Morbi Bridge Collapse: गुजरात के मोरबी पुल हादसे का दोषी कौन? कुछ सुलगते सवाल...
गुजरात के मोरबी में सस्पेंशन पुल हादसे की तह तक जाने के लिए राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है. ओरेवा कंपनी से जुड़े 9 लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है, लेकिन सवाल यह उठता है इस हादसे का दोषी किसे करार दिया जाए?
highlights
- बढ़ी कीमतों पर लोगों को टिकट दे पुल पर जमा होने दी भारी भीड़, किस-किस को जा रहा था पैसा?
- अजंता ओरेवा कंपनी ने समय से पहले पुल खोला तो नागरीय निकाय ने सवाल-जवाब क्यों नहीं किया?
- राज्य सरकार ने कभी मोरबी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की कार्यप्रणाली पर नजर क्यों नहीं डाली?
नई दिल्ली:
रविवार को मोरबी सस्पेंशन पुल हादसे के बाद सरकार ने पांच सदस्यीय विशेष जांच दल का गठन कर दिया है. इस हादसे में 133 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. हादसे की जांच भी साथ-साथ चल रही है, लेकिन प्रथम दृष्टया कुछ ऐसे स्याह पहलू सामने आए हैं, जिनकी गहराई तक जाना बेहद जरूरी है. मोरबी ब्रिज का निर्माण तात्कालानी राजा प्रजावत्सल्य वाघजी ठाकोर ने करवाया था. बताया जाता है कि, राज महल से राज दरबार तक जाने के लिए राजा इस हैंगिंग केबल ब्रिज का इस्तेमाल करते थे. उस वक्त में बना ये मोरबी पुल इंजीनियरिंग का जीता जागता नमूना भी था.
नवीनीकरण का पूरा काम होने से पहले खोल दिया पुल
इस पुल के रख-रखाव और संचालन का जिम्मा अजंता ओरेवा कंपनी के पास था. कंपनी सस्पेंशन पुल के नवीनीकरण पर काम कर रही थी, लेकिन दिवाली की छुट्टियों के मद्देनजर कंपनी ने बगैर अधिकारियों की इजाजत के पुल खोल दिया. प्राप्त जानकारी के मुताबिक मोरबी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और अंजता ओरेवा कंपनी में मोरबी पुल के रख-रखाव और संचालन के ठेके पर मार्च 2022 में सहमति बनी थी. इसके तहत ओरेवा कंपनी को 2037 तक मोरबा पुल के रख-रखाव और संचालन का ठेका दिया गया था. समझौते के तहत कंपनी को 8 से 12 महीने पुल की मरम्मत और देखभाल से जुड़े काम को अंजाम देना था. यह अलग बात है कि अजंता ओरेवा कंपनी ने ठेके की शर्तों और समझौते का उल्लंघन करते हुए महज पांच महीने में ही पुल को खोल दिया. वह भी बगैर नागरीय निकाय के अधिकारियों को बताए. नागरीय निकाय के अधिकारी मरम्मत और देखभाल का काम पूरा होने के बाद पुल की सुरक्षा की गहन जांच करने के बाद ही उसे शुरू करने की अनुमति देते हैं. इसके लिए बकायदा कंपनी को फिटनेस सर्टिफिकेट या एनओसी दी जाती थी. ऐसा हुए बगैर ही ओरेवा कंपनी ने पुल तय समय से पहले ही खोल दिया. मोरबी के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी संदीप सिंह ने स्थानीय मीडिया को बताया कि पुल के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट को जारी नहीं किया गया था. संभवतः इसी कारण सस्पेशन ब्रिज लोगों का भार नहीं सह सका और ढह गया.
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पुल पर भारी भीड़ जुटने कैसे दी
जनवरी 2020 में जिले के कलेक्टर, मोरबी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और अंजता ओरेवा कंपनी के अधिकारियों की बैठक के बाद शर्तों और समझौतों के कुछ बिंदुओं पर सहमति बनी थी. इसकी शर्तों में एक तय लोगों की पुल पर आमद भी थी, जो एक समय 25 से 30 लोगों से ज्यादा की नहीं हो सकती थी. यह अलग बात है कि दुखद हादसे के दिन मोरबी के पुल पर 350 से 400 के आसपास लोगों की भीड़ थी. यही भारी भीड़ काल साबित हुई. यह भी सामने आया है कि लोगों को 50-50 रुपए में टिकट बेचे गए, जबकि टिकट पर वयस्कों के लिए 17 और बच्चों के लिए 15 रुपए मूल्य ही अंकित है. विशेष जांच दल को जांच में यह भी पता लगाना चाहिए कि पुल पर भारी भीड़ को जाने देकर ओरेवा कंपनी कितनी कमाई कर रही थी और इसमें कितना हिस्सा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों को जा रहा था?
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ब्रिटिश काल के मोरबी पुल के रख-रखाव में ढील
मच्छु नदी पर बना सस्पेंशन पुल करीब 100 साल पुराना है. यद्यपि पुल के रख-रखाव और देखभाल का जिम्मा अजंता ओरेवा कंपनी को दे दिया गया था. फिर भी नागरीय निकाय के अधिकारियों ने इस पर कभी कोई ध्यान देने की जरूरत क्यों नहीं समझी कि कंपनी किस तरह अपनी जिम्मेदारी को अंजाम दे रही है? राज्य सरकार ने भी कभी मोरबी नागरीय निकाय की कार्यप्रणाली पर कोई ध्यान नहीं दिया? पुल की देखभाल में हीला-हवाली की वजह से उसके नवीनीकरण के काम की जरूरत पड़ी थी. क्या यह सरकार के कारिदों की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वह हर दो से तीन माह में पुल के सुरक्षा पहलुओं की जांच करते. मोरबी के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी संदीप सिंह के मुताबिक अजंता ओरेवा कंपनी को 2008 में पहली बार 10 सालों के लिए ठेका दिया गया था. उसके बाद कंपनी को ठेका ही नहीं दिया गया. मार्च 2022 में 15 सालों के लिए कंपनी को ठेके का फिर से नवीनीकरण किया गया. इस आलोक में यह सवाल भी खड़ा होता है कि 2008 से पहले पुल की स्थिति कैसी थी? उस समय पुल के रख-रखाव और देखभाल की जिम्मेदारी किसकी थी? विशेष जांच दल को इन सवालों के जवाब भी तलाशने चाहिए.
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