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Maharashtra Politics : विकल्पहीन उद्धव बढ़ाएंगे हाथ, BJP-शिवसेना नजदीक

महाविकास आघाड़ी ( Mahavikas Aghadi) की सरकार जाने और एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) और उद्धव ठाकरे के बीच दूरियां कम होने के संकेत सामने आ रहे हैं.

Updated on: 12 Jul 2022, 07:03 PM

highlights

  • शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच विवाद गहराया
  • शिवसेना का एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान
  • उद्धव ठाकरे ने सांसदों की बैठक में राउत की राय को तरजीह नहीं दी

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र की राजनीति ( Maharashtra Politics ) में जल्द ही फिर नया बदलाव देखने को मिल सकता है. सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना ( Shiv Sena) दोबारा नजदीक आ सकते हैं. महाविकास आघाड़ी ( Mahavikas Aghadi) की सरकार जाने और एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी और उद्धव ठाकरे के बीच दूरियां कम होने के संकेत सामने आ रहे हैं. हिंदुत्व ( Hindutva) का मुद्दा इन दोनों दलों के रिश्ते को फिर से मधुर कर सकता है. वहीं सरकार जाने के बाद हिंदुत्व समेत कई मुद्दों पर महाविकास आघाड़ी के सहयोगी दल कांग्रेस ( Congress) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की शिवसेना से दूरी साफ दिखने लगी है.

बीते दिनों महाराष्ट्र की सियासी उठापटक के बीच कई ऐसे मौके आए हैं जब उद्धव ठाकरे और बीजेपी की नजदीकियां बढ़ती दिखी है. शिवसेना के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट, पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे गुट और बीजेपी की तरफ से एक-दूसरे पर जारी बयानबाजी के बीच राजनीतिक जानकारों ने इनकी नजदीकियों की संभावना जताई है. आइए, जानते हैं कि उद्धव ठाकरे और बीजेपी और शिंदे गुट की ओर से किन मौकों पर ऐसे कदम बढ़ाए गए हैं.

राष्ट्रपति चुनाव 2022 में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन

शिवसेना ने मंगलवार को राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. शिवसेना  प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चर्चा के लिए सोमवार को सांसदों की बैठक बुलाई थी. इसमें शिवसेना के 18 सांसदों में से 10 ही पहुंचे. इस राजनीतिक संकेत और मौजूदा सांसदों की राय लेकर उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने का फैसला किया. शिवसेना के ज्यादातर विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं. उनका बीजेपी के साथ घोषित गठबंधन है. इससे तय हो गया कि राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना के विधायक और सांसद द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करेंगे. 

संजय राउत की राय से उद्धव ठाकरे की नाइत्तफाकी

शिवसेना सांसदों के साथ बैठक के बाद मंगलवार सुबह राज्यसभा सदस्य संजय राउत के ट्वीट ने काफी चर्चा बटोरी. उन्होंने उद्धव ठाकरे, प्रियंका गांधी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मेंशन कर जौन एलिया का एक शेर लिखा, 'अब नहीं कोई बात खतरे की... अब सभी को सभी से खतरा है.' संजय राउत के ट्वीट के बाद इस बात ने तूल पकड़ ली कि संजय राउत राष्ट्रपति चुनाव 2022 में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करना चाहते थे. उद्धव ठाकरे ने सोमवार को सांसदों की बैठक में राउत की राय को तरजीह नहीं दी. 

बीजेपी नेताओं का ठाकरे परिवार पर निशाना नहीं

बीजेपी और उसके सहयोगी एकनाथ शिंदे शिवसेना गुट ने ठाकरे परिवार के खिलाफ कुछ नहीं बोलने की रणनीति बनाई है. शिंदे गुट के विधायक दीपक केसरकर ने कहा था कि हमने बीजेपी के साथ जाते हुए तय किया था कि हमारे पार्टी प्रमुख और उनके परिवार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला जाएगा. ताज होटल में शिवसेना और बीजेपी विधायकों के बीच बैठक में यह फैसला किया गया. किरीट सोमैया ने हमारे पार्टी प्रमुख के खिलाफ टिप्पणी की तो मैंने देवेंद्र फडणवीस से बात की. उन्होंने स्वीकार किया कि हमने तय किया था कि ठाकरे परिवार के खिलाफ कुछ भी नकारात्मक नहीं कहा जाएगा. 

आदित्य ठाकरे को दल-बदल का नोटिस नहीं देना 

बीते दिनों शिवसेना के दोनों गुटों यानी उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे एक-दूसरे गुट के विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के बीच राज्य विधायिका के प्रमुख सचिव राजेंद्र भागवत ने सोमवार को शिवसेना के 53 विधायकों को दलबदल के आधार पर अयोग्यता नियम के तहत नोटिस जारी किया. विधायकों को सात दिन में जवाब देने का निर्देश दिया गया है. इनमें शिंदे और उद्धव दोनों गुट के विधायकों के नाम हैं. हैरानी की बात है कि आदित्य ठाकरे को ये नोटिस नहीं जारी किया गया है. इसे बीजेपी और एकनाथ शिंदे की ओर से आदित्य ठाकरे को लेकर नरमी का संकेत है.

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महाविकास आघाड़ी में बढ़ता दलीय विवाद

मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे की आखिरी कैबिनेट में लिए गए फैसले को लेकर शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच विवाद गहराने लगा है. दो जिलों के नाम बदलने को लेकर दोनों दलों ने शिवसेना के फैसले से अपनी नाइत्तफाकी जाहिर की है. हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर भी तीनों दलों के मतभेद सामने आने लगे हैं. एनसीपी प्रमुख शरद पवार तक के बयान दूरी दिखाने वाले हैं. उन्होंने साफ कहा कि कैबिनेट के प्रस्ताव अचानक आए और ले लिए गए. उनकी पार्टी की इससे सहमति नहीं थी. वहीं कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उन्होंने इस फैसले का विरोध किया था.