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Afghanistan में काबिज तालिबान के दो गुटों में खिंची तलवारें, अमीर अखुंदजादा ने बढ़ाई सुरक्षा... जानें वजह

अफगानिस्तान में महिलाओं की उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध को लेकर तालिबान में दरार पड़ चुकी है. गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी और रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब विश्वविद्यालयों में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने वाले फैसले के खिलाफ हैं.

Updated on: 26 Dec 2022, 07:42 PM

highlights

  • महिलाओं के उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध से तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में दरार और चौड़ी हुई
  • उदारवादी समूह चाहता है अमीर उल मोमनीन हिबतुल्लाह अखुंदजादा बदल दें फैसला
  • इस फैसले की खिलाफत में अमीर की शीर्ष तीन कमांडर विद्रोह की भूमिका में आए

नई दिल्ली:

तालिबान (Taliban) के सर्वोच्च नेता और अमीर उल मोमनीन हिबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) कॉलेजों में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध के फैसले को लेकर अपने ही शीर्ष नेताओं के बीच अलग-थलग पड़ गए हैं. सरकार में शामिल शक्तिशाली लोगों का भारी दबाव है कि अखुंदजादा महिलाओं के लिए विश्वविद्यालय में शिक्षा लेने पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले को पलट दें. सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) और रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब (Mullah Mohammad Yaqub) अमीर अखुंदजादा के साथ इस प्रतिबंध (Ban) को हटाने के लिए बातचीत कर रहे हैं. गौरतलब है कि भारत समेत कई अन्य देशों ने भी तालिबान के इस फैसले की खिलाफत की है. अब अपने ही मंत्रियों के दबाव में अखुंदजादा को यह फैसला वापस लेना पड़ सकता है. यदि हिबतुल्लाह अखुंदजादा ऐसा नहीं करते हैं, तो इससे सरकार की एकता पर असर पड़ेगा. माना जा रहा है कि यह मुद्दा पहले से तबाह देश में गृह युद्ध (Civil War) की जिंगारी को भड़का सकता है. तालिबान सरकार के एक अधिकारी के भी मुताबिक यदि अखुंदजादा शीर्ष मंत्रियों की बात मान फैसला वापस ले लेते हैं, तो यह एक अच्छी खबर होगी. अन्यथा गृह युद्ध का विकल्प ही बचेगा, जो अफगानिस्तान (Afghanistan)के लिए अच्छा नहीं होगा. इस बीच कंधार में अखुंदजादा ने अपनी सुरक्षा में बदलाव कर उसकी कमान हेमलैंड के गवर्नर मौलवी तालिब को सौंप दी है, जो इस आतंकी संगठन के आत्मघाती दस्ते का सर्वेसर्वा था.

तालिबानी फैसले के खिलाफ बढ़ रहा है विरोध
गौरतलब है कि मंगलवार को तालिबानी कट्टरता की आड़ में अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए विश्वविद्यालय में शिक्षा लेने पर रोक लगा दी गई थी. शिक्षा मंत्री ने इसकी वजह महिलाओं की अनुचित पोशाक बताई थी. उनके शब्दों में कहें... 'ऐसा लगता है कि वे कॉलेज पढ़ाई करने नहीं, बल्कि किसी शादी में शामिल होने के लिए आ रही हैं'. तालिबान सरकार के इस फैसले का वैश्विक स्तर पर भी भारी विरोध हो रहा है. तमाम पश्चिमी देशों समेत मानवाधिकार संगठन भी इस फैसले के खिलाफ हैं. अगर घरेलू मोर्चे की बात की जाए तो छात्राओं ने भी भारी विरोध किया हैं. उन्होंने तालिबान के इस फैसले को मानने से बेहतर सिर कटाने को तरजीह दी है. यही नहीं, बीते दिनों महिलाओं के समर्थन में कॉलेज के छात्रों ने भी अपनी-अपनी कक्षाओं का बॉयकाट कर दिया था. ऐसे में अब तालिबान सरकार में ही इस फैसले के खिलाफ आवाज उठना अफगानिस्तान के लिए अच्छी खबर नहीं है. 

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पुरानी पटरी पर लौट आया है तालिबान
तालिबान ने लगभग दो दशकों बाद पिछले साल अगस्त में फिर से काबुल पर कब्जा कर अपनी सरकार बनाई है. अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान में जल्दबाजी से वापसी के बीच तालिबान ने अफगानिस्तान पर आसानी से कब्जा कर लिया था. उस समय अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने तालिबान सरकार को मान्यता देने से इंकार कर सभी को साथ लेते हुए समावेशी सरकार बनाने की मांग भी रखी थी. साथ ही अफगानिस्तान के विदेशों में रखे धन को फ्रीज कर दिया गया था. बदले हालात में तालिबान के शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों ने भी कहा था कि वह पहले वाला तालिबान नहीं है. वह अफगानिस्तान में बदलाव लेकर आएंगे. हालांकि कुछ दिनों बाद ही तालिबान अपनी कट्टरता पर उतर आया. लड़कियों के पहनावे पर पाबंदियां लगाते हुए स्कूली शिक्षा पर रोक लगा दी गई. सार्वजनिक स्थानों पर भी उनकी आवाजाही को लेकर तमाम तरह के प्रतिबंध थोपे गए. इनके लिए भी तालिबान की वैश्विक स्तर पर आलोचना की गई.

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तालिबान के चरमपंथी और उदारवादी खेमे में बढ़ी खाई
अगर तालिबान के लिहाज से देखें तो अमीर हिबतुल्लाह अखुंदजादा का यह फैसला ऐसे समय आया है, जब तालिबान सरकार के चरमपंथी और उदारवादी समूह के बीच राजनीतिक खाई बढ़ती जा रही है. गौरतलब है कि हक्कानी और तालिबान के संस्थापक मुल्ला मुहम्मद उमर के बेटे याकूब उदारवादी गुट का नेतृत्व करते हैं. ये दोनों शीर्ष नेता प्रमुख विदेशी शक्तियों के साथ तालमेल का प्रयास कर रहे हैं. इसके मूल में अफगानिस्तान की बिखरती अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने से जुड़ा संघर्ष भी शामिल है. दोनों का ही सुरक्षा बलों पर गहरा नियंत्रण है और इस कारण देश के बड़े हिस्से पर दबदबा भी. ऐसा लग रहा है कि अफगानिस्तान के दक्षिणी शहर कंधार में बैठे अमीर अखुंदजादा की फिलहाल इन दोनों ही शीर्ष नेताओं से पटरी नहीं बैठ रही है. फिलवक्त तालिबान सरकार में प्रथम उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ही अखुंदजादा का सबसे करीबी है. बताते हैं कि वह भी महिलाओं के उच्च शिक्षा ग्रहण करने का पक्षधर है. इस तरह अखुंदजादा के तीन सबसे वरिष्ठ मंत्री ही महिलाओं की उच्च शिक्षा पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ हो गए हैं. यही नहीं, पहले पहल लड़कियों के शिक्षा लेने के घोर विरोधी रहे कानून मंत्री अब्दुल हाकिम इशाकजई भी इस बार लड़कियों के उच्च शिक्षा के मसले पर प्रतिबंध के खिलाफ हो गए हैं. संभवतः यही एक वजह है कि अखुंदजादा ने कंधार में अपनी सुरक्षा की कमान अब हेमलैंड के गवर्नर मौलवी तालिब को सौंप दी है.

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अखुंदजादा ने महीनों पहले से प्रतिबंध की बिसात बिछानी कर दी थी शुरू
मसले को सुलझाने और राजनीतिक खाई पाटने के लिए तालिबान सरकार के शीर्ष मंत्रियों ने शनिवार को काबुल में आर्ग प्रेसिडेंशियल पैलेस में बैठक भी की थी. इस बैठक से पहले शुक्रवार को हक्कानी ने अखुंदजादा से फोन पर बात कर कॉलेज में महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का कड़ा विरोध किया था. कहा जा रहा है कि हक्कानी ने तालिबान के सर्वोच्च नेता से फोन पर दो टूक कह दिया कि इस प्रतिबंध को लेकर वह अपने समर्थकों का सामना करने या उन्हें इसके पीछे का कारण समझाने में असमर्थ हैं. तालिबान सरकार पर गहरी नजर रखने वाले विश्लेषकों की मानें तो महिलाओं की उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध के निर्णय से कई महीने पहले से अमीर अखुंदजादा ने इसकी भूमिका बनानी शुरू कर दी थी. सितंबर में अखुंदजादा ने शिक्षा मंत्री नूरुल्लाह मुनीर को बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह अपने वफादार मौलवी हबीबुल्लाह आगा को नियुक्त किया. फिर अक्टूबर में अमीर ने अब्दुल बाकी हक्कानी को उच्च शिक्षा मंत्री के पद से हटाया और एक अन्य वफादार नेदा मोहम्मद नदीम को नियुक्त किया.
शिक्षा मंत्रालय प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की देखरेख करता है, जबकि उच्च शिक्षा मंत्रालय विश्वविद्यालयों का प्रभारी होता है. गौरतलब है कि पिछले हफ्ते आए प्रतिबंध के फैसले से पहले लड़कियों के लिए माध्यमिक शिक्षा पर भी रोक लगा दी गई थी.

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अमीर उल मोमनीन यानी अखुंदजादा को बदलने की सोच रहा उदारवादी खेमा
जाहिर है अफगानिस्तान की तालिबान सरकार इस वक्त भयंकर आर्थिक संकट से रूबरू है. इसके अलावा वैश्विक बिरादरी की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों से उसके लिए आगे का रास्ता भी दुरूह होता जा रहा है. ऐसे में तालिबान सरकार का उदारवादी खेमा हिबतुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान प्रमुख या अमीर उल मोमनीन के पद से हटाने पर भी विचार कर रहा है. अगर ऐसा होता है तो मुख्य न्यायाधीश इशाकजई तालिबान नेतृत्व के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर सकते हैं. हालांकि शक्तिशाली कबीलाई सरदारों और वॉर लॉर्ड्स के भी महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर आसीन होने से समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं. उदारवादी खेमा चाहता है कि तालिबान प्रमुख का सर्वोच्च चेहरा कोई पॉवर प्लेयर नहीं हो, बल्कि सभी को स्वीकार्य और विवेक शक्ति संपन्न शख्स हो. एक ऐसा शख्स जो समय के साथ सभी को अपने संग लेकर चल सके. यही वजह है कि तालिबान के दोनों खेमों में बढ़ती खाई से अफगानिस्तान में महिलाओं के उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध का मुद्दा गृह युद्ध के लिए चिंगारी भी साबित हो सकता है.