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आखिर कांग्रेस को मुख्यमंत्री बदलने से क्यों रहता परहेज, जानें कितना कराया नुकसान

अगर महज बीते कुछ सालों पर ही नजर डालें तो साफ समझ आता है कि सिर्फ मुख्यमंत्री के मसले पर कांग्रेस को तीन लोकप्रिय युवा नेताओं से हाथ धोना पड़ा है.

Updated on: 26 Sep 2022, 06:27 PM

highlights

  • कांग्रेस आलाकमान युवा नेताओं को किनारे कर अपना ही कर रहा नुकसान
  • मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और फिर असम से भी नहीं सीखा है कोई सबक
  • अब राजस्थान में गहलोत-पायलट की टसल पड़ सकती है पार्टी को बेहद भारी

नई दिल्ली:

मुख्यमंत्री का चयन हो या फिर सरकार के कार्यकाल के बीच में ही सीएम बदलने की प्रक्रिया कांग्रेस के लिए हमेशा से कमजोर कड़ी रही है. क्षेत्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, मजबूत दावेदारी और उससे जुड़ी ताकत कांग्रेस आलाकमान के लिए कई राज्यों में सत्ता हस्तांतरण में बाधा बनकर सामने आई हैं. मध्य प्रदेश, पंजाब के बाद अब कांग्रेस के लिए राजस्थान (Rajasthan) इसी लिहाज से सिरदर्द साबित हो रहा है. रविवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) खेमे के 92 विधायकों ने विधायक दल की बैठक से किनारा करते हुए सचिन पायलट (Sachin Pilot) की सीएम पद की दावेदारी के विरोध में स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इसके बाद सीएम अशोक गहलोत के हाथ खड़े करने पर केंद्रीय पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन ने राजस्थान सीएम मसले को सुलझाने के लिए दिल्ली दरबार की हाजिरी लगाना उचित समझा. पायलट और गहलोत खेमे की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार संकट से घिर गई है. इस वजह से अशोक गहलोत की कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी भी खटाई में पड़ती नजर आ रही है. 

2008 में एन रंगास्वामी को हटाना पड़ा भारी
कुछ ऐसी ही कहानी राजस्थान से 2227 किलोमीटर दूर 2008 में घटी थी. पुडुचेरी के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी को हटाकर कांग्रेस हाईकमान ने अपने पसंदीदा वी वेथिलिंगम को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी थी. नतीजतन नाराज रंगास्वामी ने 2011 में  कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी एनआर कांग्रेस बनाई और सत्ता में शानदार तरीके से वापसी की. यही नहीं, 2020 में पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. इसके बाद हुए चुनाव में रंगास्वामी ने फिर भारतीय जनता पार्टी की मदद से सरकार बनाई और सीएम पद पर आसीन हैं. 

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जगन मोहन की दावेदारी नकारी 
2009 में वायएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत के बाद कांग्रेस आलाकमान ने उनके बेटे जगन मोहन की दावेदारी को सिरे से नकारते हुए के रोसैया को अविभाजित आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था. यही नहीं, इसके बाद जगन को प्रदेश में यात्रा निकालने तक की अनुमति नहीं दी गई. जाहिर है असंतुष्ट जगन मोहन के पास ऐसे में सिर्फ एक ही विकल्प बचा था और वह था कांग्रेस को छोड़ने का. जगन ने अपनी पार्टी बनाई और उसके बैनर तले पूरे प्रदेश में यात्रा निकाली और अपना जनाधार मजहबूत किया. फिर 2019 में कांग्रेस को करारी शिकस्त देकर खुद मुख्यमंत्री बन गए.

सिंधिया ने 15 साल बाद कराई एमपी में वापसी, फिर भी किया नजरअंदाज
कुछ ऐसा ही घटनाक्रम मध्य प्रदेश में सामने आया जब 2017 में कांग्रेस की जीत के खेवनहार बने ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे किया गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया के जमीनी स्तर पर किए गए संघर्ष के बाद ही कांग्रेस प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आई थी, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने सिंधिया को दरकिनार कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया. दो साल बाद बेहतर वक्ता और मध्य प्रदेश की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. नतीजतन कांग्रेस की सरकार गिर पड़ी और शिवराज सिंह चौहान फिर से सीएम बन गए. इस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं. 

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पंजाब से भी नहीं सीखा सबक
कांग्रेस ने पंजाब की उठा-पटक से भी कोई सबक नहीं सीखा. सबसे पहले कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को नवजोत सिंह सिद्धु के दबाव में हटा दिया. फिर चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का सीएम बनाकर विधानसभा चुनाव से ऐन कुछ महीने पहले दलित कार्ड खेला. चन्नी कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और खेमेबंदी को चुनाव से पहले पाट नहीं सके. नतीजतन सत्तारूढ़ कांग्रेस विधानसभा चुनाव में महज 18 सीटों पर सिमट गई. इसके साथ ही पंजाब को आम आदमी पार्टी की सरकार मिली. 

हेमंत बिस्वा सरमा बीजेपी के पूर्वोत्तर में बड़ा चेहरा बने
गौरतलब है कि 1982 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टी अंजैया को राजीव गांधी ने सरेआम फटकार लगाने से  परहेज नहीं किया था. नतीजतन अगले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. असम में भी कांग्रेस आलाकमान की कमजोर कड़ी पार्टी के लिए शर्मनाक स्थिति लाने वाली साबित हुई, जब हाईकमान तरुण गोगोई और हेमंत बिस्वा सरमा की अनबन को खत्म नहीं करा सका. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से जुड़े हेमंत प्रभावशाली नेता थे. इसके बावजूद कांग्रेस सीएम पर उनके दावेदारी को हल्के में ले गई और तरुण की ताजपोशी कर दी. एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान जमीनी सच्चाई को भांपने में विफल रहा. उम्रदराज गोगोई के बजाय उसने युवा हेमंत बिस्वा सरमा को किनारे कर दिया. असंतुष्ट हेमंत बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी पर अपने कुत्ते को ज्यादा तरजीह देने का आरोप लगा कांग्रेस छोड़ दी. भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद हेमंत बिस्वा सरमा पूरे पूर्वोत्तर में कद्दावर नेता बन कर उभरे. आज वह बीजेपी का बड़ा चेहरा होने के साथ-साथ असम के मुख्यमंत्री भी हैं.