकि सिद्धू को मनाने के फेर में पार्टी न सिर्फ कैप्टन, बल्कि पंजाब के तमाम नेताओं को अपने विरोध में कर लेगी.

Updated on: 05 Jul 2021, 11:38 AM

highlights

  • कैप्टन को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता कांग्रेस आलाकमान
  • कैप्टन-सिद्धू की रार से पंजाब में कांग्रेस की छवि को लग रहा बट्टा
  • सिद्धू की बात मानी तो कांग्रेस को भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा

नई दिल्ली:

कांग्रेस (Congress) आलाकमान के लिए पंजाब की कलह गले में फंसी हड्डी की तरह होती जा रही है. कई दौर की वन-टू-वन बातचीत और पर्दे के पीछे की कवायद के बावजूद पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी और कलह का हल नहीं निकल सका है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और उनके विरोधियों के बीच रस्साकशी का खेल दिन-प्रति-दिन और तेज होता जा रहा है. कैप्टन के प्रमुख विरोधी नवजोत सिद्धू (Navjot Singh Sidhu)  हाल में ही कांग्रेस आलाकमान से मिलकर आए हैं. इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की नजदीकी की वजह से कांग्रेस नेतृत्व सिद्धू को प्रदेश संगठन की कमान सौंपने के विकल्प पर विचार कर सकता है. हालांकि यह भी तय है कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे. कांग्रेस के लिए इस तरह का फैसला आसान नहीं होगा, क्योंकि सिद्धू को मनाने के फेर में पार्टी न सिर्फ कैप्टन, बल्कि पंजाब के तमाम नेताओं को अपने विरोध में कर लेगी.

एक तरफ कुआं... दूसरी तरफ खाई
जाहिर है एक तरफ कुआं औऱ दूसरी तरफ खाई की स्थिति को भांप कांग्रेस नेतृत्व दोनों पक्षों में संतुलन साधना चाह रहा है. यह अलग बात है कि सिद्धू अपने लिए प्रदेशाध्यक्ष का पद चाहते हैं, वहीं पार्टी आलाकमान की ओर से उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाने समेत चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद देने का विकल्प रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक सिद्धू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया है. उधर कैप्टन भी सिद्धू को इतनी अहम जिम्मेदारी देने के पक्ष में नहीं हैं. माना जा रहा है कि अगर सिद्धू को कांग्रेस आलाकमान की ओर से बड़ी जिम्मेदारी दी गई, तो कैप्टन बागी तेवर अपना सकते हैं.

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सिद्धू की प्रियंका-राहुल से मुलाकात का जवाब था कैप्टन की लंच डिप्लोमेसी
यहां यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि कैप्टन ने अपने तेवर उसी समय दिखा दिए थे, जब सिद्धू की प्रियंका व राहुल से मुलाकात के अगले दिन उन्होंने हिंदू नेताओं को अपने घर लंच पर बुलाया था. कहने को तो लंच पर हुई यह मुलाकात राज्य के शहरी इलाकों में रह रही हिंदू आबादी को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने को लेकर थी, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इसमें प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कौन हिंदू चेहरा हो सकता है, इसे लेकर भी मंथन हुआ. इस मंथन में दो नाम प्रमुखता से सामने आए, पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद मनीष तिवारी व कैप्टन सरकार में मंत्री विजय इंदर सिंगला का. सूक्षों का कहना है कि इस मीटिंग में कैप्टन ने सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी दी जाने की सूरत में अपने विधायकों व समर्थक नेताओं की राय भी जानने की कोशिश भी की थी.

इसलिए सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का विरोध
सिद्धू को प्रदेश की कमान न देने के पीछे कैप्टन की दलील है कि यह पद किसी हिंदू को देना चाहिए, ताकि प्रदेश के हिंदुओं को प्रतिनिधित्व भी हो सके. कैप्टन का मानना है कि सीएम व प्रदेश चीफ दोनों ही अगर जाट होते हैं, तो दूसरे समुदायों को मौका नहीं मिलेगा. गौरतलब है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी हिंदू हैं. वहां हिंदू समुदाय खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है. ऐसे में कांग्रेस को डर है कि कहीं यह तबका छिटककर बीजेपी या आप की तरफ न चला जाए. इस खातिर सामाजिक समीकरण साधने और सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व दिखाने के लिए कैप्टन इस समीकरण पर जोर दे रहे हैं. 

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सत्ता बचाए रखने की चुनौती
कांग्रेस की एक बड़ी चुनौती अपनी सत्ता बचाए रखना है. आलाकमान इस बात को अच्छे से जानता है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार पार्टी नहीं, बल्कि कैप्टन की छवि की बदौलत है. वहां किसान आंदोलन के चलते कांग्रेस के लिए अभी भी गुंजाइश बनी हुई है. पार्टी को लगता है कि पिछले एक डेढ़ महीने से चल रही प्रदेश में खींचतान और सिद्धू की बयानबाजी को लेकर वहां लोगों के बीच पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है. प्रदेश के एक नेता का कहना था कि अगर सिद्धू को मुंहमांगा मिलता है तो सिर्फ सीएम और उनके समर्थक ही नहीं, संगठन के बड़े नेता व कैप्टन के दूसरे विरोधी भी सिद्धू के खिलाफ गोलबंद हो सकते हैं. ऐसा होने पर कांग्रेस को सीधा खामियाजा विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा. यही वह पेंच है, जो कांग्रेस आलाकमान की पेशानी पर बल डाले हुए हैं.