Jallikattu: तमिलनाडु का पारंपरिक खेल, जीत के लिए लगती है जान की बाजी
जल्लीकट्टू ( JalliKattu ) तमिल नाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल के त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है. इस खेल में बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव ( Pride of Tamil Nadu ) तथा संस्कृति...
highlights
- तमिल संस्कृति से जुड़ा है जल्लीकट्टू
- सांड को बस में करने की होती है कोशिश
- हर साल सैकड़ों लोग होते हैं हताहत
नई दिल्ली:
JalliKattu : कुछ साल पहले तक जल्लीकट्टू लगातार मीडिया की हेडलाइन्स में जगह पाता रहा था. वजह थी, तमाम वो याचिकाएं, जिसमें जल्लीकट्टू पर रोक लगाने की मांग की गई थी. इस मामले में सरकार की भी काफी फजीहत हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाया था. फिर धीरे-धीरे मामला शांत पड़ गया. अब जल्लीकट्टू का जिक्र आता है पोंगल पर. जिस त्यौहार पर जल्लीकट्टू का लोकप्रिय खेल तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश तक में खेला जाता है. अब जल्लीकट्टू का जब भी जिक्र आता है, तो लोगों के घायल होने की खबरें आती हैं. भगदड़ की खबरें आती हैं और कौन इस खेल में जीता, वो अखबारों की सुर्खियों में आ जाता है. लेकिन ये जल्लीकट्टू है क्या, और क्यों लोग ये खतरनाक खेलते हैं जिसमें जान की बाजी लगा दी जाती है. आइए, हम समझाते हैं.
क्या है जल्लीकट्टू?
जल्लीकट्टू ( JalliKattu ) तमिल नाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल के त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है. इस खेल में बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव ( Pride of Tamil Nadu ) तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है. ये 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है. जल्लीकट्टू खेल को पुराने समय में येरुथाझुवुथल ( Eru thazhuvuthal ) से भी जाना जाता था. जिसका मतलब है जल्लीकट्टू को गले लगाना. जल्ली का मतलब है सिक्के और कट्टू का शाब्दिक अर्थ है थैला. ऐसे में इस खेल का सही मतलब हुआ सिक्कों भरा थैला हासिल करने की जंग. सिक्कों से भरा ये थैला बैल की सींगों में बंधा होता है, और जो उस भयानक बैल को काबू में करता है, उसे ये थैला मिल जाता है. जल्लीकट्टू का मुख्य खेल मदुरई के पास अलंगनल्लूर में आयोजित किया जाता है.
ये है जल्लीकट्टू के नियम
जल्लीकट्टू खेल में प्रतियोगी को एक समय में बैल के कूबड़ को पकड़ने की कोशिश करनी होती है. बैल को वश में करने के लिए इसकी पूंछ और सींग को पकड़ा जाता है. और बैल को एक लंबी रसी से भी बंधा जाता है. और जीतने के लिए एक समय सीमा में बैल को काबू में करना होता है. अगर तय समय में प्रतियोगी ऐसा नहीं कर पाता है, तो वो हारा हुआ मान लिया जाता है.
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संगम साहित्य में भी जल्लीकट्टू का जिक्र
यूं तो जल्लीकट्टू का जिक्र संगम साहित्य तक में है, लेकिन माना जाता है कि बीच के समय में जल्लीकट्टू का खेल लगभग खत्म हो गया था. साथ ही बैलों के साथ क्रूरता भी नहीं होती थी. लेकिन नए जमाने में ये खेल काफी आक्रामक बना दिया गया है. कई बार भड़के बैल भीड़ में भी घुस जाते हैं, जिसकी वजह से काफी लोग घायल भी होते हैं, तो कई बार दर्शकों की मौतों की भी खबरें सामने आती रही हैं.
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