जनसंख्या नियंत्रण बिलः मसौदे का लक्ष्य और संवैधानिक चुनौतियां

बिल के अनुसार यदि किसी दंपति के दो से ज्यादा बच्चे हैं तो उन्हें सरकारी नौकरी,सरकारी योजनाओं और सरकारी छूट इत्यादि का लाभ नहीं दिया जाएगा.

बिल के अनुसार यदि किसी दंपति के दो से ज्यादा बच्चे हैं तो उन्हें सरकारी नौकरी,सरकारी योजनाओं और सरकारी छूट इत्यादि का लाभ नहीं दिया जाएगा.

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Nihar Saxena
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रवि किशन ने शुक्रवार को पेश किया जनसंख्या नियंत्रण बिल.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने दो दिन पहले अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि भारत की जनसंख्या (Population) अगले साल चीन से भी ज्यादा हो जाएगी. यूएन की इस रिपोर्ट के अगले ही दिन गोरखपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रवि किशन (Ravi Kishan) ने  लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण बिल (प्राइवेट मेंबर्स बिल) पेश कर दिया. उनका मानना है कि भारत को विश्व गुरु बनने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control) बनाना जरूरी है. गौरतलब है कि प्राइवेट मेंबर्स बिल किसी सांसद द्वारा पेश किए जाने वाले बिल को कहते हैं. आमतौर पर कोई विधेयक किसी मंत्री के द्वारा ही संसद में पेश किया जाता है. सामान्यतः ऐसे विधेयक का कानून बनना सरकार की मदद के बगैर संभव नहीं है. 1970 से संसद में एक भी प्राइवेट मेंबर्स बिल पास नहीं हो सका है. हालांकि रवि किशन से पहले केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल भी अपने एक बयान में कह चुके हैं  कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक कानून जल्द ही लाया जाएगा. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) भी कई बार कह चुके हैं भारत की बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए जाने की जरूरत है. कुछ ऐसी ही बात बीजेपी के कई अन्य नेताओं ने भी की है. 

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जनसंख्या नियंत्रण बिल का मसौदा
प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण बिल का लक्ष्य ऐसे दंपतियों को अलग-थलग करना है, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं. बिल के अनुसार यदि किसी दंपति के दो से ज्यादा बच्चे हैं तो उन्हें सरकारी नौकरी,सरकारी योजनाओं और सरकारी छूट इत्यादि का लाभ नहीं दिया जाएगा. यहां यह जानना भी रोचक रहेगा कि दो-बच्चों की नीति को संसद में 35 बार पेश किया जा चुका है, मगर इसे एक बार भी पारित नहीं किया गया. 2019 में भी जनसंख्या नियंत्रण बिल पेश किया गया था, जिसे 2022 में वापस ले लिया गया. इस बिल में दो बच्चों की नीति मानने वाले दंपतियों को  प्रोत्साहित करने की भी बात की गई थी. कहा गया था कि ऐसे दंपतियों के बच्चों को शिक्षा-होम लोन में लाभ मिलेगा. साथ ही मुफ्त मेडिकल सुविधा और करों में छूट दी जाएगी. बिल में कहा गया था कि दो बच्चों की नीति से रोजगार की बेहतर संभावनाएं भी सामने आएंगी.

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क्या कहता है संविधान
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित सामाजिक प्रगति और विकास प्रस्ताव 1969 के अनुच्छेद 22 में कहा गया है कि किसी भी दंपति को यह निर्णय लेने की आजादी है कि उनके कितने बच्चे होंगे. इसके साथ ही बच्चों की संख्या को नियंत्रित करना अनुच्छेद 16 यानी पब्लिक रोजगार में भागीदारी और अनुच्छेद 21 यानी जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. इसके अलावा रविकिशन द्वारा पेश दो बच्चों संबंधी बिल में कई संवैधानिक चुनौतियों का भी जिक्र नहीं किया गया है. मसलन दो बच्चों की नीति में तलाकशुदा जोड़ों के अधिकारों पर कोई बात नहीं है. साथ ही इस्लाम धर्म मानने वालों के लिए कोई बात नहीं है. इसके पहले भी जो जनसंख्या नियंत्रण बिल पेश किए गए उनमें भी इन बातों पर प्रकाश नहीं डाला गया था.

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कुछ राज्य भी कर चुके हैं पहल
पिछले साल उत्तर प्रदेश विधिक आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण पर एक विधेयक का मसौदा तैयार कर उस पर लोगों से राय मांगी थी. इस मसौदे में कहा गया था कि जिन दंपतियों के दो से अधिक बच्चे होंगे वह स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकेंगे या सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकेंगे. साथ ही उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी छूट से भी वंचित कर दिया जाएगा. इसी तरह की पहल असम विधानसभा में 2017 में हुई थी.  

HIGHLIGHTS

  • शुक्रवार को गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन ने पेश किया जनसंख्या नियंत्रण बिल
  • हालांकि 1970 से आज तक किसी सांसद द्वारा पेश बिल कानून की शक्ल नहीं ले सका
  • संयुक्त राष्ट्र का भी मानना है कि अगले साल भारत आबादी के मामले में चीन से होगा आगे
ravi kishan रवि किशन Giriraj Singh गिरिराज सिंह United Nations प्रह्लाद पटेल संयुक्त राष्ट्र population control जनसंख्या नियंत्रण population control law Prahlad Patel
      
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