शरिया कानूनों को लेकर अफगानिस्तान में क्यों है दहशत का माहौल
तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं और मीडिया को डरा दिया है.अपनी पहली प्रेस वार्ता में तालिबान ने कहा कि मीडिया और महिलाओं के अधिकारों जैसे मसलों से "इस्लामी क़ानून के ढांचे के तहत" निपटा जाएगा.
highlights
- तालिबान मीडिया और महिलाओं को शरिया के अनुसार करेगा डील
- शरिया में महिलाओं के लिए है सख्त पाबंदियां
- शरिया के हैं पांच अलग-अलग स्कूल ऑफ थॉट
नई दिल्ली:
'शरिया' शब्द को हम अक्सर सुनते रहते है. इस्लाम का नाम आने पर शरिया शब्द जरूर आता है. अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद शरिया एक बार फिर विश्व मीडिया में चर्चा का विषय है. क्योंकि तालिबान ने कहा है कि शरिया की सख़्त व्याख्या के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान पर शासन करेंगे. दरअसल, शरिया क़ानून इस्लाम की क़ानूनी व्यवस्था है. जिस पर मुसलमान चलने का दावा करते हैं. इसे क़ुरआन और इस्लामी विद्वानों के फ़तवों को मिलाकर तैयार किया गया है. शरिया में बहुत ही कठोर दंड का विधान है.
शरिया क़ानून के पांच अलग-अलग स्कूल ऑफ थॉट हैं. जिसमें सुन्नियों के चार सिद्धांत हैं- हनबली, मलिकी, शफ़ी और हनफ़ी और एक शिया सिद्धांत है जिसे शिया जाफ़री कहा जाता है. लेकिन पांचों सिद्धांत, इस बात में एक-दूसरे से अलग हैं कि वे उन ग्रंथों की व्याख्या कैसे करते हैं जिनसे शरिया क़ानून निकला है.
शरिया मुसलमानों के जीवन का अविभाज्य अंग है. सभी मुसलमानों से इसका पालन करने की उम्मीद की जाती है. इसमें प्रार्थना, उपवास और ग़रीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है. लेकिन असली सवाल शरिया के व्याख्या की है.
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तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के अनुसार शासन करने की बात कह कर महिलाओं और मीडिया को डरा दिया है. क्योंकि अपनी पहली प्रेस वार्ता में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि मीडिया और महिलाओं के अधिकारों जैसे मसलों से "इस्लामी क़ानून के ढांचे के तहत" निपटा जाएगा.
तालिबान के पिछले दौर में मीडिया और महिलाओं पर सख्त पाबंदी थी. तब महिलाओं को काम करने या शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी. आठ साल की उम्र से लड़कियों को बुर्क़ा पहनना पड़ता था. महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति तभी थी, जब उनके साथ कोई पुरुष संबंधी होते थे. महिलाओं को पर्दा में रहने का आदेश था. उनके घरों से बाहर निकलने, बाजार में जाने, स्कूल-कॉलेज जाने और आधुनिक कपड़े पहनने पर पाबंदी थी. इन नियमों की अवहेलना करने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे. ऐसे में तालिबान शासन में महिलाओं का डरना वाजिब है.
अफगानिस्तान में अब महिलाएं अपनी सुरक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित है.उन्हें अपने आगे के जीवन को लेकर भरोसा नहीं हो रहा है. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई जिन्हें पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की वक़ालत करने के चलते तालिबान ने 15 साल की उम्र में गोली मार दी थी, उन्होंने चेतावनी दी है कि शरिया क़ानून की तालिबान की व्याख्या अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है.
शरिया का उद्देश्य मुसलमानों को यह समझने में मदद करना है कि उन्हें अपने जीवन के हर पहलू को ख़ुदा की इच्छा के अनुसार कैसे जीना है. लेकिन तालिबान शरिया का इस्तेमाल महिलाओं को डराने के लिए कर रहा है. वैसे भी शरिया के दंड बहुत कठोर हैं. शरिया क़ानून अपराधों को दो सामान्य श्रेणियों में विभाजित करता है- 'हद' और 'तज़ीर.'
पहला, 'हद', जो गंभीर अपराध हैं और इसके लिए अपराध तय किए गए हैं और दूसरा, 'तज़ीर' अपराध होता है. इसकी सज़ा न्याय करने वाले के विवेक पर छोड़ दी गई है.
हद वाले अपराधों में चोरी शामिल है. इसके लिए अपराधी के हाथ काटकर दंड दिया जा सकता है. वहीं व्यभिचार करने पर पत्थर मारकर मौत की सज़ा दी जा सकती है. अधिकांश इस्लामी विद्वानों की राय में धर्म परिवर्तन करने की सजा भी मौत है.
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