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चीन की BRI परियोजना बनी बोझ, पाकिस्तान-श्रीलंका ने आर्थिक संकट की ओर ढकेला

ग्वादर में नए एयरपोर्ट, ग्वादर फ्री जोन, 300 मेगावॉट का कोल पॉवर प्लांट और जल अलवणीकरण प्लांट सरीखी तमाम विकास योजनाओं की घोषणाओं को आठ साल हो चुके हैं. जमीनी हकीकत का आलम यह है कि एक भी परियोजना अब तक पूरी नहीं हो सकी है.

Updated on: 13 Aug 2022, 09:19 PM

highlights

  • कुल 880 अरब डॉलर की है चीन की बीआरआई परियोजना
  • पाकिस्तान की सीपीईसी परियोजना के कई प्रोजेक्ट्स पूरी नहीं
  • श्रीलंका में भी बीआरआई साबित हो रही है बेहद घाटे का सौदा

नई दिल्ली:

2013 में चीनी अर्थव्यवस्था के घोड़े पर नई साज कस उसकी मदद से एशियाई आर्थिक विकास की दौड़ में सबसे आगे निकलने के लक्ष्य के साथ शुरू की गई बेल्ट एंड रोड इनीशियेटव उर्फ बीआरआई संकट के मुहाने पर पहुंच गई है. सच तो यह है कि चीन (China) के लिए बीआरआई लाभ के सौदे के बजाय एक भारी वित्तीय बोझ बन गई है. करीब 9 साल पहले ने चीन ने अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान (Pakistan) के ग्वादर बंदरगाह को इस महत्वाकांक्षी योजना के लांच पैड बतौर चुना था. इसे हिंद महासागर में चीन ने अपने लिए वाणिज्यिक खिड़की सरीखा प्रस्तुत किया था. यह अलग बात है कि क्षेत्रीय एकीकरण का हब स्थापित करने के बजाय चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (BRI) से जुड़े तमाम प्रोजेक्ट्स अभी तक आकार लेने में नाकाम रहे हैं या उनके बेहद खराब परिणाम हासिल हुए हैं. 

सीपीईसी के कई प्रोजेक्ट्स थे बड़े महत्वाकांक्षी
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में अपने एक भाषण में बीआरआई का पहली बार उल्लेख किया . इसे सिल्क रोड करार दे अप्रैल 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का काम शुरू हुआ. सीपीईसी ग्वादर से चीन के शिनजियांग के शहर कशगर तक इसका निर्माण होना था. वास्तव में सीपीईसी चीन-पाकिस्तान की सदाबहार दोस्ती को प्रदर्शित कर रही थी, जिसके लिए प्लेज्ड फंड के रूप में 46 बिलियन डॉलर की धनराशि रखी गई थी, जो अब बढ़कर 50 बिलियन में तब्दील हो चुकी है. वास्तव में बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव के नए नाम के लिए यह परियोजना रीढ़ की हड्डी साबित होनी थी. यही नहीं, सीपीईसी समझौते पर दस्तख्त के समय पाकिस्तान सरकार ने ग्वादर को पाकिस्तान के आर्थिक भविष्य की संज्ञा से भी नवाजा था. इसके साथ ही दावा किया गया था कि ग्वादर का सकल घरेलू उत्पाद सीपीईसी परियोजना से 2050 तक 30 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. 2017 में ग्वादर का सकल घरेलू उत्पाद अनुमानतः 430 मिलियन डॉलर आंका गया था. इसके जरिये 12 लाख नौकरियों का भी अनुमान लगाया था, जबकि फिलहाल ग्वादर की आबादी 90 हजार है. 

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सीपीईसी की एक भी परियोजना नहीं हुई पूरी
अब जब बीजिंग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की 20वीं बैठक महज चंद महीने दूर है सीपीईसी भी बीआरआई के साथ संकट के मुहाने पर है. ग्वादर में नए एयरपोर्ट, ग्वादर फ्री जोन, 300 मेगावॉट का कोल पॉवर प्लांट और जल अलवणीकरण प्लांट सरीखी तमाम विकास योजनाओं की घोषणाओं को आठ साल हो चुके हैं. जमीनी हकीकत का आलम यह है कि एक भी परियोजना अब तक पूरी नहीं हो सकी है. इन परियोजनाओं में जिस मोटी धनराशि का निवेश किया गया उसकी तुलना में विकास बेहद मामूली हुआ है. अर्थव्यवस्था में भी इन परिय़ोजनाओं से कोई उछाल नहीं आया. अगर 2013 से 2022 तक निवेश की बात करें तो चीन इस दौरान 53 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है. आलम यह है कि 300 मेगावॉट पॉवर प्लांट का काम भी अभी तक शुरू नहीं सका है. यह एक सच्चाई है कि किसी भी सार्थक विकास के लिए बिजली की कमी सबसे बड़ी रुकावट साबित होती है और ग्वादर इसका ही सामना कर रहा है.  

ग्वादर बेहद बड़ी उम्मीदों का शिकार बना
वॉशिंगटन के विल्सन सेंटर के एशिया प्रोग्राम के उप-निदेशक माइकल कुगलमैन के मुताबिक ग्वादर बहुत ज्यादा बड़ी उम्मीदों का शिकार बना है. वह कहते हैं, 'सीपीईसी के साथ कल्पना की गई थी चीनी पैसे और तकनीक के निवेश से ग्वादर जादुई तरीके से वैश्विक श्रेणी का बंदरगाह बन जाएगा. इस कल्पना के फेर में इस जमीनी हकीकत को दरकिनार कर दिया गया कि ऐसे ही लक्ष्यों के साथ ग्वादर में पहले किए गए प्रयास भी नाकाम साबित हुए थे. बीजिंग के थिंक टैंक इनबाउंड के संस्थापक गोंग चेन के मुताबिक 2013 में बीआरआई की लांचिंग के समय बीजिंग के हित पूरी तरह से घरेलू थे. गोंग ने बीआरआई के शुरुआती दिनों में सरकार को इसको लेकर कुछ सलाह भी दी थी. चेन के मुताबिक नीति नियंताओं के समक्ष जब यह परियोजना पहली बार प्रस्तुत की गई तो इसके मूल में चीन में बढ़ती वृद्ध आबादी थी. इसके साथ ही चीन के समक्ष पर्ल रिवर डेल्टा में श्रमिकों की भर्तियों से जुड़ी समस्या भी मुंह बाए खड़ी थी. ऐसे में चीन बीआरआई के जरिये अपने बाजार को न सिर्फ बढ़ाना चाहता था, बल्कि तमाम आर्थिक क्षेत्रों में अपनी क्षमता भी बढ़ाना चाहता था. इसमें चीन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है. 

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880 अरब डॉलर की बीआरआई परियोजना, जो साबित हुई घाटे का सौदा
पाकिस्तान के बाद श्रीलंका भी चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का महत्वपूर्ण पेंच साबित हुआ है. चीन का बेहद उच्च दरों वाले ब्याज का कर्ज श्रीलंका में अधोसंरचना में उछाल तो लाया,लेकिन भारी कर्ज ने श्रीलंका को ऐतिहासिक आर्थिक संकट में भी ढकेल दिया. आलम यह रहा कि आर्थिक संकट से राजनीतिक अव्यवस्था फैली और सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों के डर से भूतपूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ गया. श्रीलंकाई नागरिकों में इस बात का जबर्दस्त आक्रोश है कि बीजिंग ने राजपक्षे के इर्द-गिर्द व्याप्त भ्रष्टाचार का फायदा उठाया. उनका आक्रोश गलत नहीं था. भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन ने लाखों लोगों के समक्ष खाद्यान्न, ईंधन और दवाओं की आज जबर्दस्त किल्लत खड़ी कर दी है.  साथ ही चीन के अति महत्वाकांक्षी बीआरआई को भी घाटे का सौदा बना दिया है. अगर आंकड़ों की भाषा में बात करें तो बीजिंग बीआरआई परियोजना पर 880 अरब डॉलर की भारी-भरकम राशि खर्च कर रहा है. पाकिस्‍तान में 53 अरब डॉलर के अलावा चीन ने इंडोनेशिया में 44 अरब डॉलर, सिंगापुर में 41 अरब डॉलर, सऊदी अरब में 33 अरब डॉलर, मलेशिया में 30 अरब डॉलर समेत अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है.