गांधीजी समाज सुधारक नहीं...कट्टर रूढ़िवादी और छुआछूत समर्थक थेः आंबेडकर

गांधीजी ने छुआछूत (Untouchability) जैसे मसलों को सिर्फ इसलिए उठाया ताकि वे (शिड्यूल्ड कास्ट) कांग्रेस (Congress) से जुड़े रहें. साथ ही गांधीजी के आंदोलन स्वराज का विरोध नहीं करें.

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Nihar Saxena
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1937 में कोडम्बक्कम औद्योगिक क्षेत्र में हरिजन स्कूल का दौरा करते बापू( Photo Credit : न्यूज नेशन)

इतिहास खासकर आधुनिक भारत (India) का, न सिर्फ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को महान समाज सुधारक, जाति-वर्ण व्यवस्था के विरोधी और शिड्यूल्ड कास्ट के परम हितैषी के रूप में जानता है, बल्कि तमाम अन्य बातों के लिए भी बापू के आदर्शों का पालन करता है. यह अलग बात है कि बीबीसी को दिए संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर (Baba Saheb Ambedkar) के साक्षात्कार के अंश एक दूसरी ही सच्चाई सामने लाते हैं. इसके मुताबिक गांधीजी ने छुआछूत (Untouchability) जैसे मसलों को सिर्फ इसलिए उठाया ताकि वे (शिड्यूल्ड कास्ट) कांग्रेस (Congress) से जुड़े रहें. साथ ही गांधीजी के आंदोलन स्वराज का विरोध नहीं करें. नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की पुण्यतिथि पर बाबा साहब आंबेडकर का यह साक्षात्कार सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म पर चल रहा है.

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बीबीसी के फ्रांसिस वॉटसन से किए गांधी के खुलासे
यह इंटरव्यू बीबीसी के फ्रांसिस वॉटसन को फरवरी 1955 में बाबा साहब आंबेडकर ने दिया था. इसमें उन्होंने साफतौर पर कहा था कि वह महात्मा भक्त के बजाय विरोधी के तौर पर महात्मा गांधी से कई बार मिले थे. इस वजह से वह बतौर इंसान उन्हें कहीं बेहतर तरीके से जानते थे. गांधीजी को समझने के लिए उन्होंने गांधीजी द्वारा संपादित तो पत्रों का जिक्र किया. एक था 'हरिजन' या 'यंग इंडिया' दूसरा था गुजराती पत्र 'दीन बंधु'. इसमें प्रकाशित सामग्री के आधार पर आंबेडकर ने फ्रांसिस वॉटसन ने कहा था कि वास्तव में महात्मा गांधी छुआछूत और वर्ण व्यवस्था के नाम पर उससे जुड़े तबके को धोखा दे रहे थे.

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गांधी जननायक नहीं, भारतीय इतिहास के अध्याय भर
फ्रांसिस वॉटसन को दिए साक्षात्कार में बाबा साहब आंबेडकर कहते हैं, 'मैंने गांधी को एक इंसान बतौर देखा. उस नजर से जो उन्हें महात्मा मानने वालों के पास नहीं थी. इस कारण मैं उन्हें कहीं बेहतर ढंग से समझ सका. मुझे बेहद आश्चर्य है कि पश्चिम उन्हें जिस नजरिये से देखता था, वह बात उनके अंदर थी ही नहीं. वह भारतीय इतिहास का एक अध्याय भर हैं न कि जननायक. उन्हें समझना हो तो उनके द्वारा संपादित पत्र-पत्रिकाओं को देखना होगा. खासकर 'हरिजन' और 'यंग इंडिया' दूसरा था गुजराती पत्र 'दीन बंधु'. इसमें उनका वास्तविक चरित्र और सोच सामने आती है.' वह कहते हैं कि दुर्भाग्य से गांधीजी की तमाम बॉयोग्रफियां हरिजन में छपे लेखों के आधार पर लिखी गई हैं. अगर दीनबंधु को आधार बनाएं तो सही तस्वीर सामने आ जाएगी.

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शिड्यूल्ड कास्ट के उत्थान के खिलाफ थे गांधी
आंबेडकर साक्षात्कार के दौरान फ्रांसिस वॉटसन से कहते हैं, 'भारत में छुआछूत जैसी बुराई तो करीब दो हजार से विद्यमान थी. पानी नहीं भरने देना, मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देना. इससे क्या फर्क पड़ता है. असल समस्या थी उन्हें गरिमा के साथ जीना समेत सवर्णों की तरह समान अवसरों का उपलब्ध कराए जाना. मेरी भाषा में इसे स्ट्रेटेजिक पोजीशन कहते हैं. इसके तहत ही असल समाज सुधार होता और शिड्यूल्ड कास्ट से जुड़े लोग अपने लोगों की रक्षा कर सकते. सच तो यह है कि गांधी इसके सख्त खिलाफ थे. इस मामले में पूरी तरह से कट्टर रूढ़िवादी.'

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शिड्यूल्ड कास्ट की पैरवी निजी स्वार्थ के गांधी के
साक्षात्कार में आंबेडकर कहते हैं, 'वास्तव में गांधी डबल डीलिंग कर रहे थे. अंग्रेजी पत्र पढ़कर पश्चिम उन्हें छुआछूत वर्ण व्यवस्था के विरोधी के तौर पर संघर्ष कर रहे महात्मा के रूप में देखता था. हालांकि उनके असल विचार गुजराती पत्र दीनबंधु से उजागर होते हैं, जो उन्हें पूरी तरह से कट्टर बताते हैं. वह हर लिहाज से वर्ण व्य़वस्था को समर्थन करते थे. वह उनके मंदिर में प्रवेश की बात करते थे, लेकिन यह सब सिर्फ उन्हें भरमाने की बातें ज्यादा थीं. वह समाज सुधारक कतई नहीं रहे. इसके गुण तो गांधी के अंदर थे ही नहीं. वह सिर्फ बातें जरूर करते थे ताकि वंचित-शोषित तबका कांग्रेस से जुड़ा रहे और उनके स्वराज आंदोलन का विरोध नहीं करे. वह गैरिसन नहीं थे, जिन्होंने अमेरिका में नीग्रो लोगों के लिए उम्र खपा दी.'

Source : Nihar Ranjan Saxena

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