Kerala Tussle क्यों विवादों से घिर जाते हैं राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अब मुख्यमंत्री कार्यालय पर तस्करी को संरक्षण देने का बड़ा आरोप लगाया है, तो सीएम पिनराई विजयन ने उन पर हस्तक्षेप करने का आरोप मढ़ा है. मिलते हैं अपनी बेबाकी और विवादों के पर्याय इस राज्यपालसे.
highlights
- अब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सीएमओ पर तस्करी के संरक्षण का आरोप मढ़ा
- इसके पहले कहा था राजभवन की गरिमा कम करने वाले बयानवीर मंत्री बर्खास्त हो
- शाह बानो केस से कैरियर में आया था निर्णायक बदलाव, राजीव सरकार से दे दिया था इस्तीफा
नई दिल्ली:
केरल (Kerala) में राजभवन और राज्य सरकार के बीच जारी विवादों में एक और अध्याय गुरुवार को जुड़ गया. राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammed Khan) ने मुख्यमंत्री कार्यालय पर तस्करी को संरक्षण देने का बड़ा आरोप लगाया है. सीएम पिनराई विजयन के हस्तक्षेप करने के आरोप का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सीएमओ की भूमिका के बाद उनके पास हस्तक्षेप करने का एक बड़ा आधार था. उन्होंने कहा, 'मैंने कभी भी हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन अब मैं देख रहा हूं कि मुख्यमंत्री कार्यालय हर तरह की तस्करी को संरक्षण दे रहा है. अब यदि राज्य सरकार, सीएमओ और मुख्यमंत्री के नजदीकी लोग तस्करी की गतिविधियों से जुड़े रहेंगे, तो निश्चित तौर पर मेरे पास हस्तक्षेप करने का पूरा आधार है.' आरिफ मोहम्मद खान केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन (Pinarayi Vijayan) के उस आरोप का जवाब दे रहे थे, जिसमें उन पर राज्य के विश्वविद्यालयों को आरएसएस और संघ परिवार का अड्डा बनाने के आरोप लगाया गया था. हालिया दिनों में भी राज्यपाल और सरकार के बीच कई राज्यों में असहमति सामने आई है, लेकिन आरिफ मोहम्मद खान के बयान अक्सर तूल पकड़ लेते हैं. कुछ हफ्ते पहले भी उन्होंने कहा था कि यदि राज्य के मंत्री राजभवन की गरिमा कम करने वाले बयान देते हैं, तो उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए.
कई पार्टियों में रहे आरिफ खान
महज 26 साल की उम्र में विधायक बने आरिफ मोहम्मद खान के लिए अपने बयानों से विवादों में रहना कोई नई बात नहीं है. वह कांग्रेस, जनता दल से लेकर बीएसपी और बीजेपी तक में रहे हैं. 2002 के गुजरात दंगों के बाद उन्होंने बीएसपी से इसलिए नाता तोड़ लिया था क्योंकि वह बीजेपी से हाथ मिला रही थी. उन्होंने तब बीएसपी पर गुजरात में सबसे बर्बर, अभूतपूर्व और विकृत हिंसा में लिप्त लोगों से हाथ मिलाने का बड़ा आरोप लगाया था. यह अलग बात है कि दो सालों बाद ही वह खुद बीजेपी का हिस्सा बन गए. हालांकि 2007 में उन्होंने बीजेपी छोड़ दी थी.
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#WATCH | (Kerala CM) saying I am doing this (action against VCs) to bring RSS people. If I have nominated even one person, not just of RSS, any person, using my authority, then I will resign. Will he (CM) be able to resign if he is not able to prove it?: Kerala Governor AM Khan pic.twitter.com/znoWBu9iU3
— ANI (@ANI) November 3, 2022
शुरुआती राजनीतिक कैरियर
आरिफ मोहम्मद खान ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत छात्रसंघ की राजनीति से की थी. वह 1970 के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष और महासचिव चुने गए थे. उन दिनों भी आरिफ मोहम्मद खान ने मौलवियों को यूनिवर्सिटी में आने का निमंत्रण देने से इंकार कर दिया था. फिर 26 की उम्र में वह उत्तर प्रदेश की सियाना विधानसभा सीट पर जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए और मंत्री परिषद में भी लिए गए. हालांकि लखनऊ में शिया-सुन्नी के बीच हुए दंगों में सरकार के रवैये से नाखुश होकर इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए. 1980 में ऑल इंडिया कांग्रेस समिति में संयुक्त सचिव रहते हुए पहली बार लोकसभा पहुंचे. उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिली. उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा मिला था.
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शाह बानो केस और उसके बाद
उनके कैरियर में निर्णायक क्षण 1986 में आया. उस समय वह राजीव गांधी सरकार में गृह मंत्रालय समेत ऊर्जा, उद्योग और कंपनी मामलों के मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे थे. शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए विधेयक लाने के बाद उन्होंने राजीव गांधी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. आरफि खान का यह कदम उन्हें प्रगतिशील और दक्षिणपंथी नेताओं के तो करीब ले आया, लेकिन मुल्ला-मौलवियों समेत कांग्रेस के नेताओं को खासा नाराज कर दिया. राजीव गांधी ने आरिफ खान को कांग्रेस से निकाल दिया तो उन्होंने वीपी सिंह से हाथ मिलाया और जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गए. वीपी सिंह सरकार के गिर जाने के बाद उन्होंने बीएसपी से हाथ मिलाया और पार्टी के महासचिव बनाए गए. 2002 में गुजरात दंगों के बाद जब बीएसपी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मदद से सरकार बनाने जा रही थी, तो उन्होंने बीएसपी से त्यागपत्र दे दिया. हालांकि दो साल बाद वह खुद बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन बीजेपी के टिकट पर केसरगंज सीट से लोकसभा चुनाव हार गए. फिर तीन साल बाद दागियों को टिकट देने के आरोप लगाते हुए उन्होंने बीजेपी से भी इस्तीफा दे दिया.
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राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
आरिफ मोहम्मद खान शाह बानो केस में अपने पक्ष को लेकर कभी उबर नहीं सके. वे शिद्दत से मानते थे कि इस मामले में उनके पक्ष और कांग्रेस की आलोचना ने भारतीय राजनीति में दो बातों की नींव डाली. एक कांग्रेस के पतन की, दूसरे भारतीय जनता पार्टी को तीन तलाक कानून जैसे सुधारवादी कदम उठाने के लिए प्रेरित किया. आरिफ खान को सुर्खियों में बने रहना आता है. उनकी छवि एक सौम्य प्रगतिशील मुस्लिम की है, जो पूरी धाकड़ता के साथ अंग्रेजी में भी बात कर लेते हैं. बीजेपी ने बाद में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया, तो इस पर कई लोगों की त्योरियां भी चढ़ीं. यद्यपि वह लगातार राज्य सरकार के खिलाफ आस्तीन चढ़ाए रहते हैं, लेकिन उन्होंने अपने छवि लोगों के राज्यपाल के रूप में भी बनाई है. अक्सर मुंडू पहने नजर आने वाले आरिफ मोहम्मद खान ने सामाजिक स्तर पर कई बेहतरीन कामों को भी अंजाम दिया है. वह केरल के मुसलमानों की अक्सर तारीफ करते पाए जाते हैं. उन्हें यह कहने में भी गुरेज नहीं रहा है कि केरल के मुसलमान उत्तर के मुस्लिमों की तुलना में मुल्ला-मौलवियों से दूर रहते हैं.
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