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नेपाल के प्रधानमंत्री ओली खुद अपनी पार्टी में घिरे; बिना सबूत दी नए नक्शे को मंजूरी, 11 सांसदों ने किया किनारा

ओली की पार्टी के 11 सांसदों ने बैठक से गैरहाजिर होकर संकेत दे दिया है कि आगे की राह इतनी आसान नहीं है. कूटनीतिज्ञों और विशेषज्ञों ने भी सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए हैं.

Updated on: 14 Jun 2020, 02:11 PM

highlights

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) खुद अपनी ही पार्टी में घिरे.
नए राजनीतिक नक्शे से जुड़े संविधान संशोधन की बैठक से गायब रहे उनके 11 सांसद.
बगौर पुख्ता सबूत नक्शे का दावा करने पर विशेषज्ञों और मीडिया ने भी तगड़े से घेरा.

नई दिल्ली:

चीन (China) की परदे के पीछे की शह पर भारत (India) को घेरने निकले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) खुद अपनी ही पार्टी में घिर से गए हैं. नेपाल के संशोधित राजनीतिक नक्शे (Map) के लिए संविधान संशोधन विधेयक को भले ही नेपाली संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में सर्वसम्मति से पारित करा लिया गया है, लेकिन ओली की पार्टी के 11 सांसदों ने बैठक से गैरहाजिर होकर संकेत दे दिया है कि आगे की राह इतनी आसान नहीं है. संभवतः इसकी एक बड़ी वजह यही है कि नेपाल के पास दावे की पुष्टि के लिए कोई ऐतिहासिक सबूत (No Evidence) नहीं है. यही कारण है कि कूटनीतिज्ञों और विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि नक्शे को जब मंत्रिमंडल ने पहले ही मंजूर कर जारी कर दिया है, तो फिर विशेषज्ञों के कार्यबल का गठन किस लिए किया गया?

दावा कर दिया अब तलाश करेंगे कागज़
दरअसल नेपाल भी यह खुद मान रहा है कि उसके पास कोई सबूत नहीं है. नए नक्शे को संसद में पास कराने के बाद नेपाल की सरकार ने एक कमेटी बनाई है. इस कमेटी से कहा गया है कि वो उन दस्तावेजों की तलाश करे जो साबित कर सकें कि जिन इलाकों पर नेपाल ने दावा किया है वह उनका है. ये किसी भी सरकार का बड़ा ही हास्यास्पद कदम है. इस कमेटी में 9 लोगों को रखा गया है, जिसका नेतृत्व बिष्णु राज उपरेती करेंगे. वह फिलहाल सरकार के पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं. हालांकि कमेटी बनाने के फैसले को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की स्थानीय मीडिया में आलोचना हो रही है. वहां के कई विशेषज्ञों और नेताओं का कहना है कि केमिटी बनाना नेपाल के पक्ष को और कमजोर करता है.

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नक्शे पर नेपाल की दलील
संशोधित नक्शे में भारत की सीमा से लगे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाकों पर दावा किया गया है. नेपाल का कहना है कि जिन इलाकों को उसने नए नक्शे में अपना हिस्सा बताया है, वहां साल 1962 तक उनका कब्जा था. उनकी दलील है कि वहां वह जनगणना करवाते थे. इसके अलावा जमीन रजिस्ट्री की लोगों को सर्टिफिकेट भी देते थे. हालांकि भारत ने नेपाल के दावों को पहले ही खारिज कर दिया है.

सुगौली संधि के तहत नेपाल के झूठे दावे
नेपाल ने दावा किया है कि सुगौली संधि के आधार पर उत्तराखंड में आने वाले तीन इलाके उसके हैं, जिस पर भारत का कब्जा है. सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान ब्रिटेन और नेपाल के बीच हुए युद्ध के बाद हरकत में लाया गया था. इस संधि के अनुसार नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति और ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखा को शामिल करने पर समझौता हुआ था.

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ओली को अपनी ही पार्टी का पूरा समर्थन नहीं
गौरतलब है कि शनिवार को नेपाली संसद के निचले सदन में नेपाल सरकार ने देश के नए नक्शे को मंजूरी दे दी है. अब इसे नेशनल असेंबली में भेजा जाएगा, जहां एक बार फिर से इस नक्शे को हरी झंडी मिलना तय है. इसकी वजह यही है कि सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास यहां दो तिहाई बहुमत है. हालांकि प्रधानमंत्री ओली संविधान संशोधन की बैठक में अपने ही सांसदों का शत-प्रतिशत समर्थन नहीं जुटा सके. आलम यह रहा है कि प्रतिनिधि सभा की इस महत्‍वपूर्ण बैठक से 11 सांसद गैरहाजिर रहे. इसमें 4 सांसद सत्‍तारूढ़ नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी, तीन नेपाली कांग्रेस और 4 अन्‍य जनता समाजबादी पार्टी के हैं. प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में 275 में से 258 सांसदों ने हिस्‍सा लिया. स्‍पीकर ऐसे मौकों पर वोट नहीं देते हैं और चार सांसद निलंबित चल रहे हैं.

विधेयक जाएगा नेशनल असेंबली
ओली सरकार ने 22 मई को इस विधेयक को संसद में सूचीबद्ध कराया था और विधि, न्याय एवं संसदीय कार्य मंत्री शिवामाया तुम्बाहाम्फे ने 24 मई को इसे सदन में पेश किया था. संसद ने नौ जून को आम सहमति से इस विधेयक के प्रस्ताव पर विचार करने पर सहमति जताई थी जिससे भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नए नक्शे को मंजूर किये जाने का रास्ता साफ हुआ. विधेयक को नेशनल असेंबली में भेजा जाएगा, जहां उसे एक बार फिर इसी प्रक्रिया से होकर गुजरना होगा. सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास नेशनल असेंबली में दो तिहाई बहुमत है. नियमों के तहत नेशनल असेंबली को विधेयक के प्रावधानों में संशोधन प्रस्ताव, अगर कोई हो तो, लाने के लिये सांसदों को 72 घंटे का वक्त देना होगा. नेशनल असेंबली से विधेयक के पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद इसे संविधान में शामिल किया जाएगा.