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पीएम नरेंद्र मोदी की कड़ी चुनौती से शी चिनफिंग की कुर्सी खतरे में, लकवाग्रस्त हुआ चीन

चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने एलएसी के अधिक क्षेत्रों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की असफल हाई-प्रोफाइल घुसपैठों के साथ अपने भविष्य को खतरे में डाल दिया है.

Updated on: 15 Sep 2020, 01:39 PM

नई दिल्ली:

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में अपने विरोधियों को 'रौंदने' की वजह से पहले से घरेलू राजनीति में निशाने पर आए राष्ट्रपति शी चिनफिंग (Xi Jinping) ने पूर्वी लद्दाख में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के हालिया 'रोमांचक हिंसक कारनामे' से अपने भविष्य को खतरे में डाल लिया है. पैंगोंग झील (Pangong Tso) के पास कई मोर्चों पर भारतीय सैनिकों से मिली करारी शिकस्त पर चीन के सत्तारूढ़ हलकों में माना जा रहा है कि चिनफिंग की किसी को डरा कर रख पाने की क्षमता में जबर्दस्त गिरावट आई है. भारतीय सीमा में चीनी सेना के आक्रामक विस्तार के वास्तुशिल्पी चिनफिंग भारत खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की कूटनीति और जवाबी कार्रवाई की बौखलाहट में दो कदम उठा सकते हैं. पहले वह पीएलए में फिर से फेरबदल कर अपने विश्वासपात्रों को और जिम्मेदारी देंगे. दूसरे कदम के तहत वह भारतीय सीमा (Indian Border) पर कई और मोर्चों पर बखेड़ा कर सकते हैं.

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शी के लिए भारत का रवैया बड़ा सदमा
अंग्रेजी पत्रिका न्यूजवीक में एक वकील और टिप्पणीकार गॉर्डन जी चांग के प्रकाशित एक विचार लेख के अनुसार चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने एलएसी के अधिक क्षेत्रों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की असफल हाई-प्रोफाइल घुसपैठों के साथ अपने भविष्य को खतरे में डाल दिया है. शी भारत में पूर्वी लद्दाख में पीएलए के आक्रामक कदमों के वास्तुशिल्पी हैं और इन प्रयासों के तहत चीनी सैनिक अप्रत्याशित रूप से फ्लॉप रहे हैं. लेखक के अनुसार मई की शुरुआत में वास्तविक नियंत्रण रेखा के दक्षिण में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने आक्रामक विस्तार किया. भारत के दक्षिण का यह इलाका लद्दाख के तीन अलग-अलग सामरिक बिंदुओं से ओतप्रोत है.

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गफलत में उठाया कदम
दोनों देशों के बीच सीमाएं स्पष्ट नहीं होने से अक्सर चीनी सेना भारतीय इलाकों में घुसपैठ करती रही हैं. अतिक्रमण की इन घटनाओं में नवंबर 2012 में शी चिनफिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद और तेजी देखने में आई है. इस कड़ी में मई के महीने में हुई घुसपैठ ने भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को सकते में ला दिया. इसकी एक वजह यही है कि रूस तक ने भारत को आश्वस्त किया था कि लद्दाख में चीनी सेना का बढ़ता जमावड़ा किसी भी लिहाज से भारतीय संप्रभुत्ता पर अतिक्रमण की कोशिश नहीं होगा. इसके बाद जुलाई में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से हिंसक झड़प ने भारत को और अचंभित करने का काम किया. इस हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहादत को प्राप्त हुए.

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भारत को लकवाग्रस्त मान कर दी बड़ी भूल
बताते हैं कि चीनी सरकार खासकर शी चिनफिंग सरकार को यकीन था कि भारतीय सरकार और सेना 1962 में मिली चीन से करारी शिकस्त के बाद से मनोवैज्ञानिक रूप से लकवाग्रस्त हो चुके हैं. हालांकि यहीं चिनफिंग का अंदाजा गलत निकाला. भारतीय सैनिकों ने हिंसक झड़प में चीनी सैनिकों को करारी टक्कर दी. एक संस्था के अनुमान के मुताबिक इस हिंसक झड़प में चीन के 60 जवान मारे गए. चीनी सैनिकों के लिए यह सदमा था. इसके बाद भारत ने दूसरा झटका तब दिया जब भारतीय सेना ने उन इलाकों पर कब्जा कर लिया, जिन पर चीन अपना दावा करता आ रहा था. सामरिक लिहाज से इन इलाकों पर कब्जा बीजिंग प्रशासन के लिए गंभीर झटका है. इस लेख के मुताबिक दक्षिण इलाकों में भारतीय सेना ने उन तीन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है, जहां कल तक चीनी सेना का आधिपत्य था. हाल-फिलहाल यह चीन के लिए मनोवैज्ञानिक लकवा है. जिससे उबरना शी चिनफिंग सरकार और सेना के लिए महती जरूरत है.

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भारतीय सेना के पराक्रम से सदमे में चीनी सैनिक
लेख में चांग ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि क्या ड्रैगन जवाब देने की स्थिति में हैं? इसका जवाब है नहीं. लेखक लिखते हैं कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक उन लक्ष्यों को निशाना बनाने में सिद्धहस्त हैं, जहां कोई विरोध नहीं होता यानी दूसरे शब्दों में कहें तो अनडिफेंडेड टार्गेट्स. हालिया इतिहास बताता है कि जहां-जहां चीनी सेना को बकायदा जंग झेलनी पड़ी है. 1979 ऐसा ही एक आखिरी अवसर था जब चीनी सेना वियतनाम को सबक सिखाने के लिए उसकी सीमा में घुस गई थी, लेकिन बदले में करारी शिकस्त खानी पड़ी थी. लेखक एक थिंकटैंक के हवाले से कहते हैं कि भारतीय सेना फिलवक्त अपने नेतृत्व की बदौलत बेहद आक्रामक है. भारतीय सेना आज ऐसी ताकत है जो कल के मुकाबले न सिर्फ ज्यादा मजबूत है, बल्कि पहले की तुलना में कहीं शातिर औऱ निखरी हुई हैं.