Shraddha Case सोमवार को हो सकता है आफताब का नार्को टेस्ट, जानें क्या है
ट्रुथ सीरम के नाम से लोकप्रिय सोडियम पेंटोथल का इस्तेमाल नार्कोटिक्स एनालिसिस टेस्ट में किया जाता है. इस दवा के इस्तेमाल से किसी शख्स की चेतना कम हो जाती है, जिससे वह खुलकर बोलने लगता है.
highlights
- आफताब का सोमवार को हो सकता है नार्को टेस्ट
- साकेत अदालत ने पांच दिन के भीतर कराने को कहा
नई दिल्ली:
श्रद्धा वाकर (Shraddha Walkar) हत्याकांड में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला (AAftab Amin Poonawala) का सोमवार को नार्को टेस्ट हो सकता है. साकेत कोर्ट ने पांच दिन के भीतर आफताब का नार्को टेस्ट (Narco Test) कराने का आदेश दिया है और मंगलवार को आफताब की रिमांड खत्म हो रही है. आफताब भी इसके लिए हामी भर चुका है. हालांकि नार्को टेस्ट से पहले कई तरह की मेडिकल जांच होती हैं, जो पुलिस को जल्द से जल्द करानी होंगी. पुलिस पहले ही नार्को टेस्ट और पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) कराने की इच्छुक थी. श्रद्धा हत्याकांड ने देश को झकझोर कर रख दिया है. सामाजिक संगठनों से लेकर आम लोग मामले में आफताब को कड़ी से कड़ी सजा के पक्षधर हैं तो फिल्मी दुनिया की भी नामी-गिरामी शख्सियतें आफताब को दुर्लभतम सजा की मांग कर चुकी हैं. नार्को टेस्ट का इस्तेमाल अमूमन बेहद हाई प्रोफाइल या उलझे हुए आपराधिक मामलों में किया जाता है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि नार्को टेस्ट किस तरह से पॉलीग्राफ टेस्ट से अलग होता है.
क्या होता है नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट
ट्रुथ सीरम के नाम से लोकप्रिय सोडियम पेंटोथल का इस्तेमाल नार्कोटिक्स एनालिसिस टेस्ट में किया जाता है. इस दवा के इस्तेमाल से किसी शख्स की चेतना कम हो जाती है, जिससे वह खुलकर बोलने लगता है. इसके साथ ही वह सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है और तब यह टेस्ट किया जाता है. इसके तहत परीक्षण कर रहे लोग उस शख्स से सवाल कर सही उत्तर पाते हैं. नार्को टेस्ट करते वक्त एक मनोविज्ञानी, जांच अधिकारी और फोरेंसिक विशेषज्ञ ही संबंधित शख्स के साथ मौजूद रह सकता है. अपराध को कबूलवाने के लिए थर्ड डिग्री के इस्तेमाल से नार्को टेस्ट को बेहतर माना जाता है. साकेत अदालत ने भी पुलिस को आफताब पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल नहीं करने को कहा है.
पॉलीग्राफ टेस्ट या लाइ डिटेक्टर टेस्ट एक उपकरण की मदद से किया जा सकता है, जिसे हम झूठ पकड़ने की मशीन भी कह सकते हैं. यह मशीन सवाल-जवाब पूछे जाने के दौरान ब्लड प्रेशर, नाड़ी की रफ्तार और सांस लेने की प्रक्रिया को रिकॉर्ड करती है. फिर प्राप्त डाटा के विश्लेषण से पता किया जाता है कि संबंधित शख्स झूठ बोल रहा है या सच. लाइ डिटेक्टर टेस्ट का इस्तेमाल पुलिस पूछताछ और जांच प्रक्रिया के तहत 1924 से कर रही है. हालांकि अदालती प्रक्रिया में इसे मान्य नहीं माना जाता है. फिर भी पुलिस जांच में इससे एक दशा-दिशा तय करने में सक्षम हो जाती है.
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परीक्षणों और कानूनों के परिप्रेक्ष्य में क्या अंतर है?
नार्को टेस्ट में पूछताछ करने के लिए व्यक्ति की चेतना को नार्कोटिक्स की मदद से कम किया जाता है. वहीं, पॉलीग्राफ टेस्ट में सच्चाई हासिल करने के लिए संबंधित शख्स की शारीरिक क्रियाओं पर फोकस किया जाता है. हालांकि इनमें से कोई भी तरीका वैज्ञानिक रूप से 100 फीसदी सफलता दर हासिल नहीं कर सका है. इसके साथ ही इन परीक्षणों को लेकर चिकित्सा जगत में भी खासा विवाद और मतभेद हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सेल्वी बनाम कर्नाटक सरकार मामले में 2010 में अपने आदेश में कहा था कि आरोपी की रजामंदी के बगैर लाइ डिटेक्टकर टेस्ट नहीं किया जा सकता है. इसके साथ ही आरोपी का वकील भी परीक्षण के वक्त मौजूद रहेगा. वकील और पुलिस को आरोपी को परीक्षण से पड़ने वाले शारीरिक, मानसिक प्रभाव समेत कानूनी वैधता से परिचित कराएगा. इसके साथ ही परीक्षण से प्राप्त परिणाम को जुर्म की स्वीकरोक्ति नहीं माना जाएगा. हां, यदि परीक्षण में पूछे गए सवालों से कोई हथियार, वस्तु या दस्तावेज बरामद होता है तो उसे सबूत माना जाएगा.
कैसे किया जाता है नार्को टेस्ट
नार्को टेस्ट में व्यक्ति का परीक्षण तभी किया जाता है जब वह मेडिकल तौर पर पूरी तरह से फिट हो. इसके तहत हिप्नोटिक सोडियम पेंटोथल, जिसे थियोपेंटोन भी कहते हैं को इंजेक्शन के जरिये दिया जाता है. इसकी खुराक रोगी की आयु, लिंग और अन्य मेडिकल स्थितियों पर निर्भर करती है. खुराक सटीक होनी चाहिए क्योंकि निर्धारित तय मात्रा में अंतर से शख्स की मौत हो सकती है या वह कोमा में जा सकता है. परीक्षण करते समय अन्य सावधानियां भी बरती जाती हैं. संबंधित शख्स को ऐसी स्थिति में रखा जाता है जहां वह दवा के इंजेक्शन के बाद केवल विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर दे सके.
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पॉलीग्राफ टेस्ट होता है ऐसे
हाऊ स्टफ वर्क्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पॉलीग्राफ टेस्ट कराने वाले शख्स के शरीर में चार से छह सेंसर लगाए जाते हैं. इनकी मदद से पॉलीग्राफ मशीन कागज की एक पट्टी पर सेंसर से कई संकेतों को रिकॉर्ड करती है. सेंसर आमतौर पर व्यक्ति की सांस लेने की दर, व्यक्ति की पल्स रेट, व्यक्ति का रक्तचाप, उसका पसीना रिकॉर्ड करते हैं. कभी-कभी पॉलीग्राफ हाथ और पैर की गति को भी रिकॉर्ड करते हैं. पॉलीग्राफ टेस्ट शुरू होने पर संबंधित शख्स से मानदंड स्थापित करने के लिए प्रश्नकर्ता तीन या चार सरल प्रश्न पूछता है. सही परिणाम मिलने पर पॉलीग्राफ परीक्षक तब वास्तविक प्रश्न पूछता है. पूछताछ के दौरान उस व्यक्ति के सभी संकेत मूविंग पेपर पर रिकॉर्ड किए जाते हैं.
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