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लोकसभा चुनाव

कौन होते हैं Anglo Indian? संसद और विधानसभा में क्यों रिजर्व थीं सीटें

एंग्लो इंडियंस भारत का इकलौता ऐसा समुदाय है जिनका प्रतिनिधि मनोयन के जरिए देश की संसद और राज्यों की विधानसभा में करके भेजा जाता रहा है. क्योंकि इस समुदाय का अपना कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं है.

Updated on: 25 Jul 2022, 03:28 PM

highlights

  • संविधान के अनुच्छेद 366 (2) में एंग्लो इंडियन का जिक्र
  • देश में बहुत से एंग्लो इंडियन लोग काफी प्रसिद्ध हुए हैं
  • 25 जनवरी 2020 को इनकी आरक्षण की अवधि समाप्त

नई दिल्ली:

देश में लोकसभा और विभिन्न राज्यों में विधानसभा में प्रतिनिधित्व को लेकर एंग्लो इंडियन समुदाय (Anglo Indian) फिर चर्चा में है. लोकसभा के लिए इसके प्रतिनिधि स्वयं राष्ट्रपति ( President) चुनते यानी मनोनीत करते थे. सदन में इस समुदाय के लिए दो सीटें आरक्षित थी. देश की संसद में सभी क्षेत्रों और सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व होता है. आइए, देश के एंग्लो इंडियन समुदाय के इतिहास उनके साथ जुड़ी विशेषताओं के बारे में जानने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा जानते हैं कि उनका मौजूदा हाल क्या है?

एंग्लो इंडियन समुदाय की परिभाषा

संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन का जिक्र आता है. हिंदी में इनको आंग्ल भारतीय कहा जाता है. ऐसे किसी व्यक्ति को एंग्लो इंडियन माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों. यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों. इतिहास पर नजर डालें तो एंग्लो-इंडियन के भारत में आने की शुरुआत उस समय हुई थी जब अंग्रेज भारत में रेल की पटरियां और टेलीफोन लाइन बिछा रहे थे. इस काम के लिए यूरोप से लोग भारत आए थे. बाद में उन्होंने भारत में ही शादी की और यहीं बस गए. 

लोकसभा-विधानसभाओं में मनोनयन

एंग्लो इंडियंस भारत का इकलौता ऐसा समुदाय है जिनका प्रतिनिधि मनोयन के जरिए देश की संसद और राज्यों की विधानसभा में करके भेजा जाता रहा है. क्योंकि इस समुदाय का अपना कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं है. यह अधिकार फ्रैंक एंथोनी ने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हासिल किया था. लोकसभा में कुल 545 सीटें होती हैं. इनमें 543 पर सांसद चुनकर आते हैं. अगर इनमें कोई भी सांसद एंग्लो इंडियन समुदाय का नहीं होता है तो राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत इस समुदाय के दो प्रतिनिधियों को चुनकर लोकसभा में मनोनीत या नियुक्त कर भेज सकते हैं.

संविधान की 10वीं अनुसूची के मुताबिक कोई एंग्लो इंडियन सदन में मनोनीत होने के 6 महीने के अंदर किसी पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं. सदस्यता लेने के बाद वे सदस्य पार्टी व्हिप से बंध जाते हैं. इसके साथ ही उन्हें पार्टी के मुताबिक सदन में काम करना पड़ता है.

राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग

इसी तरह राज्यों में राज्यपाल को यह अधिकार है कि (अगर विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है तो) वह एक एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है. अगर यह जनता की ओर से चुने जाने के बजाय राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं होता है. डेरेक ओ ब्रायन शायद अकेले ऐसे एंग्लो इंडियन हैं, जिन्होंने 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाला था. उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से सांसद होने के नाते यह मतदान किया था.

मशहूर एंग्लो इंडियन हस्ती

देश में बहुत से एंग्लो इंडियन लोग प्रसिद्ध हुए. इनमें कीलर बंधू का नाम बहुत ऊपर है. दोनों का जन्म लखनऊ में हुआ था. ये दोनों भाई एयर फील्ड मार्शल डेंजिल कीलर और विंग कमांडर ट्रेवोर कीलर भारतीय वायु सेना का हिस्सा रहे. इतिहास में ऐसे मौके कम ही होंगे जब दो भाइयों को वीर चक्र से सम्मानित किया गया हो. दोनों के अदम्य साहस और वीरता के कारण 1965 के भारत-पाक युद्ध में वीर चक्र से सम्मानित हुए थे. 

लखनऊ में पढ़ाई करने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अल्फ्रेड कुक को भी 1965 के भारत-पाक युद्ध में वीर चक्र से सम्मानित किया गया.  पीटर फैनथम कई बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे. पॉप सिंगर क्लिफ रिचर्ड और हॉलीवुड कलाकार माइकल बेट्स जैसी कई हस्तियां इनमें शुमार हैं.

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ऐसे खत्म हुआ प्रतिनिधित्व

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान सख्त फैसला लेकर साल 2019 में संसद में एंग्लो इंडियन के प्रतिनिधित्व को खत्म कर दिया था. संसद में आरक्षण को लेकर हर दस साल के बाद आरक्षण को लेकर समीक्षा होती है. इस समीक्षा में तय होता है कि इन दो आरक्षित सीटों पर आरक्षण रखा जाए या नहीं. 25 जनवरी 2020 को इनकी आरक्षण की अवधि समाप्त हो गई. संविधान में 126वां संशोधन के दौरान मोदी कैबिनेट ने समीक्षा दौरान इस आरक्षण को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला लिया. इसके बाद जॉर्ज बेकर और रिचर्ड हे संसद में एंग्लो इंडियन समुदाय के आखिरी सांसद हो गए.