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तिब्बत का विकास छलावा, चीन इस तरह कर रहा तिब्बती संस्कृति को नष्ट

तिब्बत चीन की सत्तावादी गतिविधियों से शोषित क्षेत्र है, जहां शी के शासन में तिब्बतियों के अधिकारों के लिए कोई विचार नहीं है. चीन सामान्य तिब्बतियों को भावनाएं और विचार रखने वाले इंसान बतौर देखता भी नहीं है.

Updated on: 14 Aug 2022, 04:30 PM

highlights

  • शी जिनपिंग की नीतियां तिब्बतियों को कर रही खत्म
  • बौद्ध मठ समेत बौद्ध इमारतों को किया जा रहा नष्ट
  • तिब्बती बच्चों को मेंडेरियन भाषा सिखाई जा रही जबरन

लहासा:

चीन में 2018 में संविधान संशोधन कर किसी राजनेता के दो बार ही राष्ट्रपति बनने का नियम हटा लिया गया था. इसके बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ताकतवर बन कर उभरे. उन्होंने तिब्बत (Tibet) पर अपना शिकंजा और कसना शुरू किया. सच तो यह है कि ड्रैगन वास्तव में तिब्बत का एक औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी इकाई के रूप में उत्पीड़न कर रहा है. विकास और नागरिक सुविधाओं से जुड़े अभियानों के नाम पर बीजिंग (Beijing) अपने कब्जे वाले क्षेत्र के संसाधनों की लूट कर स्थानीय नागरिकों को नुकसान पहुंचा रहा है. चीन की राष्ट्रीय विधायिका का दर्जा रखने वाली नेशनल पिपुल्स कांग्रेस (NPC) हर साल दो हफ्ते के लिए आयोजित की जाती है, जिसमें महत्वपूर्ण विधेयक पारित होते हैं. एनपीसी की 2018 में ऐसी ही एक बैठक में राष्ट्रपति पद के लिए दो बार की समय सीमा हटाने को मंजूरी दे संविधान के अनुच्छेद 45 में संशोधन किया गया था. अब शी जिनपिंग (Xi Jinping) अपने तीसरे कार्यकाल के तैयार हैं. 

तीसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे शी जिनपिंग
बाद में 2021 में एनपीसी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल के इतिहास में मील का पत्थर करार दिया गया संकल्प पारित किया. अपने किस्म का यह तीसरा बड़ा संकल्प था, जिसके पहले सीसीपी के संस्थापक माओ जेडांग और बाद में उनके उत्तराधिकारी डेंग जियाओपिंग ने ऐसे ही महत्वपूर्ण संकल्प पारित किए थे. 2021 में 14 पन्नों की विज्ञप्ति शी जिनपिंग के नेतृत्व और पार्टी में उनकी केंद्रीय स्थिति को साफ तौर पर निरूपित करती है. इससे साफ हो गया कि जिनपिंग अपने पूर्ववर्तियों की तरह दो बार राष्ट्रपति चुने जाने और कार्यकाल पूरा करने के बाद भी सेवानिवृत्त नहीं होंगे. यानी अगले साल अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रहे शी जिनपिंग राष्ट्रपति पद पर अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल के लिए भी सत्ता में बने रहेंगे. ऐसे में इस साल नवंबर में होने जा रही एनपीसी की बैठक में शी जिनपिंग सत्ता में अपने तीसरे कार्यकाल का मार्ग प्रशस्त करेंगे. 

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तिब्बती संस्कृति को नष्ट कर रहा चीन
राजनीतिक और पार्टी के लिहाज से बेहद शक्तिशाली शी जिनपिंग का संभवतः तिब्बत को लेकर एक अलग सोच और रवैया है. तिब्बत चीन की सत्तावादी गतिविधियों से शोषित क्षेत्र है, जहां शी के शासन में तिब्बतियों के अधिकारों के लिए कोई विचार नहीं है. चीन सामान्य तिब्बतियों को भावनाएं और विचार रखने वाले इंसान बतौर देखता भी नहीं है. उसकी नजर में तिब्बत और तिब्बती महज एक ईकाई हैं, जिसके जरिये ड्रैगन को अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है. तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक बीजिंग प्रशासन ने तिब्बत में औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूल स्थापित करने का आदेश दिया है. इन स्कूलों में सभी तिब्बती बच्चों का जाना होता है और जबरन मेंडेरियन भाषा का अध्ययन करना पड़ता है. इस तरह चीन तिब्बती संस्कृति को खत्म कर रहा है. अगले चरण में ड्रैगन तिब्बतियों के सिनिसाइजेशन की प्रक्रिया शुरू करेगा. यानी तिब्बतियों को हान कालखंड की चीनी संस्कृति, पहनावे, भाषा और आचार-व्यवहार में ढाला जाएगा. इन स्कूलों का चयन ही तिब्बतियों को जड़ से काटने के लिए किया गया है.

तिब्बत का कथित विकास महज छलावा
तिब्बत पर चीनी एजेंडे में शैक्षणिक संस्थान तो महज एक उदाहरण भर हैं. 2018 से वास्तव में धार्मिक संस्थाएं, तिब्बतियों की परंपरागत संस्थाएं, तिब्बती साइबर स्पेस और यहां तक पर्यावरण को चीनी औपनिवेश में बदल रहा है. तिब्बत की हर चीज में चीनी प्रभाव परिलक्षित भी होने लगा है. पिछले साल सीसीपी द्वारा तिब्बत पर जारी श्वेत पत्र से पता चलता है कि शेष विश्व के समक्ष चीन वास्तव में तिब्बत की जो छवि प्रस्तुत कर रहा है, वह सच्चाई से कहीं परे हैं. तिब्बत के कथित विकास का दावा चीन की ओर से दुनिया को दिया जा रहा एक छलावा है. पिछले साल शी के लहासा दौरे के बाद तिब्बत से जुड़ी ड्रैगन की नीतियों में तेजी से बदलाव आया है, जो समग्र रूप से तिब्बत और तिब्बतियों को नुकसान पहुंचा रही हैं. 

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बौद्ध प्रतीक किए जा रहे नष्ट
इन नीतियों के तहत खाम के एक इलाके ड्राक्गो में पहले एक बौद्ध मठ को अपवित्र किया गया और बाद में ध्वस्त कर दिया गया. ड्राक्गो के अलावा समग्र तिब्बत में कई बौद्ध इमारतों और प्रतीकों को भी हटाया जा रहा है. इन घटनाओं से 1960 की सांस्कृतिक क्रांति की याद जाता हो जाती है, जब तिब्बती सांस्कृतिक संस्थाओं और सामग्रियों को नष्ट कर दिया गया था. यही नहीं, तिब्बतियों को मार्क्स विचारधारा नहीं मानने और अपनाने पर उच्च शिक्षा से वंचित कर दिया जाता था. इन सबके विरोध में तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह के रूप में किया जा रहा विरोध-प्रदर्शन जारी है. 

राजनैतिक कैदी भी झेल रहे अत्याचार
शी की ताकत का नमूना जेल में बंद तिब्बती राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी दिखाया जा रहा है. उन पर जेल में अमानवीय स्तर के अत्याचार किए जा रहे हैं. हाई स्पीड इंटरनेट सेवाओं से सूचना के क्षेत्र में खाई कम हो रही है, लेकिन इसके विपरीत तिब्बत का साइबर स्पेस ड्रैगन के निगरानी तंत्र के बोझ तले चरमरा रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग तिब्बत और चीन के कब्जे वाले अन्य इलाकों में अपनी ताकत का भरपूर प्रदर्शन कर रहे हैं. शी की अधिकारवादी सोच का प्रदर्शन अब चीन में भी हो रहा है. कोरोना महामारी के दौरान जीरो कोविड नीति ने आम चीनी नागरिकों को सिहरन से भर दिया था. कोविड प्रतिबंधों से चहुंओर डर का माहौल था. ऐसा माहौल जो तिब्बत और चीनी कब्जे वाले इलाकों के लोग पिछले 70 सालों से भोग रहे हैं.