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Explainer: महाराष्ट्र की राजनीति में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव को हमेशा से सत्ता का सेमीफाइनल माना जाता है. देश की सबसे अमीर नगर निगम होने के कारण BMC सिर्फ स्थानीय निकाय नहीं, बल्कि राजनीतिक ताकत, संगठन और फंडिंग का बड़ा केंद्र है. ऐसे में सवाल उठता है कि एनसीपी (SP) प्रमुख शरद पवार के लिए ये चुनाव क्यों इतने अहम हैं और क्या भतीजे अजित पवार के साथ संभावित तालमेल उन्हें फायदा पहुंचा सकता है?
शरद पवार के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति क्यों?
शरद पवार की राजनीति हमेशा ग्रामीण महाराष्ट्र और सहकार क्षेत्र में मजबूत रही है, लेकिन मुंबई जैसे शहरी इलाके में NCP की पकड़ कभी बहुत मजबूत नहीं रही. पार्टी विभाजन के बाद यह कमजोरी और बढ़ गई है.
BMC चुनाव शरद पवार के लिए तीन वजहों से अहम हैं:
1. शहरी राजनीति में प्रासंगिकता बनाए रखना
अगर NCP (SP) बीएमसी चुनाव में कमजोर प्रदर्शन करती है, तो यह संदेश जाएगा कि पार्टी केवल ग्रामीण इलाकों तक सिमट चुकी है. इसका सीधा असर पार्टी के अस्तित्व पर भी पड़ सकता है.
2. कार्यकर्ताओं का मनोबल
लगातार चुनावी झटकों के बाद कार्यकर्ताओं को एक बड़ी जीत या सम्मानजनक प्रदर्शन की सख्त जरूरत है. अगर इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहता है तो ये शरद पवार के साथ-साथ पार्टी के लिए भी सबसे मुश्किल वक्त होगा.
3. भविष्य की गठबंधन राजनीति
BMC के नतीजे तय करेंगे कि आगे चलकर शरद पवार किस ताकत के साथ मोलभाव कर सकते हैं. चाहे वह MVA हो या कोई नया समीकरण.
अजित पवार के साथ आने से क्या बदल सकता है समीकरण?
अजित पवार इस समय सत्ता के केंद्र में हैं उपमुख्यमंत्री पद, संगठन पर पकड़ और सरकारी संसाधनों तक सीधी पहुंच. अगर शरद पवार और अजित पवार BMC चुनाव में किसी तरह का रणनीतिक तालमेल करते हैं, तो इसके तीन बड़े फायदे हो सकते हैं:
1. वोटों का बंटवारा रुक सकता है, खासकर मराठा और OBC वोट बैंक में
2. दोनों गुटों के कॉरपोरेटर और स्थानीय नेता एकजुट हो सकते हैं
3. बीजेपी को सीधे मुकाबले की जगह कठिन त्रिकोणीय लड़ाई झेलनी पड़ सकती है
मुंबई में शिवसेना (शिंदे) और बीजेपी पहले से मजबूत हैं. ऐसे में NCP के दोनों गुट अलग-अलग लड़ते हैं, तो नुकसान तय माना जा रहा है.
जोखिम भी कम नहीं
हालांकि यह साथ आना जितना फायदेमंद दिखता है, उतना ही जोखिम भरा भी है. NCP (SP) का कोर समर्थक वर्ग अजित पवार के भाजपा के साथ जाने से नाराज़ है. शरद पवार की छवि एक सिद्धांतवादी नेता की रही है, जिसे यह गठजोड़ कमजोर कर सकता है. सुप्रिया सुले और युवा नेतृत्व के भविष्य को लेकर अस्पष्टता बढ़ सकती है. यानी यह दांव जीत दिला सकता है, लेकिन पार्टी की वैचारिक पहचान पर सवाल भी खड़े कर सकता है.
BMC चुनाव और उत्तराधिकार की राजनीति
शरद पवार 80 के पार हैं और यह चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से उत्तराधिकार की राजनीति से भी जुड़ा है. अगर अजित पवार के साथ तालमेल सफल रहता है, तो यह संकेत होगा कि परिवार और पार्टी को एक रखने की कोशिश प्राथमिकता है.
अगर नहीं, तो सुप्रिया सुले के नेतृत्व में NCP (SP) को नए सिरे से खुद को स्थापित करना होगा.
चुनाव से ज्यादा सियासी संदेश अहम
BMC चुनाव शरद पवार के लिए सिर्फ सीटों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि वे अब भी महाराष्ट्र की राजनीति के किंगमेकर हैं या नहीं NCP का भविष्य एकजुट होगा या स्थायी रूप से बंटा रहेगा. भतीजे के साथ आने से फायदा जरूर मिल सकता है, लेकिन यह फायदा तात्कालिक जीत का होगा या दीर्घकालीन नुकसान का इसका जवाब BMC के नतीजे देंगे.
राजनीति को नया मोड़ दिया
महाराष्ट्र की राजनीति में अगर किसी नेता को सबसे ज्यादा रणनीतिक और अप्रत्याशित माना जाता है, तो वह नाम है शरद पवार. एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार की हर चाल के पीछे लंबा राजनीतिक गणित होता है. बीते ढाई साल पहले भतीजे अजित पवार के अलग होकर महायुति सरकार में शामिल होने के बाद माना जा रहा था कि पवार परिवार की राजनीति हमेशा के लिए बंट चुकी है. लेकिन अब पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम चुनावों ने इस कहानी को एक नया मोड़ दे दिया है.
पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ पारंपरिक रूप से एनसीपी का गढ़ रहे हैं. ऐसे में जब इन दोनों नगर निगमों के लिए चुनाव सामने आए, तो दोनों पवारों के लिए अलग-अलग लड़ना राजनीतिक आत्मघात जैसा होता. यही वजह है कि अजित पवार की NCP और शरद पवार की NCP (SP) ने इन दो चुनावों के लिए रणनीतिक गठबंधन का फैसला किया.
हालांकि दोनों गुट यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यह गठजोड़ केवल इन चुनावों तक सीमित है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसे 'सीमित समझौते' अक्सर बड़े बदलावों की भूमिका बनते हैं.
बीजेपी की बढ़ती ताकत और विपक्ष की कमजोरी
दिसंबर 2025 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों ने महाराष्ट्र की सियासत की दिशा साफ कर दी. 288 में से 211 निकायों पर महायुति की जीत ने यह साबित कर दिया कि भाजपा की जमीनी पकड़ अब शहरी और ग्रामीण-दोनों क्षेत्रों में मजबूत हो चुकी है. इसके मुकाबले महा विकास अघाड़ी (MVA) का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. इन नतीजों ने शरद पवार की एनसीपी (एसपी) को सबसे ज्यादा झटका दिया.
पुणे में सीटों का बंटवारा क्या संकेत देता है?
पुणे नगर निगम में NCP 125 सीटों पर और NCP (SP) 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह बंटवारा सिर्फ चुनावी गणित नहीं, बल्कि दोनों गुटों की स्थानीय ताकत का खुला प्रदर्शन भी है. इससे साफ है कि दोनों पक्ष अपनी पहचान बनाए रखते हुए भाजपा को रोकना चाहते हैं.
बीजेपी ने पुणे में शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ गठबंधन किया है और कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में भाजपा को रोकने की जिम्मेदारी लगभग पूरी तरह एनसीपी के दोनों गुटों पर आ गई है.
गठबंधन की भी परीक्षा
अगर पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में यह गठबंधन सफल रहता है, तो जनवरी के अंत में होने वाले जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों के लिए भी इसी मॉडल की मांग तेज हो सकती है. यह धीरे-धीरे एनसीपी के संभावित मर्जर की जमीन तैयार कर सकता है.
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