Gehlot vs Pilot हिमाचल-गुजरात चुनाव परिणाम बने राजस्थान में सत्ता संघर्ष के नए प्रतीक, समझें इस खेल को
सचिन पायलट समर्थकों का कहना है आलाकमान को सबक लेना चाहिए कि कांग्रेस हिमाचल प्रदेश चुनाव जीत गई, जहां पायलट पर्यवेक्षक थे. इस जीत के बरक्स गुजरात चुनाव कांग्रेस हार गई, जहां अशोक गहलोत ने भूमिका निभाई थी.
highlights
- गुजरात में अशोक गहलोत तो हिमाचल में सचिन पायलट पर थी कांग्रेस चुनाव की जिम्मेदारी
- गुजरात चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक हार मिली, तो हिमाचल प्रदेश में शानदार जीत
- इस हार-जीत पर राजस्थान में गहलोत-पायलट खेमा सत्ता संघर्ष को लेकर फिर मुखर है
नई दिल्ली:
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों की प्रतिध्वनि राजस्थान में भी महसूस की जा रही है. यह अलग बात है कि राज्य में यथास्थिति में बदलाव की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती. गुजरात चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक थे. गहलोत कैबिनेट में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा को गुजरात चुनाव का राज्य प्रभारी बनाया गया था. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) चुनाव के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वरिष्ठ पर्यवेक्षक थे, तो कांग्रेस नेताओं सचिन पायलट (Sachin Pilot) और प्रताप सिंह बाजवा को जुलाई में पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था. 2017 गुजरात (Gujarat) विधानसभा चुनाव में 77 सीटें जीतने वाली कांग्रेस का 2022 में प्रदर्शन 17 सीटों पर आ गया. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 182 में से 156 सीटों पर कब्जा किया. यह गुजरात चुनाव में किसी भी पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस (Congress) 68 में से 40 सीटों पर जीत के साथ सरकार बनाने जा रही है. हिमाचल में भाजपा 25 की संख्या पर ही सिमट गई है.
पायलट समर्थक सोशल मीडिया पर मना रहे हिमाचल की जीत का जश्न
सचिन पायलट के समर्थक हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत का जश्न सोशल मीडिया पर मना रहे हैं. कई पायलट समर्थकों ने पूर्व उपमुख्यमंत्री को राजस्थान की बागडोर फिर से सौंपने का आह्वान भी किया है. 'पीढ़ीगत परिवर्तन' के समर्थक कांग्रेस नेता सुशील असोपा ने ट्वीट किया: 'कांग्रेस मोदी के गृह राज्य में चुनाव नहीं जीत सकी, लेकिन प्रियंका गांधी और सचिन पायलट ने भाजपा अध्यक्ष (जेपी) नड्डा के गृह राज्य में भगवा पार्टी को हरा दिया. अब समय आ गया है कि राज्य की परवाह किए बगैर कांग्रेस की कमान युवा हाथों में सौंप दी जाए.' इसी तरह पायलट समर्थक विक्रम सिंह मीणा ने राहुल गांधी को टैग करते हुए ट्वीट किया, 'अभी भी वक्त है राहुल गांधीजी, राजस्थान को बचाना है तो सचिन पायलट को ले आइए.' मीणा भारतीय किसान यूनियन के यूथ विंग के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. पायलट के एक अन्य वफादार ने कहा, 'पूर्व डिप्टी सीएम ने हिमाचल में 20 से अधिक रैलियों को संबोधित किया और उनमें से अधिकांश में कांग्रेस की जीत हुई. कांग्रेस में कोई और युवा नेता नहीं है, जो पायलट की तरह देश भर में भीड़ खींच सके. पिछले ती दशकों में राजस्थान में भी मौजूदा सरकार फिर से नहीं चुनी गई है. केवल सचिन पायलट ही भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं.'
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अशोक गहलोत ने पायलट को श्रेय न दे वादों को बताया जीत का कारक
संयोग से शुक्रवार को हिमाचल नतीजों के बारे में बोलते हुए अशोक गहलोत ने पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल करने के कांग्रेस के चुनावी वादे को जीत का एक प्रमुख कारक बताया. सचिन पायलट का कोई जिक्र न करते हुए उन्होंने कहा, 'प्रचार अच्छा चला और उपयुक्त उम्मीदवारों को टिकट दिए गए. प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया, लेकिन इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश चुनाव जीतने में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने के वादे की भी बहुत बड़ी भूमिका रही. दूसरी ओर कुछ मीडिया आउटलेट्स से बात करते हुए सचिन पायलट ने गुजरात के नतीजों को उम्मीदों से काफी कम करार दिया. उन्होंने कहा, 'हिमाचल के नतीजे बताते हैं कि अगर कांग्रेस सही रणनीति और अभियान चला प्रभावी ढंग से अपना संदेश देती है, तो हम भाजपा को हरा सकते हैं.' गौरतलब है कि लंबे समय से राजस्थान में सत्ता हस्तांतरण की मांग कर रहे पायलट खेमे का तर्क है कि राजस्थान में यथास्थिति को केवल एक नए सीएम के माध्यम से तोड़ा जा सकता है और वह है सचिन पायलट.
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हिमाचल के नतीजों का नही पड़ेगा राजस्थान की उठा-पटक पर असर
हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी सरकार को न दोहराने का रिवाज 1985 में भी टूटा था. विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में सत्ताधारी दल कांग्रेस ने फिर वापसी की थी. ऐसे में अशोक गहलोत खेमे का स्वाभाविक तर्क है कि पायलट की भागीदारी होने या न होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में जय राम ठाकुर सरकार को बदलना पहले से तय था. बीजेपी हिमाचल के रिवाज को लगभग बदल चुकी थी. उसे कांग्रेस के 43.9 फीसदी वोटों के मुकाबले 43 फीसदी वोट मिले थे. यानी महज दशमलव 9 प्रतिशत के वोट शेयर के हेरफेर से केसरिया पार्टी दोबारा सरकार बनाने से चूक गई. 0.9 फीसद वोट शेयर का मतलब आंकड़ों की भाषा में यह निकलता है कि कांग्रेस ने 37,974 वोटों के अंतर से बीजेपी को फिर सरकार बनाने से रोक दिया. कह सकते हैं कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में आए नतीजे भले ही पायलट खेमे को भा रहे हों, लेकिन राजस्थान की राजनीति पर इसका ज्यादा असर पड़ने की संभावना नहीं है. सीएम अशोक गहलोत की पार्टी के अधिकांश विधायकों पर मजबूत पकड़ है. इसके साथ ही उन्होंने एक से अधिक बार यह स्पष्ट कर दिया है कि वह स्वेच्छा से पद नहीं छोड़ेंगे. भले ही आलाकमान ऐसा करे. गहलोत कांग्रेस की योजनाओं के केंद्र में भी बने हुए हैं. मुख्यमंत्री पद में बदलाव को लेकर उनके समर्थकों के लगभग विद्रोह के बावजूद आलाकमान ने जिम्मेदारियों को देने से अपने हाथ नहीं खींचे हैं.
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