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मोदी-पुतिन मुलाकात से कुढ़ रहे अमेरिका-चीन, सभी को है कड़ा संदेश

गौरतलब है कि पुतिन के भारत पहुंचने के ठीक पहले रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम की दो यूनिट भारत के लिए रवाना की जा चुकी हैं.

Updated on: 06 Dec 2021, 09:11 AM

highlights

  • भारत को रूसी एस-400 डिफेंस सिस्टम रास नहीं आ रहा चीन-अमेरिका को
  • अमेरिका इस सौदे के खिलाफ काटसा प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है
  • रूस-चीन की बढ़ती नजदीकियों को झटका दे रहा है पुतिन का भारत दौरा

नई दिल्ली:

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) का दौरा भारत के लिए तो खास है ही, लेकिन कूटनीतिक स्तर पर भी इसके अलग मायने हैं. खासकर कोरोना संक्रमण और अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान की वापसी के बाद बदले वैश्विक समीकरण के लिहाज से भारत-रूस के मजबूत होते संबंधों का दूरगामी असर अमेरिका (America) और चीन दोनों पर ही पड़ेगा. एक तरफ अमेरिका रूस से एस-400 (S-400) मिसाइल डिफेंस सिस्टम लेने के खिलाफ है और प्रतिक्रिया स्वरूप भारत (India) पर काटसा प्रतिबंध लगाने की बात कह रहा है. दूसरी तरफ चीन है, जिसकी रूस (Russia) से नजदीकियां बढ़ रही हैं. यह अलग बात है कि पुतिन का दौरा चीन को यह सबक देगा कि भारत-रूस संबंध न सिर्फ परंपरागत हैं, बल्कि बदलते दौर में और प्रगाढ़ भी हो रहे हैं. इसके साथ ही चीन (China) को यह भी पता लग रहा है कि एशिया में रूस के लिए सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि भारत भी एक मजबूत दोस्त है. 

एस-400 सिस्टम है कुढ़न के मूल में
पीएम मोदी और पुतिन लगभग दो साल बाद आमने-सामने मुलाकात करेंगे. कोरोना संक्रमण काल के बाद पुतिन की यह पहली विदेश यात्रा है. इसके लिए भी भारत का चुनाव करने से कूटनीतिक पंडितों के साथ-साथ अमेरिका-चीन के भी कान खड़े हो गए हैं. गौरतलब है कि पुतिन के भारत पहुंचने के ठीक पहले रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम की दो यूनिट भारत के लिए रवाना की जा चुकी हैं. अमेरिका और चीन दोनों इस मिसाइल सिस्टम के समझौते को लेकर चिढ़े हैं. इसके अलावा पुतिन भारत प्रवास के दौरान करोड़ों डॉलर की कामोव केए-226टी हेलिकॉप्टर, एके-203 राइफल, इग्ला मैन पोर्टेबल मिलाइल लांचर के सौदे पर भी हस्ताक्षर कर सकते हैं. 

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चीन के लिए खास संदेश देता है दौरा
चीन के लिए पुतिन का दौरा खासा आहत करने वाला है. पुतिन भारत आकर यह भी ड्रैगन को जताना चाह रहे हैं कि भले ही चीन के साथ रूस के संबंध मजबूत हो रहे हैं, लेकिन इसका असर भारत संग संबंधों पर नहीं पड़ने वाला है. लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक भारत से उलझ रहे चीन को पुतिन की भारत यात्रा से यह एक कड़ा संदेश मिल रहा है. गौरतलब है कि अगस्त में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष होने के नाते समुद्री सुरक्षा पर बैठक आयोजित की थी. इस बैठक में पीएम मोदी के निमंत्रण और आग्रह पर पुतिन भी शामिल हुए थे. यानी बात जब सामरिक हितों की आएगी, तो रूस हर कदम पर भारत के साथ ही खड़ा होगा.

क्रेमलिन भी जानता है चीन कतई विश्वस्त नहीं
अगर वैश्विक समीकरणों की बात करें तो शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से अमेरिका के खिलाफ चीन और रूस समीकरण काफी मजबूत हुए हैं. ऐसे में रूस के साथ भारत के प्रगाढ़ संबंध चीन के लिए एक सबक का काम भी करेगा कि रूस के पास एशिया में एक और दोस्त मौजूद है, जिससे संबंध दशकों पुराने हैं. हालांकि अमेरिका के खिलाफ रूस और चीन नजदीक आए हैं. इन दोनों देशों में कुछ-कुछ साम्य अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के प्रति लचीले रवैये में भी देखने को मिला, लेकिन इसकी वजह समझी जा सकती है कि दोनों ही के इसमें अपने-अपने स्वार्थ शामिल हैं. फिर क्रेमलिन धोखेबाज चीन की फितरत से अच्छे से वाकिफ है. रूस-चीन के बीच सीमा विवाद भी है. शीत युद्ध के दौरान रूस और चीन की राहें अलग-अलग हुआ करती थी. ऐसे में रूस जानता है कि चीन मौकापरस्त है और कभी भी पलट सकता है.

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रूस ने भारत को दिया चीन से बेहतर एस-400 सिस्टम
रूस से सामरिक संबंधों के लिहाज से भी भारत का पलड़ा भारी है. गौरतलब है कि चीन ने भी 2014 में रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा था, जिसे उसने 2018 में डिलिवरी के बाद भारत सीमा पर तैनात कर रखा है. यह अलग बात है कि भारत को रूस से जो एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम मिल रहा है, वह चीन की तुलना में कहीं अधिक आधुनिक और लंबी दूरी तक मार करने वाला है. इसका आधार बनी है अंतरराष्ट्रीय संधि मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, जिसका भारत सदस्य है, जबकि चीन नहीं. इस संधि के नियमों के अनुसार कोई भी देश गैर सदस्य देशों को 300 किलोमीटर से ज्यादा रेंज की मिसाइलों को नहीं बेंच सकता है. इसी कारण रूस ने भारत को चीन से ज्यादा लंबी दूरी तक मार करने वाला मिसाइल डिफेंस सिस्टम दिया है.

अमेरिका काटसा प्रतिबंधों को दिखा रहा डर
चीन के बाद अब बात करते हैं अमेरिका की, जो रूस से एस-400 सौदे का विरोध कर रहा है. साथ ही काटसा कानून का डर भी दिखा रहा है. यह अलग बात है कि सामरिक समीकरणों को समझते हुए कई सीनेटर्स और लॉबिस्ट भारत के खिलाफ ऐसे किसी कड़े कदम का विरोध कर रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह भारत-प्रशांत क्षेत्र है, जो चीन, अमेरिका समेत रूस के लिए सामरिक लिहाज से वर्चस्व स्थापित करने का केंद्र बन चुका है. जाहिर है इसके लिए रूस-अमेरिका दोनों ही भारत की मदद के बगैर अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पाएंगे. अमेरिका के रणनीतिकार अच्छे से जानते हैं कि यदि भारत-रूस के साथ नेवल बेस को इस्तेमाल करने की संधि को अंतिम रूप दे देता है तो अमेरिकी हितों को भारी नुकसान पहुंचेगा. यही नहीं, अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक है और भारत सबसे बड़ा खरीदार. अगर भारत रूस के साथ कई दूसरे तरह के हथियारों की डील करता है, तो इससे अमेरिकी रक्षा बाजार के लिए खतरे की घंटी होगी. 

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भारत जैसा सहयोगी खोना भारी पड़ेगा अमेरिका को
इसे समझने वाले अमेरिकी सेना के इंडो-पैसिफिक कमांड के चीफ एडमिरल जॉन एक्वीलिनो यूएस कांग्रेस को खरी-खोटी सुना चुके हैं. उन्होंने कहा था कि अमेरिका को समझने की जरूरत है कि सुरक्षा सहयोग और सैन्य साज-ओ-सामान के लिए भारत के रूस के साथ पुराने संबंध हैं. उन्होंने रूस से भारत के एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर भी प्रतिबंधों को न लगाने की वकालत की थी. एडमिरल जॉन एक्वीलिनो ने कहा कि वह हथियारों को खरीदने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लेने के बजाय भारत को रूस से दूर करने की कोशिश करेंगे. एक्वीलिनो ने दो टूक कहा था कि बाइडन प्रशासन को समझना चाहिए कि अमेरिका भारत के साथ कहां खड़ा है. ऐसे में कोई भी कड़ा कदम न सिर्फ भारत को अमेरिका से दूर कर देगा, बल्कि रूस के हाथों एक विश्वस्त सहयोगी को भी गंवा देगा.