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Explainer: अमेरिका में चुनाव के लिए दो तरह से होती है फंडिंग, जानें कौनसा तरीका प्रत्याशियों की पसंद और क्यों?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान फंड एकत्र करने के लिए दो तरह की प्रक्रिया है. प्रत्याशी को किन बातों का रखना होता है ध्यान और क्या नहीं कर सकते. आइए जानते हैं.

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Dheeraj Sharma
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How funding done in US elections
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Explainer: दुनिया में सुपर पॉवर के नाम से पहचाने जाने वाला अमेरिका सबसे पुराने लोकतंत्रिक देश का भी उदाहरण माना जाता है. यहां पर इस साल के अंत में आम चुनाव होना है. चुनाव में कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप आमने-सामने हैं. जाहिर सुपर पॉवर देश में चुनाव है तो इसका महंगा होना भी वाजिब है. बीते अमेरिकी चुनाव की बात की जाए तो यहयां पर 1 लाख करोड़ से ज्यादा का खर्च हुआ था. जो इससे पहले के चुनाव के मुकाबले करीब-करीब दोगुना था. ऐसे में इस बार भी चुनाव में उम्मीद जताई जा रही है कि ये चुनाव 2 लाख करोड़ रुपयों का आंकड़ा पार कर सकता है.

बात चुनावी खर्च की हो रही है तो क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में अगर किसी शख्स को चुनाव लड़ना है तो उसके लिए फंडिंग किस तरह होती है. या फिर फंडिंग कितने तरीके से होती है. अगर नहीं तो हम अपने इस लेख के जरिए आपको बताएंगे कि आखिर अमेरिकी चुनाव में फंडिंग का तरीका क्या है और नेताओं की पसंद कौन से तरीके में ज्यादा है और क्यों है. 

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अमेरिका में दो तरह से होती है चुनाव की फंडिंग

यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका में चुनाव के दौरान फंडिंग करने के दो प्रमुख तरीके हैं. पहला तरीका है पब्लिक फंडिंग और दूसरा तरीका है प्राइवेट फंडिंग. जैसा कि नाम से ही पता चलता है पब्लिक फंडिंग यानी सरकारी फंडिंग. यह एक सरकारी तरीका है इसमें सरकारी नियमों और कानून के मुताबिक धन एकत्र करना होता है. 

जबकि दूसरा तरीका है प्राइवेट फंडिंग का. इसमें प्रत्याशी निजी तौर पर संस्थानों के जरिए अपने चुनाव का धन जमा कर सकता है. 

कौनसा तरीका प्रत्याशियों को है पसंद

अमेरिका में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की बात करें तो उन्हें धन एकत्र करने यानी चुनावी फंडिंग के लिए सबसे ज्यादा पसंदीदा तरीका प्राइवेट फंडिंग है. दरअसल इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है. प्राइवेट फंडिंग में किसी तरह की कोई सीमा नहीं है. जबकि पब्लिक फंडिंग में सरकारी नियम कुछ ऐसे ही कि प्रत्याशी इसकी जगह प्राइवेट में ही जाना पसंद करता है. इसके साथ ही पब्लिक फंडिंग में धन एकत्र करने की एक लिमिट होती है. ऐसे में प्रत्याशियों के लिए यह तरीका और भी मुश्किल वाला हो जाता है. 

कैसे होती है सरकारी फंडिंग

उम्मीदवार अगर सरकारी फंडिंग करना चाहता है तो उसे दो तरह की शर्तों का प्रमुख रूप से पालन करना होता है. इसमें पहली शर्त होती है कि कैंडिंडेट की लोकप्रियता होनी चाहिए. अब यहां यह भी एक सवाल है कि आखिर लोकप्रियता का पैमाना क्या होगा?

इसका जवाब है प्रत्याशी को प्राइमरी इलेक्शन के दौरान 50 में से 20 राज्यों में फंड जुटाना होगा. यहां फंड को लेकर भी एक लिमिट तय है. इसके तहत उम्मीदवार को जरूरी है कि वह 20 राज्यों में से हर एक में कम से कम 5 हजार डॉलर जरूर जुटाए. ऐसे में प्रत्याशी को कम से कम 1 लाख डॉलर का फंड एकत्र करना होता है. इस तरह उसकी पहली शर्त पूरी होती है. 

दूसरी शर्तः उम्मीदवार के लिए सरकारी फंडिंग में दूसरी शर्त यह है कि वह अपने एकत्र धन में 50 हजार डॉलर से ज्यादा का खर्च चुनाव के दौरान नहीं कर सकता है. यही नहीं चुनाव के दौरान कभी भी उसके धन खर्च को लेकर चुनाव आयोग की ओर से ऑडिट हो सकता है. इस दौरान प्रत्याशी को अपने धन का पूरा लेखा-जोखा देना होता है. इसमें कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो सकता है. 

पब्लिक फंड अगर बच जाए तो कहां करते हैं खर्च

पब्लिक फंड बीते कुछ वर्षों से किसी भी प्रत्याशी ने इस्तेमाल ही नहीं किया है. आखिरी बार 2008 में बराक ओबामा ने इसे इस्तेमाल किया था. अब तक 2600 करोड़ रुपए से ज्यादा का फंड एकत्र हो चुका है. फिलहाल इस फंड का इस्तेमाल चुनाव की बजाय कैंसर से पीड़ित बच्चों की रिसर्च में किया जा रहा है. 

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कैसे जुटाई जाती है प्राइवेट फंडिंग

अमेरिका में चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार के प्राइवेट फंडिंग का तरीका ही सबसे बेहतर है. क्योंकि इसमें फंडिंग की कोई लिमिट तय नहीं है और न ही खर्च की. ऐसे में प्रत्याशी ज्यादातर इसी मोड पर फंडिंग करते हैं. इसमें किसी भी निजी संस्थान, कॉर्पोरेशन या फिर लोगों से भी धन एकत्र किया जा सकता है. इसमें एक और शर्त है अगर आपने पहले पब्लिक फंडिंग के लिए दावा किया है तो इसके बाद आप प्राइवेट फंडिंग के लिए दावा नहीं कर सकते हैं. 

प्राइवेट फंडिंग में PAC और सुपर PAC का क्या रोल है

चुनाव के दौरान प्रत्याशी जब प्राइवेट फंडिंग का तरीका चुनता है तो इसमें फंड जुटाने और उस राशि को खर्च करने के लिए एक पॉलिटिकल एक्शन कमेटी यानी PAC बनाई जाती है. इस साथ-साथ सुपर PAC भी धन एकत्र करने का काम करती है. इन दिनों में अंतर की बात की जाए तो पीएसी प्रत्याशी के साथ समन्वय बैठाकर उनके चुनाव के एकत्रित धन को खर्च कर सकती है.

जबकि सुपर पीएसी सिर्फ व्यक्तिगत खर्च पर काम करती है. आसानी से समझें सुपर पीएसी सिर्फ किसी पार्टी या उम्मीदवार को फंड नहीं देती और न ही इसके लिए उम्मीदवार उनसे संपर्क करते हैं. यही वजह है कि सुपर पीएएसी के धन एकत्र करने की कोई सीमा नहीं होती है. 

किस दल के पास कितना फंड

मौजूदा समय में इस वर्ष के लिए होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दोनों दलों की ओर से धन एकत्र किया गया है. फेडरल इलेक्शन कमीशन (FEC) के मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने 1 जनवरी 2021 से 30 अप्रैल तक 1638 करोड़ रुपए एकत्र किए.

जबकि उनके नाम वापस लेने औऱ कमला हैरिस को समर्थन देने के तीन दिन में ही डेमोक्रेटिड का फंड 2000 करोड़ रुपए हो गया. इसी तरह रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने नवंबर 2022 से 30 अप्रैल 2024 तक 1041 करोड़ रुपए का फंड जमा कर लिया है.

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