कौन सा तेल खाएं और कितनी मात्रा में, जानें फैट्स से जुड़ी कुछ जरूरी बातें
कौन सा तेल और कितनी मात्रा में खाएं दोनों ही बातें स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी हैं. मात्रा की बात करें तो इस पर बहस की कम गुंजाइश है. 3 से 4 टी स्पून हर रोज खाया जा सकता है. पूरी तरह से चिकनाई या वसा रहित डाइट आगे चलकर नुकसानदायक ही साबित होगी.
highlights
- सैचुरेटेड फैट स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक है
- देशी घी भी हार्ट संबंधी बीमारियों की आशंका बढ़ाता है
- खान-पान में हेल्थी ऑयल का इस्तेमाल देगा स्वस्थ जीवन
नई दिल्ली:
फिजिशियन सामान्यतः मरीजों को खाद्य तेल के सेवन को लेकर स्पष्ट सलाह नहीं देते हैं. अक्सर उनका यही कहना होता है, 'तेल या घी में तली चीजों से थोड़ा परहेज करें'. ऐसे में मरीज यही मान कर चलता है कि ब्रेड में अच्छे से मक्खन लगा कर खा सकते हैं या दाल-रोटी में जी भर कर घी (Ghee) डाल स्वाद ले सकते हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि उन्हें तर्कसंगत सलाह दी जाए यानी घी-तेल की कितनी छोटी मात्रा भी हानिकारक हो सकती है. अक्सर लोगों के बीच चिकनाई को लेकर यह चर्चा भी होती है, 'मेरे दादाजी तो हर रोज 100 ग्राम घी या मक्खन खाते थे और 95 साल तक जिए'. ऐसे में मरीजों को समझाने की जरूरत है कि लंबी उम्र संतुलित जीवनशैली (Lifestyle) से मिलती है और हमारा खानपान उसका सिर्फ एक हिस्सा है. लोगों को यह साफ-साफ बताने की जरूरत है कि उनके दादाजी 95 साल तक इसलिए जिए, क्योंकि वह 100 ग्राम घी या मक्खन खाने के अलावा हर रोज 10 से 15 किमी पैदल चलते थे. साथ ही उनके खानपान में हरी सब्जियों, फलों और फाइबर (Fibre) युक्त चीजों की अधिकता रहती थी. अब अगर आज की जीवनशैली के अनुरूप आप ज्यादा शारीरिक गतिविधियों के बगैर 100 ग्राम घी या मक्खन हर रोज खाएंगे, तो आपका लिवर और दिल जवाब दे देगा.
खाद्य तेल की मात्रा और गुणवत्ता
कौन सा तेल और कितनी मात्रा में खाएं दोनों ही बातें स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी हैं. मात्रा की बात करें तो इस पर बहस की कम गुंजाइश है. 3 से 4 टी स्पून हर रोज खाया जा सकता है. पूरी तरह से चिकनाई या वसा रहित डाइट आगे चलकर नुकसानदायक ही साबित होगी. इसकी वजह यह है कि शरीर को स्वस्थ रहने के लिए तेल में मौजूद कुछ फैटी एसिड्स की दरकार रहती है. इस मामले में सावधानी बरतने की बेहद जरूरत है. अगर किसी डाइट को जीरो कोलेस्ट्रॉल भी करार दिया जा रहा है, तो यकीन मानिए उसमें भी कोई न कोई जहरीले तत्व जरूर होंगे. अगर गुणवत्ता की बात करें तो शोधकर्ता और विज्ञानी इस मामले में एकमत नहीं हैं. हालांकि बीते तीन दशकों में वैज्ञानिक आधार पर कुछ बातें जरूर सामने आई हैं. मसलन अमेरिका में डॉक्टरों ने अपने शोध में पाया कि वसा का एक घटक मोनोअनसैचुरेटेड फैट (ओलिक एसिड) का अगर सेवन किया जाए तो अन्य के मुकाबले खून में वसा की मात्रा कम करने में अधिक प्रभावी है. इसके अलावा यह डाइबिटीज के मरीजों के लिए भी लाभकारी है. यह ऑलिव और कैनोला ऑयल में प्रचुरता से पाया जाता है. हम भारतीय इससे मिलते-जुलते तेल यानी सरसों के तेल का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं. मोनेअनसैचुरेटेड फैट्स के लिए पिस्ता, बादाम, अखरोट, एवोकेडो भी अच्छे स्रोत हैं. स्वास्थ्य के हर पैमाने में सुधार लाने के लिए लिहाज मेडिटेरेनियन डाइट्स बेहतर रहती है. ये मधुमेह पीड़ित व्यक्ति में सुधार लाती हैं. इसके अलावा जिंदगी को बढ़ाने के साथ-साथ दिल की बीमारियों से भी बचाती हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि मेडिटेरेनियन डाइट्स में ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल होता है. इसके साथ ही नट्स भी अच्छे से खाए जाते हैं, जिनमें मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स समेत सब्जियों की प्रचुरता रहती है. गुड फैट के क्रम में पॉलीअनसैचुरेटेड फैट भी बेहतर माने जाते हैं, जो ओमेगा-3 फैटी एसिड्स से भरपूर होते हैं. मछली इनका एक बेहतरीन स्रोत हैं. हालांकि कई भारतीय शाकाहारी होने की वजह से मछली का सेवन नहीं करते हैं और दूसरी वजह यह भी है कि देश के कई हिस्सों में मछली आसानी से मिलती भी नहीं है. सामान्य तौर पर कहें तो भारतीयों के खून में इन फैट्स का स्तर कम ही होता है. इसकी वजह से खून में वसा का स्तर प्रभावित होता और दिल के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है. दुर्भाग्य की बात यह है कि गुड फैट्स अधिकतर शाकाहारी भोजन में नहीं रहता है. अखरोट, सरसों, सोयाबीन, तिल, मूंगफली, कैनोला, अलसी, चिया बीज में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स की बेहद कम मात्रा ही पाई जाती है.
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घी और नारियल का तेल
सैचुरेटेड फैट्स का सेवन धमनियों के जाम होने और हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ाता है. सैचुरेटेड फैट्स में भी पामिटिक एसिड स्वास्थ्य पर काफी विपरीत प्रभाव डालता है, जो पाम ऑयल और डेयरी में मिलने वाले घी में पाया जाता है. यह वास्तव में दिल की बीमारियों की आशंका तो बढ़ाता ही है, साथ ही कैंसर कोशिकाओं के विकास में भी मददगार रहता है. सैचुरेटेड फैट में पका महज एक समय का भोजन धमनियों में वसा के स्तर को हद दर्जे तक प्रभावित करता है. इसकी वजह से महज कुछ पलों में मस्तिष्क, दिल या शरीर के किसी भी अंग तक खून का प्रवाह बाधित हो सकता है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इसी विश्वास के साथ इसका सेवन पीढ़ी दर पीढ़ी से करते आ रहे हैं कि यह शरीर को ताकत देता है दिल के लिए भी अच्छा होता है. घी में सैचुरेटेड फैट की मात्रा 60 से 80 फीसदी तक होती है और इसमें पामिटिक एसिड भी प्रचुरता से पाया जाता है. इसको लेकर कई वैज्ञानिक शोध हुए हैं. इनमें से एक का कहना है कि महज एक से दो चम्मच घी भी हार्ट अटैक की आशंका को दस गुना तक बढ़ाता है. जानवरों पर किए गए शोध और अध्ययन में पाया गया कि घी से किडनी के क्षतिग्रस्त होने समेत फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी बढ़ता है. घी के सेवन से याददाश्त अच्छी होती है और वजन बढ़ता है जैसी बातें सामने लाने वाले अध्ययन बेहद कम हैं और वैज्ञानिक स्तर पर ठोस भी नहीं हैं.
दक्षिण भारत में घर-घर इस्तेमाल होने वाले नारियल तेल में भी सैचुरेटेड फैट औऱ पामिटिक एसिड भरपूर होता है. पाया गया है कि नारियल तेल से बैड ब्लड कोलेस्ट्रोल (एलडीएल) का स्तर बढ़ता है, जो धमनियों के ब्लॉकेज का मुख्य कारण होता है. ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश लोग यही मानते हैं कि नारियल तेल से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. भुजिया और चिप्स भी सैचुरेटेड फैट से भरपूर पॉम ऑयल में बनाए जाते हैं. इस क्रम में रोचक बात यह है कि ऐसे ही नाश्ते और बिस्कुट अमेरिका सरीखे बाजार के लिए मल्टीनेशनल कंपनियां स्वास्थ्य के लिहाज से लाभप्रद ऑयलसे तैयार करती हैं. हर तरह का सैचुरेटेड फैट लिवर में जमा होता जाता है और उसके फाइब्रोसिस व सिरोसिस का कारण बनता है.
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सबसे ज्यादा नुकसानदायक है ट्रांस फैट
हार्ट और लिवर से जुड़ी बीमारियों की आशंका को बढ़ाने वाले सैचुरेटेड फैट में अधिक मात्रा में ट्रांस फैटी एसिड भी होता है, जो वनस्पति घी में प्रचुरता से पाया जाता है. वनस्पति घी वनस्पतिक स्रोतों से बना आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेल है, जो डेयरी घी से अलग होता है. कुछ तेलों में ट्रांस फैटी एसिड की मात्रा 30 से 40 फीसदी तक होती है, जो हार्ट, लिवर, पैंक्रियाज और रक्त वाहिनियों के लिए खतरनाक होता है.वास्तव में ट्रांस फैटी एसिड किसी तेल में पाया जाने वाला सबसे खतरनाक तत्व है. कई अध्ययनों में पाया गया कि यदि आप किसी तेल में खाने को बेहद उच्च तापमान पर दोबारा गर्म करते हैं, तो ट्रांस फैटी एसिड की मात्रा 100 से 200 फीसदी तक बढ़ जाती है. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश भारतीय परिवारों में खाने को दोबारा गर्म करने की परिपाटी लंबे समय से चली आ रही है. सड़क पर लगने वाले फूड स्टॉल्स भी उसी तेल में खाद्य पदार्थों को दोबारा गर्म करते हैं. ऐसे में एक बड़ा प्रश्न यह उठता है कि आप स्वस्थ कैसे रहे? जवाब है अपनी आंख खुली रखें और पैक्ड खाद्य पदार्थों की खरीद करते समय उस पर अंकित न्यूट्रीशन लेबल को ध्यान से पढ़ें. मसलन सैचुरेटेड फैट्स, पाम ऑयल औऱ ट्रांस फैटी एसिड की उसमें कितनी मात्रा है. इसके अलावा अपने खान-पान में ताजे फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं. अलग-अलग स्वास्थ्यवर्धक ऑयल को इस्तेमाल करें. कोशिश करें किसी भी तेल को दोबारा गर्म करने की नौबत नहीं आए.
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