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FIFA World Cup: विश्व कप से जल्द बाहर होने वाला पहला मेजबान बना Qatar, जानें अन्य का हाल

केवल पांच दिनों का सफर तय करने वाली कतर की फुटबॉल टीम ग्रुप चरण में ही बाहर होने वाली दूसरी टीम बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी है. समीकरणों के आधार पर देखें तो कतर के पास ग्रुप चरण क्वालीफाई करने का एक मौका था.

Updated on: 27 Nov 2022, 09:56 PM

highlights

  • फीफा विश्व कप 202 में कतर का सफर महज पांच दिन ही चला
  • नीदरलैंड्स इक्वाडोर के ड्रॉ मैच से ग्रुप स्टेज में बाहर हुआ कतर
  • अब तक 21 वर्ल्ड कप के 22 मेजबानों में 21 ग्रुप स्टेज से आगे गए 

नई दिल्ली:

नीदरलैंड्स के इक्वाडोर के खिलाफ एक नीरस ड्रॉ खेलते ही फीफा विश्व कप 2022 (FIFA World Cup 2022) में मेजबान कतर के 'दुर्भाग्य' पर मुहर लग गई थी. इस विश्व कप (FIFA WC) में केवल पांच दिनों का सफर तय करने वाली कतर की फुटबॉल टीम ग्रुप चरण में ही बाहर होने वाली दूसरी टीम बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी है. समीकरणों के आधार पर देखें तो कतर के पास ग्रुप चरण क्वालीफाई करने का एक मौका था. हालांकि मेजबान टीम कतर से इस टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी, फिर भी उसके इस तरह बाहर होने ने कई लोगों को चौंका दिया. आखिरकार कतर ने पिछले 12 साल इस टूर्नामेंट की तैयारी में बिताए. बड़े पैमाने पर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की तलाश की और उनके विकास पर बड़ी रकम खर्च की. इस तरह कतर (Qatar) 92 साल के इतिहास में टूर्नामेंट से बहुत जल्द बाहर होने वाला पहला मेजबान देश बन गया है. ऐसे में हम देखते हैं कि फीफा विश्व कप (FIFA World Cup) में मेजबान देशों ने कैसा प्रदर्शन किया और क्या मेजबान होने से टूर्नामेंट में उन्हें फायदा होता है या नुकसान...

क्या कहते हैं आंकड़े
अगर 2022 फीफा विश्व कप और उसके मेजबान कतर को अलग कर दें, तो अब तक 21 फीफा वर्ल्ड कप हो चुके हैं. इन विश्व कप के 22 मेजबान हुए हैं, क्योंकि 2002 विश्व कप की जापान और कोरिया ने संयुक्त मेजबानी की थी. इन 22 मेजबानों में से 21 टूर्नामेंट के पहले दौर से आगे तक गए. 2010 में इसका एकमात्र अपवाद दक्षिण अफ्रीका था, जिसे उरुग्वे, मैक्सिको और फ्रांस के साथ एक कड़े ग्रुप में रखा गया था. ग्रुप चरण में फ्रांस से 2-1 से मैच जीत कर फ्रांस की टीम और उसके प्रशंसकों का दिल तोड़ने वाला दक्षिण अफ्रीका अपने ग्रुप में तीसरे स्थान पर रहा था. दक्षिण अफ्रीका के बाद शेष बचे 21 मेजबानों में से छह ने फीफा विश्व कप पर कब्जा किया और अन्य दो ने फाइनल में अपनी जगह बनाई. ऐतिहासिक रूप से इसका मतलब यह निकलता है कि 38 फीसदी मेजबान देश टूर्नामेंट के फाइनल तक पहुंचने में कामयाब रहे. 29 फीसदी मेजबान देश फाइनल मैच जीत विश्व कप पर कब्जा करने में सफल रहे. हालांकि ये आंकड़े भी तस्वीर का पूरा खाका नहीं खींचते हैं. आखिरकार विश्व कप ज्यादातर उन देशों में हुए हैं, जिनकी पहले से ही अच्छी फुटबॉल टीमें रहीं. यह तार्किक समझ है कि बेहतरीन फुटबॉल टीम ही विश्व कप रूपी महाकुंभ में अच्छा प्रदर्शन करेगी. बेहतर सवाल तो यह होगा कि क्या मेजबान देशों ने विश्व कप में अपेक्षाओं से अधिक या कमतर प्रदर्शन किया? इसका भी सटीक उत्तर देना कठिन है, क्योंकि फीफा रैंकिंग 1992 के अंत में शुरू हुई थी. इसके पहले किसी भी टीम का आकलन करने के लिए अधिक व्यक्तिपरक मूल्यांकन पर भरोसा करना होगा. दूसरे फीफा रैंकिंग तय करने की प्रक्रिया बिल्कुल सही नहीं है. रैंकिंग प्रक्रिया शुरू होने के बाद से रैंकिंग में पहले स्थान पर रहने वाली टीम ने कभी भी विश्व कप नहीं जीता है.

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इतिहास पर डालते हैं एक नजर
पहले दो विश्व कप मेजबान राष्ट्र क्रमशः 1930 में उरुग्वे और 1934 में इटली ने जीते थे. 1938 विश्व कप में मेजबान फ्रांस मौजूदा चैंपियन इटली से हार गया. इटली ने लगातार दूसरी बार विश्व कप ट्रॉफी पर कब्जा किया था. फुटबॉल इतिहासकारों के मुताबिक इन शुरुआती विश्व कपों ने अन्य मेहमान टीमों विशेषकर लंबी दूरी की यात्रा कर आने वाली फुटबॉल टीमों के लिए बड़ी चुनौतियां पेश कीं. पहले विश्व कप में कई यूरोपीय टीमों ने दक्षिण अमेरिका तक यात्रा करने से मना कर दिया था, जो पहुंचे भी उन्होंने समुद्री रास्ता अपनाया था. शुरुआती टूर्नामेंटों ने वास्तव में 'घरेलू महाद्वीप लाभ' को सही अर्थों में चरित्रार्थ किया था. जब विश्व कप यूरोप में होगा तो यूरोपीय टीमें जीतेंगी, जब अमेरिका में होगा तो दक्षिण अमेरिकी जीतेंगे. 2002 तक इस मानदंड का एकमात्र अपवाद 1958 विश्व कप है, जब स्वीडन में ब्राजील ने जीत दर्ज की थी. यह विश्व कप पहली बार अमेरिका या यूरोप के बाहर आयोजित किया गया था.

अपेक्षा से कहीं बेहतर प्रदर्शन करने वाले मेजबान देश
स्वीडन ने 1958 विश्व कप की मेजबानी की थी. स्वीडन के पास एक सम्मानजनक टीम थी, लेकिन वे फ्रांस, इटली या जर्मनी की तरह यूरोप के फुटबॉल पॉवरहाउस नहीं थे. स्वीडन सेमी-फाइनल तक पहुंचा, लेकिन ब्राजील के गैरिंचा और पेले के आगे हारकर बाहर हो गया. चिली ने 1962 विश्व कप की मेजबानी की थी. चिली टूर्नामेंट की सबसे प्रतिभाशाली टीम नहीं थी, लेकिन उसने अपनी शारीरिक क्षमता और आक्रामकता से इसकी भरपाई कर दी. कट्टर इटली के खिलाफ चिली का मुकाबला किन्हीं दो बड़ी सेनाओं के युद्ध की तरह था, जिसमें चिली 2-0 से जीता. इस मैच की आक्रामकता और जुझारूपन की वजह से फुटबॉल इतिहास में इस मैच को 'बैटल ऑफ सैनटियागो' के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि फाइनल में पेले की ब्राजील टीम ने चिली को टूर्नामेंट से बाहर कर दिया. कोरिया यकीनन विश्व कप इतिहास का सबसे बड़ा 'अंडरडॉग' साबित हुआ था. अपने घरेलू प्रशंसकों के सामने कोरिया ने पुर्तगाल, इटली और स्पेन जैसे पॉवरहाउस को हरा सेमी-फाइनल तक का सफर तय किया. यह अलग बात है कि कोरिया सेमी-फाइनल में जर्मनी से हार गया. यूरोप और दक्षिण अमेरिका के बाहर किसी मेजबान देश द्वारा विश्व कप में यह अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है.

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जब मेजबान देश को मिली घोर निराशा
मेजबान ब्राजील रियो के माराकाना में एक लाख से अधिक उन्मादी घरेलू प्रशंसकों के सामने अंडरडॉग उरुग्वे से हार गया. यह फीफा विश्व कप टूर्नामेंट में अब तक के सबसे बड़े उलटफेरों में से एक करार दिया जाता है, जिसे आज माराकानाज़ो के रूप में याद किया जाता है. इस मैच में अल्काइड्स घिगिया ने दूसरे हाफ में उरुग्वे की वापसी कराई और इसके परिणामस्वरूप ब्राजील को जीत का स्वाद चखने के लिए अगले आठ साल तक इंतजार करना पड़ा. स्पेन को 1982 के विश्व कप के दूसरे ग्रुप चरण में ही बाहर होना पड़ा. उस दौर में टूर्नामेंट के नॉकआउट चरण अलग तरह से संचालित होते हैं. चार-चार टीमों के छह ग्रुप राउंड रॉबिन फॉर्मेट में मुकाबला करते थे. ग्रुप स्टेज के दूसरे चरण में तीन-तीन टीमों के चार समूहों के बीच सेमी-फाइनल में जगह बनाने के लिए मुकाबला होता था. ऐसे में स्पेन दूसरे चरण के ग्रुप बी में अंतिम स्थान पर रहा. हालांकि स्पेन एक अच्छे खिलाड़ियों वाली टीम थी. इसमें शायद ही किसी को शक हो कि 1990 में इटवीएक बेहतरीन टीम थी.  उनके पास बारसी और मालदिनी जैसे शारीरिक रूप से सक्षम और तकनीकी रूप से ठोस डिफेंडर्स, एंसेलोटी जैसे मिडफ़ील्डर और रॉबर्टो बैगियो सरीखे फॉरवर्ड खिलाड़ी हुआ करते थे. दुर्भाग्य से अर्जेंटीना के खिलाफ शूटआउट में डोनाडोनी और बग्गियो पेनल्टी किक से चूक गए और इटली को निराशाजनक ढंग से खिताब की दौड़ से बाहर होना पड़ा. 2014 के विश्व कप के सेमी-फाइनल में ब्राजील का दिल टूट गया, क्योंकि जर्मनी ने उन्हें सबसे बड़ी जीत 7-1 से हराया था. इस मैच में नेमार ऐड़ी की चोट, तो थागो सिल्वा निलंबन के कारण नहीं खेले थे. बहरहाल इसके बाद जो हुआ उसने ब्राजील के धुर प्रशंसक को भी चौंका दिया. जर्मनी की टीम इस कदर ब्राजील पर हावी रही कि उनके कोच को दूसरे हाफ में मेजबान को 'सम्मान से बाहर भेजने के लिए आसानी से खेलने' को कहना पड़ा था.

मेजबान होना मददगार या एक किस्म का नुकसान
पिछले 21 विश्व कप का इतिहास बताता है कि मेजबान होने के अपने फायदे हैं. घरेलू प्रशंसकों की भीड़ टीम को उत्साहित करती है और वह उनके उत्साह से ग्रुप स्टेज आसानी से पार कर लेते हैं. इसके अलावा मेजबान घरेलू टूर्नामेंट के लिए अतिरिक्त मेहनत भी करते हैं. आखिरकार घरेलू प्रशंसकों के सामने खेलना जीवन में एक बार ही मिलने वाला अवसर होता है. ऐसे में प्रत्येक देश अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करता है. हालांकि अंत में खेल की गुणवत्ता मायने रखती है. विशेष रूप से आधुनिक फुटबॉल में जहां लंबी दूरी की यात्राओं और विदेशी सरजमीं के अहसास से जुड़ी समस्याओं को काफी हद तक कम कर दिया गया है. मेजबान होने के नाते दबाव का स्तर भी बढ़ जाता है. जिसके अजीब परिणाम सामने आ सकते हैं. 1950 और 2014 के दो मैच इसका उदाहरण हैं, जब ब्राजील हार गया. हो सकता है कि 2022 विश्व कप में कतर की टीम ने खुद इसी दबाव के आगे घुटने टेक दिए हों. बार्सिलोना की प्रतिष्ठित ला मासिया अकादमी के  कोच फेलिक्स सांचेज़ की निगाहबीनी में कतर ने गेंद पर कब्जे और हाई प्रेशर को काबू में करते हुए एक बहुत ही प्रगतिशील शैली फुटबॉल खेली. टूर्नामेंट के रन-अप में कतर ने कुछ मजबूत एशियाई टीमों के खिलाफ 2019 में एएफसी एशियन कप जीतकर शानदार प्रदर्शन किया. हालांकि इस विश्व कप में स्थितयां विपरीत पड़ गईं, जिसने उन्हें फीफा विश्वकप टूर्नामेंट की मेजबानी कर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली टीम का दर्जा दिला दिया.