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कभी कनाडा ने दी थी पेनिसिलीन की दवा आज वही भारत से मांग रहा कोरोना वैक्सीन

देश की पहली हेल्थ मिनिस्टर रहते हुए राजकुमारी अमृत कौर ने 1955 में मलेरिया के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था कि इस ​अभियान से 4 लाख लोगों की जानें बचाई गईं, जो अभियान न होने पर मलेरिया से मर सकते थे.

Updated on: 11 Feb 2021, 04:26 PM

नई दिल्ली:

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया हुआ है. इस महामारी को सदी की दुनियाभर में सबसे बड़ी महामारी बताया गया है. कोरोना संकट में भारत दुनिया के कई देशों में वैक्सीन भेज चुका है. भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां दो कोरोना वैक्सीन सभी मापदंडों को पूरा कर वैक्सीनेशन के काम में लाई जा रही है. इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के बाद एक समय वह भी था जब भारत को पेनिसिलीन की दवा के लिए कनाडा से मदद मांगनी पड़ी थी. आज वही भारत दुनिया के कई देशों की कोरोना वैक्सीन को लेकर मदद कर रहा है.   

पेनिलिसीन के लिए कनाडा से मांगी थी मदद
आजादी के समय में भारत का फार्मा सेक्टर बेहद पिछड़ा हुआ था. मामूली दवाओं को छोड़े किसी भी गंभीर बीमारी की दवा और इलाज के लिए विकसित देशों पर ही निर्भर थे. देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमार अमृत कौर ने पेनिसिलीन की दवा के लिए कनाडा से मदद मांगी थी. आज वही कनाडा कोरोना वैक्सीन के लिए भारत से मदद मांग रहा है. हेल्थ मिनिस्टर रहते हुए राजकुमारी अमृत कौर ने 1955 में मलेरिया के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था कि इस ​अभियान से 4 लाख लोगों की जानें बचाई गईं, जो अभियान न होने पर मलेरिया से मर सकते थे.

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अब तक इन देशों को भेजी गई वैक्सीन
भारत ने कोरोना संकट में दुनिया के विभिन्न देशों की मदद के लिए वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम शुरु किया है. भारत बीते कुछ दिन में अपने यहां बने कोविड-19 टीकों की खेप भूटान, मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश, म्यामांर, मॉरीशस और सेशेल्स को मदद के रूप में भेज चुका है. वहीं सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और मोरक्को को ये टीके व्यावसायिक आपूर्ति के रूप में भेजे जा रहे हैं.

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कनाडा की मदद से लिया था सबक 
भारत ने जब पेनिलिसीन की दवा के लिए कनाडा के मदद मांगी को भारत को मदद तो मिली लेकिन सवाल यह था कि कब तक भारत विकसित देशों के सामने स्वास्थ्य क्षेत्र में मदद के लिए हाथ फैलाएगा. ऐसे में देश की पहली हेल्थ मिनिस्टर राजकुमारी अमृत कौर ने फैसला लिया कि भारत को स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अग्रणी बनाया जाए. उनके मंत्री बनने के बाद जब एम्स की स्थापना का मुद्दा आया, तो बात फंड पर अटक गई. तब, कौर ने न्यूज़ीलैंड सरकार से बड़ी रकम इस प्रोजेक्ट के लिए जुटाई. यही नहीं, रॉकेफेलर फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड्स सरकारों से भी कौर वित्तीय मदद लेकर आईं और एम्स की स्थापना के लिए हर मुश्किल को आसान किया.

कौर का बड़ा योगदान यह भी था कि उन्होंने एम्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने और उसे ऑटोनॉमस दर्जे व अनोखी परंपराओं के लिए संरक्षित करने पर भी ज़ोर दिया. कौर की तमाम मेहनत और लगन तब रंग लाई जब 1961 में एम्स को अमेरिका, कनाडा और यूरोप के संस्थानों के साथ दुनिया के बेहतरीन इंस्टीट्यूट के रूप में पहचान मिली. एम्स के लिए कौर ने अपना शिमला का घर भी दान कर दिया था.