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Sinking Joshimath को बचाने सरकार तैयार कर रही योजना, जानें क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ

जोशीमठ के स्थाभूधंसाव प्रभावित क्षेत्रों के परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम जारी है. इस बीच सरकार ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर जोशीमठ को बचाने की योजना युद्धस्तर पर तैयार करने की पहल कर दी है.

जोशीमठ के स्थाभूधंसाव प्रभावित क्षेत्रों के परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम जारी है. इस बीच सरकार ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर जोशीमठ को बचाने की योजना युद्धस्तर पर तैयार करने की पहल कर दी है.

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Nihar Saxena
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जोशीमठ की 40 फीसदी इमारतें रहने के लिहाज से असुरक्षित.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Joshimath को हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib) और बद्रीनाथ (Badrinath) का प्रवेश द्वार कहा जाता है, जिसे भूस्खलन-भूधंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है. कस्बे के स्थानीय लोग घरों में आई दरारों के डर से हाड़ कंपाती सर्दी में घर से बाहर रहना ही श्रेयस्कर समझ रहे हैं. जोशीमठ की 600 से अधिक इमारतों में दरारें (cracks) आई हैं. लगभग 70 प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थान पहुंचाने वाले अधिकारियों के लिए भी यह काफी मुश्किल भरा समय है. कई अन्य परिवारों को भी स्थानांतरित करने का काम चल रहा है. रविवार को जिला प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को मदद बतौर आवश्यक घरेलू सामान वितरित किए. रविवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की पहल पर जोशीमठ की वर्तमान स्थिति को लेकर एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक भी हुई. दरारों से संभावित नुकसान की आशंका का आकलन करने के बाद कम से कम 90 और परिवारों को जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएगा. इस बीच एक विशेषज्ञ समिति सोमवार को जोशीमठ का दौरा करने वाली है. वे इस डूबते हिमालयी शहर में मौजूदा स्थितियों का सर्वेक्षण कर अपनी सिफारिशें देंगे.

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जोशीमठ की इमारतों में भारी दरारें
जोशीमठ में कुल 4,500 इमारतें हैं और इनमें से 610 में बड़ी दरारें पड़ गई हैं. इस वजह से ये रहने लायक नहीं रह गई हैं. कई इमारतों की दरारों में से तो भूरभुरी मिट्टी युक्त मटमैला पानी निकल रहा है. शहर की एक बड़ी आबादी पहले ही अपने घरों को छोड़ चुकी है. फिर भी जो लोग बचे हैं वह हाड़ कंपा देने वाले ठंड के मौसम में खुले में सोने के लिए मजबूर हैं. स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को महीनों पहले इस स्थिति के बारे में चेतावनी दी थी. हालांकि किसी ने समय रहते कोई जवाब नहीं दिया और न ही कोई प्रभावी कदम उठाया.

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जोशीमठ में जमीन धंसने पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जानकारों की माने तो जोशीमठ कस्बे में जमीन धंसने की चेतावनी दशकों पहले जारी की गई थी. हालांकि उसे नजरअंदाज कर दिया गया. चूंकि तब से अब तक बहुत सारे विकास कार्य मूर्तरूप ले चुके हैं, तो इनकी वजह से अब कमजोर इमारतों का अनुमान लगाना और भी जरूरी हो गया है.

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जोशीमठ की जमीन धंसने के कारण
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के तपोवन विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से कंपन शहर की जमीन के नीचे महसूस किया जा रहा था. इसे ही वस्तुतः जमीन धंसने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है. इससे जुड़े निर्माण कार्यों से पैदा होने वाले कंपन से जमीन की दरारें भी खुल गई होंगी, जिससे अब कई इलाकों में पानी बाहर निकल रहा है. हालांकि सटीक कारणों का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जोशीमठ खोखली जमीन पर बसा है. शहर के नीचे बलुई मिट्टी होने से जमीन की पकड़ पर्याप्त मजबूत नहीं है. इसकी वजह से भी घरों और अन्य संरचनाओं में बड़ी दरारें आ गई हैं. स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विशेषज्ञों की एक टीम आईआईटी रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट को जोशीमठ की स्थिति का अध्ययन करने और सिफारिशें देने का काम सौंपा गया है.

जलवायु परिवर्तन समेत अन्य कारक संकट बढ़ा रहे 
विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता व्यक्त करते हुए मौसम की अति स्थिति से निपटने के लिए कड़े नियम और कानून बनाने की जरूरत पर बल दिया है. उनका मानना है कि विकास कार्य इस तरह से किया जाना चाहिए कि इससे पहले से मौजूद इमारतों को कोई खतरा उत्पन्न नहीं होने आए. पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक पहले से नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास से और अधिक कमजोर हो गया है.

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पैनल ने अपनी रिपोर्ट में क्या दिए हैं सुझाव
रविवार को आठ सदस्यीय समिति ने जोशीमठ भूधंसाव की जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है. इसमें समिति ने निम्न सुझाव दिए हैं...

  • कस्बे के कई क्षेत्रों से पहले एकत्र किए गए जमीन के नमूने बताते हैं कि अब वे एक खोखले स्थान में तब्दील हो चुके हैं. इसके कारण भूधंसाव हो रहा है.
  • कुछ जगहों पर उबड़-खाबड़ जमीन होने से भवनों की नींव मजबूत नहीं है.
  • पैनल के सदस्यों को मनोहरबाग, सिंहधर और मारवाड़ी इलाकों में नई दरारें मिली हैं. उन्होंने आलोकानंद नदी के तट पर कटाव भी पाया, जिसके कारण जमीन डूब गई है.
  • पैनल की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्रभावित क्षेत्रों की मिट्टी का परीक्षण बगैर देर किए किया जाना चाहिए और मामले की वास्तविक समय पर जांच की जानी चाहिए.
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को पहले से ही अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया जा रहा है, इसलिए जिन इमारतों में दरारें आ गई हैं उन्हें जल्द से जल्द ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए.

HIGHLIGHTS

  • रविवार को हाई लेवल बैठक के बाद विशेषज्ञ करने पहुंचे हैं जांच
  • इसके पहले जोशीमठ की जमीन के सैंपल लेकर होगी उनकी जांच
  • दरार वाले घरों और इमारतों को गिराने का हो सकता है आदेश
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