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महज 13 सेकेंड में जमींदोज हो जाएंगे कुतुब मीनार से भी ऊंचे सुपरटेक ट्विन टॉवर

इन दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किग्रा विस्फोटक लगाए गए हैं. इन गगननचुंबी इमारतों को जमींदोज होने में महज 9 सेकेंड लगेंगे, जिसके बाद पीछे रह जाएगा 80 हजार टन का मलबा.

Updated on: 28 Aug 2022, 12:05 PM

highlights

  • दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किग्रा विस्फोटक लगाए गए
  • दोनों टावरों के जमींदोज होने के बाद रह जाएगा 80 हजार टन का मलबा
  • मलबे से उठी धूल स्थानीय लोगों को दे सकती है गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं

नोएडा:

नौ साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर रविवार 28 अगस्त को मलबे में बदल जाएंगे. सुपरटेक लिमिटेड के एमरल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए 29 मंजिला सीआने और 32 मंजिला एपेक्स ट्विन टावरों (Twin Tower) के निर्माण में कई नियमों का गंभीर उल्लंघन किया गया, जिसदे बाद इन्हें जमींदोज किया जा रहा है. नोएडा (Noida) के सेक्टर 93-ए के पास स्थित ये दो टावर्स देश की ऊंची इमारतों में गिने जाते हैं, जिसकी ऊंचाई कुतुब मीनार (Qutub Minar) से भी ज्यादा लगभग 100 मीटर है. इन्हें ध्वस्त करने की तैयारियां महीनों से चल रही थीं. इनके आसपास के अपार्टमेंट्स एटीएस ग्रींस विलेज और एमरल्ड कोर्ट में रहने वालों को भी रविवार सुबह तक अपने-अपने घर छोड़ने की ताकीद की गई है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक एमरल्ड कोर्ट में 15 टावर हैं, जबकि एटीएस विलेज में 25 टावर और चार विला हैं. गिराए जाने वाले द्विन टावरों के आसपास 500 मीटर के दायरे को एक्सक्ल्यूजन जोन घोषित कर दिया गया है. यानी टावरों को गिराने वाले दल के अलावा कोई भी व्यक्ति या छुट्टा जानवर इस दायरे में नहीं रह सकेगा. ध्वस्तीकरण को अंजाम देने वाले तकनीकी दल के अलावा पुलिस, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की टीम, आठ एंबुलेंस और चार फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को भी साइट के आसपास तैनात किया जा रहा है. 

सुपरटेक ट्विन टावर गिराए क्यों जा रहे हैं
2005 में न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने सुपरटेक को 14 टावर के निर्माण की अनुमति दी थी. इस अनुमति में 14 टावरों में नौ फ्लोर के साथ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और गार्डन एरिया शामिल था. हालांकि 2009 में प्रोजेक्ट को संशोधित कर एपेक्स और सीआने नाम से दो गगनचुंबी इमारतें तानने की अनुमति नोएडा अथॉरिटी से मांगी गई, जो मिल भी गई. हालांकि एमरल्ड कोर्ट में रहने वाले वाले लोग और रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) 2012 में अवैध निर्माण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए.  2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टावरों को अवैध करार दे इनके ध्वस्तीकरण के आदेश दे दिए. उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. 31 अगस्त 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सही मानते हुए टावरों को जमींदोज करने का आदेश पारित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी पाया कि इन दो टावरों के निर्माण में जरूरी न्यूनतम दूरी के नियम का उल्लंघन किया गया है. साथ ही सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि टावरों का निर्माण भवन नियमों और अग्नि सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं है. 

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सुप्रीम कोर्ट की नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक पर गंभीर टिप्पणी
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि संशोधित नए प्रोजेक्ट से गार्डन एरिया को हटा एपेक्स और सीआने टावर के निर्माण का रास्ता निकाला गया. इसके लिए फ्लैट मालिकों से भी कोई अनुमति नहीं ली गई, जो वास्तव में उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट 2010 का उल्लंघन है. शीर्ष अदालत ने अगस्त 2021 के इन्हें मलबे में तब्दील करने के अपने फैसले के साथ नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक पर गंभीर टिप्पणी भी की. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'इन टावरों का निर्माण नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक कंपनी की मिलीभगत का परिणाम है.' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट एक्ट 1976 और उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट 2010 का उल्लंघन करने वालों पर मुकदमा चलाने के बात भी कही. सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों टावरों को तीन महीनों में गिराने के आदेश दिए थे, लेकिन कई बार तारीख पर तारीख बढ़ती गई. अब अंतत रविवार 28 अगस्त को इन दोनों टावरों को विस्फोटकों के जरिये जमींदोज कर दिया जाएगा. 

नियंत्रित विस्फोट से मलबे में बदले जाएंगे ट्विन टावर
कंट्रोल्ड इम्प्लोजन यानी नियंत्रित विस्फोट तकनीक के जरिये ये गगनचुंबी इमारतें जमींदोज की जाएंगी. कंट्रोल्ड इम्प्लोजन तकनीक के तहत इमारत को गिराने के लिए खास रणनीति के तहत विस्फोटक लगाए जाते हैं. फिर उनमें धमाका कर इमारत को मलबे में बदल दिया जाता है. इसमें इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि धमाके से आसपास की इमारतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे. इस प्रक्रिया में विस्फोट से पहले इमारत को मजबूती देने वाले स्थानों को कमजोर किया जाता है. मसलन इमारत की ऐसी संरचनाओं को पहले हटाया जाता है, जो गुरुत्वाकर्षण बल को रोकने में मदद करें. इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए इमारत में कई स्थानों पर विस्फोटक लगाए जाते हैं. आमतौर पर इस प्रक्रिया में निचली मंजिलों पर लगाए गए विस्फोटक इमारत के नियंत्रित ढहने में मददगार बनते हैं. 

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आयरलैंड में 1773 में पहली बार गिराया था कैथेड्रिल
इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल 1773 में आयरलैंड के वॉटरफोर्ड स्थित होली ट्रिनिटी कैथेड्रिल को गिराने में किया गया. इसे गिराने में तब 68.04 किग्रा विस्फोटक इस्तेमाल में लाया गया था. भारत में इसका हालिया इस्तेमाल कोच्चि में किया गया था, जहां वेंबानंद झील के सामने बनाए गए लग्जरी वॉटरफ्रेंट अपार्टमेंट को जमींदोज किया गया. इसी तकनीक से पुल, टावर, सुरंगों को गिराया जाता है. मुंबई की इडीफाइस इंजीनियरिंग दक्षिण अफ्रीका की जेट के साथ मिलकर इन टावरों को विस्फोट से गिराने जा रही है. इन्हीं लोगों ने कोच्चि के मराडू बिल्डिंग को गिराया था. कंट्रोल्ड इम्प्लोजन तकनीक में रसायनों को तैयार करने में सबसे ज्यादा समय लगता है. नोएडा के ट्विन टावरों के ध्वस्तीकरण के लिए रसायनों की तैयारी में सात महीने लगे,जिसमें एक महीना तो सिर्फ योजना बनाने में लग गए. फिर छह महीनों में इमारतों को गिराने के लिए तैयारी की गई. बताते हैं कि इन दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किग्रा विस्फोटक लगाए गए हैं. इन गगननचुंबी इमारतों को जमींदोज होने में महज 13 सेकेंड लगेंगे, जिसके बाद पीछे रह जाएगा 80 हजार टन का मलबा. इसमें से भी 50 हजार से 55 हजार टन मलबे से साइट को पाटा जाएगा और शेष को कंस्ट्रक्शन और डिमोलेशन प्लांट भेज दिया जाएगा.

सुपरटेक ट्विन टावर विध्वंस के प्रभाव और चिंता
नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावरों के ध्वस्तीकरण से कई गंभीर चिंताएं भी जुड़ी हैं. सबसे पहली तो विस्फोटकों से गिराई गई इमारतों के मलबे से उठने वाली धूल और दूसरी तरफ मलबे की सफाई. अधिकारियों का कहना है कि पूरा मलबा तीन महीने में साफ कर दिया जाएगा. विशेषज्ञों ने तीसरी चिंता विस्फोट से हवा में उड़ने वाली धूल को लेकर व्यक्त की है. विशेषज्ञों के मुताबिक धूल की यह मात्रा स्थानीय लोगों के लिए स्वास्थ्य समस्याएं दे सकती है. इस चिंता के आलोक में नोएडा प्राधिकरण ने आश्वस्त किया है कि वह धूल को साफ करने के लिए पानी के टैंकर, मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन और सफाई कर्मी की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा. इसके साथ ही अधिकारियों ने हवा की गुणवत्ता पर लगातार निगरानी की बात भी की है.

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कंपन से आसपास की इमारतों में आ सकती हैं दरारें
दोनों टावरों को विस्फोट से उड़ाने जा रही कंपनी के अधिकारियों की मानें तो मलबे से उठी धूल को हटने में 10 मिनट लग जाएंगे. इसके बाद कंपनी के तकनीकी अधिकारी साइट पर किसी जीवित विस्फोटक के रह जाने की आशंका की जांच करेंगे. धूल के कम होने में हवा की दिशा और उसकी गति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. हालांकि नोएडा की पहले से प्रदूषित हवा पर इसका गहरा असर पड़ना तय है. इस तरह के विध्वंस से उठने वाला कंपन और शॉकवेव्स एक और चिंता है. हालांकि इसके लिए कंपनी वॉटरफॉल इम्प्लोजन करेगी यानी इमारत पानी के फव्वारे की तरह नीचे आ गिरेगी. इस कारण कंपन भी नियंत्रित रहेगा. आसपास की इमारतों को धमाके से उठने वाले कंपन से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, लेकिन दरारें जरूर पड़ सकती हैं. संभवतः इसीलिए आसपास के अपार्टमेंट्स से हटाए गए लोगों को शाम के समय घर वापसी की अनुमति दे दी गई है.