RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने मुद्रास्फीति और महंगाई पर जताई चिंता
होसबले ने कहा कि कृषि के छात्रों को भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के बारे में भी सीखना चाहिए, जिनमें सर्वोत्तम पारंपरिक कृषि पद्धतियां थीं.
highlights
- भारतीय कृषि पद्धतियां हमेशा समय से आगे रही हैं
- कृषि छात्रों को भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के बारे में सीखना चाहिए
- अनाज मांगने वाला भारत आज एक निर्यातक राष्ट्र बन गया
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने कहा है कि महंगाई और खाद्य कीमतों के बीच संबंध पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.उन्होंने कहा कि जरूरी चीजें सभी के लिए सस्ती होनी चाहिए, लेकिन किसानों को इसका खामियाजा नहीं उठाना चाहिए. आटा और दही जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थों पर बढ़ती कीमतों और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने के मुद्दों पर विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार पर तीखे हमले के बीच शनिवार को होसबले की यह टिप्पणी आई है. आरएसएस नेता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र के साथ आरएसएस-संबद्ध भारतीय किसान संघ द्वारा कृषि पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे.
मुद्रास्फीति और खाद्य कीमतों के बीच संबंध पर अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी द्वारा की गई एक प्रस्तुति (presentation)का उल्लेख करते हुए, होसबले ने कहा, "मुद्रास्फीति और खाद्य कीमतों के बीच संबंध के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है."
होसबले ने कहा, "परजेंटेशन में यह सुझाव दिया गया था कि लोग औद्योगिक उत्पादों के लिए अधिक भुगतान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन खाद्य पदार्थों के लिए नहीं ... कि सहकारी समितियां इस संबंध में एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं.कृषि क्षेत्र में वृद्धि के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "पिछले 75 वर्षों में, कृषि में विकास हम सभी के लिए गर्व की बात है ... कभी अपने कटोरे में अनाज मांगने वाला भारत आज एक निर्यातक राष्ट्र बन गया.
"भारत न केवल अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि अन्य देशों को भी भेज सकता है और इसका श्रेय आज तक की सभी सरकारों, वैज्ञानिकों और किसानों को जाता है."
किसानों का आर्थिक स्तर बढ़ाने की जरूरत पर जोर देते हुए होसबले ने कहा कि कृषि को आकर्षक बनाने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है जिससे गांवों से शहरों की ओर तेजी से पलायन रोकने में मदद मिलेगी.“किसानों के लिए कोई गारंटीकृत आय नहीं है और उनकी आजीविका बारिश जैसे कई बाहरी कारकों पर निर्भर है. बढ़ती लागत ने कृषि की चुनौतियों को बढ़ा दिया हैं.
“लेकिन जिस चीज को मैं नीचे जाते हुए देख रहा हूं, वह है समाज में एक किसान की सामाजिक स्थिति.यहां तक कि सबसे निचले स्तर के सरकारी कार्यक्रमों में भी, मैंने वकीलों और स्कूल के प्रधानाचार्यों को आमंत्रित किया है, लेकिन किसानों को नहीं.” उन्होंने कहा कि ग्रामीण औद्योगीकरण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है जो गांवों से शहरों में अनियोजित प्रवास को रोक सके.पीवी नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किए गए एनसीआरआई को मजबूत करने की जरूरत है.
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यह देखते हुए कि भारतीय कृषि पद्धतियां हमेशा समय से आगे रही हैं, होसबले ने कहा कि कृषि के छात्रों को भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के बारे में भी सीखना चाहिए, जिनमें सर्वोत्तम पारंपरिक कृषि पद्धतियां थीं.
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