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Indian Antarctic Bill 2022: अंटार्कटिका के भारतीय रिसर्च सेंटर पर लागू करेगा हमारे कानून

इस विधेयक के कानून में तब्दील होने के बाद भारतीय मिशन से जुड़े लोगों और भारतीय मिशन के इलाके में भारतीय कानून मान्य होंगे और किसी नियम के उल्लंघन के दोषियों की सुनवाई भारतीय अदालतों में होंगी.

Updated on: 23 Jul 2022, 03:15 PM

highlights

  • 'नो मैन्स लैंड' में वातावरण संरक्षण तथा गतिविधियों का होगा विनियमन
  • अभी अंटार्कटिका महाद्वीप में अंतरराष्ट्रीय कानून लागू हैं
  • इस बिल के कानून बन जाने से भारतीय कानून होंगे प्रभावी 

नई दिल्ली:

विपक्ष के भारी हंगामे के बीच लोकसभा में इस सत्र का पहला विधेयक पारित हुआ. इस बिल का नाम है भारतीय अंटार्कटिका विधेयक 2022, जो इस 'नो मैन्स लैंड' में वातावरण के संरक्षण तथा क्षेत्रीय गतिविधियों को विनियमन के दायरे में लाने के उद्देश्य से लाया गया है. इस विधेयक के कानून बन जाने से भारत के राष्ट्रीय कानून यहां लागू हो सकेंगे. गौरतलब है कि अंटार्कटिका में भारत के तीन स्थायी शिविर हैं. इनमें 1983 में स्थापित 'दक्षिण गंगोत्री', 1988 का 'मैत्री' और सबसे हालिया 2012 में स्थापित किया गया 'भारती है. इस विधेयक के बल पर अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत अंटार्कटिका क्षेत्र में भारतीय कानून को स्थापित करने की व्यवस्था देता है. फिलहाल अभी वहां पर भारत का अपना कोई कानून लागू नहीं होता, अंतरराष्ट्रीय कानून ही लागू होते हैं. इस विधेयक के कानून में तब्दील होने के बाद भारतीय मिशन से जुड़े लोगों और भारतीय मिशन के इलाके में भारतीय कानून मान्य होंगे और किसी नियम के उल्लंघन के दोषियों की सुनवाई भारतीय अदालतों में होंगी.

1981 में लांच हुआ था भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम
गौरतलब है कि अंटार्कटिका पृथ्वी के सबसे दक्षिणी हिस्से में स्थित महाद्वीप है. दुनिया के विभिन्न देशों ने यहां रिसर्च केंद्र स्थापित कर रखे हैं. इस कड़ी में भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम 1981 में ही लांच हुआ था और पहला केंद्र 'दक्षिण गंगोत्री' 1983 में बनाया गया था. फिलहाल वहां 'मैत्री' और 'भारती' ही सक्रिय अनुसंधान केंद्र हैं. अभी तक भारत अंटार्कटिका में 40 सफल वैज्ञानिक मिशन पूरे कर चुका है. पहला अभियान दल डॉ. एस जेड कासिम के नेतृत्व में गया था, जिसमें 21 वैज्ञानिकों और सहायक कर्मचारियों की एक टीम शामिल थी. 

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भारतीय अंटार्कटिक विधेयक 2022  
अंटार्कटिका क्षेत्र में जो भी संस्थान हैं वे अपने आप को शोध तक सीमित रखें, इस संदर्भ में ये विधेयक महत्वपूर्ण है. यह बिल अंटार्कटिका में कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित कर देगा, जैसे परमाणु विस्फोट या रेडियोएक्टिव कचरे का निस्तारण, उपजाऊ मिट्टी को ले जाना और समुद्र में कचरा, प्लास्टिक या समुद्री वातावरण के लिए नुकसानदेह पदार्थों को निस्तारित करना. यह बिल उन व्यक्तियों, जहाजों पर लागू होगा जो बिल के तहत जारी परमिट के अंतर्गत अंटार्कटिक के लिए भारतीय अभियान का हिस्सा होंगे. इसके माध्यम से उम्मीद की जा रही है कि भारत अंटार्कटिका संधि 1959, अंटार्कटिका जलीय जीवन संसाधन संरक्षण संधि 1982 और पर्यावरण संरक्षण पर अंटार्कटिका संधि प्रोटोकाल 1998 के तहत अपने अनुसंधानों को सफलतापूर्वक पूरा कर सकेगा. विधेयक का मसौदा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने ही तैयार किया है. 

ये होंगे फायदे 

    • वैज्ञानिक शोध के लिए पहले से इजाजत लेनी होगी
    • अंटार्कटिका के जीव, पक्षी, पौधों और सील मछलियों को नुकसान पहुंचाना अपराध होगा
    • गोला-बारूद के इस्तेमाल पर पाबंदी ताकि यहां के पर्यावरण या जीव-जंतुओं का नुकसान नहीं हो
    • ऐसे पशु-पक्षियों, जीवों या पौधे वहां नहीं ले जाए जा सकेंगे, जो वहां प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते
    • विधेयक के कानून बन जाने के बाद उल्लंघन पर सजा और जुर्माने लगाया जा सकेगा