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भारत जोड़ो यात्राः कांग्रेस कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर रही, समझें तार्किक ढंग से

अगर कांग्रेस का 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन 2014 या 2019 परिणामों के बरक्स रहा यानी 40 से 50 सीटें और 20 फीसदी से कम वोट, तो तय मानिए कांग्रेस देश के प्रमुख विपक्षी दल का दावा भी नहीं कर सकेगी.

Updated on: 24 Aug 2022, 07:27 PM

highlights

  • कांग्रेस की प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा में गुजरात है ही नहीं
  • गुजरात कांग्रेस के अस्तित्व के लिए पहली बड़ी चुनौती बनेगा
  • ऐसे में खोया जनाधार पाने के लिए कांग्रेस एक-एक कदम बढ़ाए

नई दिल्ली:

23 अगस्त को कांग्रेस पार्टी ने अपने महत्वाकांक्षी जनसंपर्क कार्यक्रम भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) शुरू करने की घोषणा की. एक अनुमान के तहत 7 सितंबर को शुरू होने जा रही भारत जोड़ो यात्रा के तहत कांग्रेस  देश भर में  3,500 किलोमीटर का सफर तय करेगी. 150 दिनों की इस यात्रा के अगले साल फरवरी के पहले सप्ताह में खत्म होने की संभावना है. एक बड़ा सवाल राजनीतिक पंडितों के बीच यह उठ रहा है कि अपने जड़ों से लगातार कटती जा रही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) के लिए क्या यह यात्रा सार्थक रहेगी... खासकर यह देखते हुए कि इस साल के अंत में गुजरात (Gujarat) और हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में विधानसभा चुनाव होने हैं और इन दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस के प्रदर्शन का असर 2024 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) में उसकी प्रासंगिकता तय करेगा. 

2024 में प्रासंगिक रहने के लिए 2019 से नीचे नहीं गिरना होगा
कांग्रेस के लिए 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती का सामना इस रूप में करना होगा कि उसका प्रदर्शन 2019 और 2014 लोकसभा चुनाव से बद्तर नहीं हो. अगर कांग्रेस का 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन 2014 या 2019 परिणामों के बरक्स रहा यानी 40 से 50 सीटें और 20 फीसदी से कम वोट, तो तय मानिए कांग्रेस देश के प्रमुख विपक्षी दल का दावा भी नहीं कर सकेगी. यानी अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस समाप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगी. कांग्रेस का भला चाहने वालों के मन में यही सवाल बार-बार उठ रहा है कि कांग्रेस इस हादसे से किस तरह बच सकती है. 

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1970 से खिसकना शुरू हुआ कांग्रेस का जनाधार
2014 और 2019 लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए किसी बुरे सपने की तरह रहे. हालांकि यह भी उतना ही सच है कि 1970 के बाद से ही कांग्रेस के जनाधार में गिरावट आनी शुरू हो गई थी. इस प्रक्रिया में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी परिदृश्य पर उदय के साथ और तेजी आई. सच तो यह है कि कांग्रेस, बीजेपी और अन्य राजनीतिक दलों के मत प्रतिशत के तुलनात्मक अध्ययन से साफ पता चलता है कि कांग्रेस के मतदाताओं की कीमत पर बीजेपी का उदय हुआ. इसके लिए किसी और कारण की चर्चा करने के बजाय यह कहना बेहतर होगा कि बीजेपी की तुलना में कांग्रेस की कमजोर विचारधारा इस पतन के लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है. 

भारत जोड़ो यात्रा पर भारी दांव
अगर कांग्रेस अपनी खोई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करना चाहती है, तो उसके पास जनता के पास वापस जाने का एकमात्र विकल्प बचता है. यानी भारतीय राजनीति के मध्यमार्ग को मजबूती से थाम अपनी मूल राजनीति की ओर लौटना कांग्रेस को राजनीतिक संजीवनी दे सकता है. अगर इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो कांग्रेस की प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा कुछ उम्मीद जगाती है. हालांकि साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव फिर अगले साल कुछ राज्यों के प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिहाज से भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कांग्रेस का दांव बहुत भारी है. 

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लोकसभा से पहले विधानसभा चुनाव लेंगे अग्निपरीक्षा
इस साल के अंत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश के अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होंगे. अगर तेलंगाना को छोड़ दें तो शेष राज्यों में कांग्रेस सीधे-सीधे बीजेपी के सामने चुनौती में है. हालांकि इस साल विधानसभा चुनाव वाले दोनों राज्यों खासकर गुजरात में कांग्रेस के सामने बेहद जटिल चुनौती है. गुजरात में यदि कांग्रेस बीजेपी पर जीत नहीं दर्ज कर सकी, तो भी उसे हर हाल में दूसरे स्थान पर आना होगा. हालांकि जिस तरह आम आदमी पार्टी गुजरात में अपने जनाधार को बढ़ाने में लगी है, उसके मद्देनजर कांग्रेस के लिए यह चुनौती भी आसान नहीं लग रही. तार्किक स्तर पर यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि आप गुजरात में आसन्न विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने के बजाय चुनाव बाद प्रमुख विपक्षी दल के रूप में खुद को देख रही है. 

गुजरात विधानसभा चुनाव पहली बड़ी चुनौती
इस कड़ी में यह देखना म रोचक नहीं है कि कांग्रेस की प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा के नक्शे में गुजरात है ही नहीं. इसका एक अर्थ यह निकलता है कि कांग्रेस आलाकमान ने गुजरात चुनाव अभियान और भारत जोड़ो यात्रा को अलग-अलग रखने का फैसला किया है. दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि भारत जोड़ो यात्रा के फेर में कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व गुजरात में 2017 की तुलना में समय नहीं दे सकेगा. गौरतलब है कि 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान खुद राहुल गांधी ने ज्यादा संभाली थी. अशोक गहलोत भी पटल पर थे, लेकिन उस वक्त अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं थे, बल्कि संगठन में महासचिव थे और चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता. ऐसे में कह सकते हैं कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा गुजरात विधानसभा चुनाव से उसका ध्यान बंटाने का काम करेगी. ऐसी कोई भी स्थिति गुजरात में कांग्रेस की संभावनाएं क्षीण कर सकती हैं. यही नहीं, यदि गुजरात विधानसभा चुनाव परिणामों में सीटों के मामले में कांग्रेस यदि आप से भी पीछे रही, तो भारत जोड़ो यात्रा का मकसद खत्म हो जाएगा.

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2024 के लिए कांग्रेस को करनी होगी वैचारिक पैतरेबाजी
गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल है. ऐसे में उसके पास सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने का मौका रहेगा. हालांकि इस आलोक में यह भी सच्चाई है कि गुजरात और कर्नाटक दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को बीजेपी की आक्रामक हिंदुत्ववादी राजनीति से निपटना पड़ेगा. इस कड़ी में सीएसडीएस लोकनीति के 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण समझना बेहतर रहेगा. जिन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या 10 फीसदी से कम थी, वहां हिंदू वोटर्स पर कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी की बढ़त 4 अंक ज्यादा रही. इस कड़ी में जिन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी थी, वहां बीजेपी ने हिंदु वोटर्स पर 42 अंकों की बढ़त दर्ज की. ऐसे में बेहतर होगा कि गुजरात या कर्नाटक के लिए भी कांग्रेस सांप्रदायिक-पंथनिरपेक्ष राजनीति के बजाय स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में मोड़े. 

यात्रा से पहले एक-एक कदम बढ़ाए कांग्रेस
इन दोनों राज्यों के बाद 2024 लोकसभा चनाव से पहले कांग्रेस के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव कठिन लिटमस टेस्ट साबित होंगे. इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के पास सत्ता विरोधी लहर भुनाने का अवसर होगा. इस क्रम में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सापेक्ष कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बतौर खम ठोंकती नजर आएगी. ऐसे में कांग्रेस के लिए बेहतर रणनीतिक योजना यही रहेगी कि वह सबसे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करे. इस राज्य में अगर वह बीजेपी पर जीत हासिल नहीं भी कर सके, तो कम से कम दूसरे स्थान यानी मुख्य विपक्षी दल बतौर अपनी जगह बनाए. इसके बलबूते कांग्रेस कर्नाटक में अपनी राह प्रशस्त कर सकेगी, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में उसे बीजेपी के मुकाबले ज्यादा मत हासिल हुए थे. दूसरे शब्दों में कहें तो कर्नाटक में कांग्रेस का वोट शेयर बीजेपी से अधिक रहा था. इन दो राज्यों के चुनाव के बाद कांग्रेस शेष राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले यात्रा निकाले.

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कांग्रेस को समझनी होगी चुनाव जीतने की पूरी गणित
कांग्रेस के लिए यह रणनीति ज्यादा सार्थक और चुनाव परिणामों के लिहाज से बेहतर फल देने वाली हो सकती है. इस तरह कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी लहर को खत्म कर दोबारा सत्ता में आ सकती है. इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों की बदौलत कांग्रेस मध्य प्रदेश विधानसभा में कहीं मजबूती से दावेदारी कर सकेगी. आंकड़ों के आईने में देखें तो राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी का वोट शेयर आसपास ही है. 2018 के चुनाव परिणामों से भी इसे आसानी से समझा जा सकता है. इस लिहाज से कह सकते हैं कि गुजरात और कर्नाटक में अपेक्षित परिणाम हासिल करने के बाद कांग्रेस यात्रा की हवा को कहीं अधिक और प्रभावी ढंग से आने वाले चुनाव खासकर 2024 लोकसभा चुनाव में अपने पक्ष में भुना सकेगी.