बॉलीवुड ने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दी अलग पहचान
ये तो सभी जानते हैं कि फिल्में हमारे दैनिक जीवन को भी प्रभावित करती हैं. फिल्मों में जो हिंदी प्रयोग हो रही है, उस पर तमाम बहस चलती रहती है. हिंदी दिवस के अवसर पर यह और भी प्रासंगिक हो जाती है.
highlights
- 14 सितंबर को मनाया जाता है हिंदी दिवस
- फिल्मों में प्रयोग हो रही हिंदी पर होती रहती है बहस
- बॉलीवुड ने हिंदी को कई देशों में पहुुंचाया
नई दिल्ली :
अरे ओ, कालिया.. कितने आदमी थे, बड़े-बड़े देशों में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं, मोगैंबो खुश हुआ...ये डायलॉग लोगों की जुबान पर आज भी अक्सर चढ़े रहते हैं. अगर हम कहें कि इन संवादों यानी डायलॉग का हिंदी दिवस पर विशेष महत्व है तो आप सोचेंगे इनका हिंदी दिवस से क्या लेना-देना तो जनाब बता दें, हम बात कर रहे हैं फिल्मों में प्रयोग हो रही हिंदी की. 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस पर हिंदी भाषा को लेकर तमाम भाषण, सेमिनार और चर्चाएं होती रहती हैं. हिंदी के आगे कैसे बढ़ाया जाए और इसे वैश्विक भाषा कैसे बनाएं इसके लिए लोग तमाम तरह के उपाय बताते हैं. वहीं, दूसरी ओर आजकल फिल्मों में प्रयोग हो रही हिंदी भाषा को लेकर भी लोगों की तरह-तरह की राय है.
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ये तो सभी जानते हैं कि फिल्में हमारे दैनिक जीवन को भी प्रभावित करती हैं. ऐसे में फिल्मों में प्रयोग रही हिंदी पर हमने एएएफटी (एशियन एकेडमी आफ फिल्म एंड टेलीविजन) के स्क्रिप्ट राइटिंग के एचओडी सिद्धार्थ तिवारी से बात की. उन्होंने कहा कि हमें फिल्मों में प्रयोग हो रही हिंदी को नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए. बॉलीवुड फिल्मों ने हिंदी को ग्लोबल बनाया है. आज बॉलीवुड की फिल्में तमाम देशों में देखी जा रही हैं. बेशक विदेशों में लोग डब मूवी देखते हैं लेकिन हिंदी फिल्मों का टैग होने से हिंदी को लाभ तो मिलता ही है. दूसरे देशों के तमाम कलाकार अभी बॉलीवुड में फिल्में करने और बनाने में रूचि ले रहे हैं. यह बहुत अच्छी बात है. हमें ये समझना होगा कि जितना बॉलीवुड के वैश्विक स्तर पर प्रसार होगा, उतना ही हिंदी का भी प्रसार होगा.
हिंदी फिल्मों में क्षेत्रीय भाषा और गालियों के प्रयोग के बारे में उन्होंने कहा कि जहां तक क्षेत्रीय भाषा का सवाल है तो यह हिंदी के लिए अच्छा ही है. सिद्धार्थ तिवारी ने कहा कि सिर्फ खड़ी बोली ही हिंदी नहीं है. हिंदी के तमाम रूप हैं. भोजपुरी भी हिंदी है, ब्रज भाषा भी हिंदी है, अवधी भी हिंदी है, बज्रिका भी हिंदी है और मगही भी हिंदी ही है. हिंदी के तमाम स्वरूप हैं. हम ऐसे देश में रहते हैं जहां कहा जाता है चार कोस पर पानी बदले कोस-कोस पर बानी. जब हमारी हिंदी में इतनी विविधता है तो उसे सिल्वर स्क्रीन पर दिखाने से क्या दिक्कत है, बल्कि ये तो अच्छी बात है कि हिंदी की तमाम बोलियां एक ही मंच पर दिखाई दे रही हैं. इससे नई पीढ़ी के बच्चों को एक ही जगह हिंदी के तमाम शब्दों को समझने में मदद मिलती है और उनकी रुचि बढ़ती है. जहां तक गालियों की बात है तो उसे हिंदी भाषा से जोड़कर मत देखिए बल्कि प्रचलन यानी ट्रेंड से जोड़कर देखना चाहिए. वैसे, इस बारे में सेंसर बोर्ड की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है.
वहीं, इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेरा ने भी वैश्विक प्रसार की बात का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि ऐसे देशों में, जहां लोग जानते ही नहीं थे कि हिंदी कोई भाषा है, वहां हिंदी के बारे में जानने लगे. इसका बहुत बड़ा श्रेय बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों को जाता है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के बाहर तमाम देशों में हिंदी भाषा को फैलाने में हिंदी फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है हालांकि उमाकांत लेखरा ने हिंदी लिपि के कमजोर ज्ञान पर चिंता भी जताई. उन्होंने कहा कि यह देखने में आया है कि हिंदी के डायलॉग भी रोमन में लिखे जाता हैं. कई बार तो हिंदी के स्क्रिप्ट राइटर को ही शुद्ध हिंदी लिखनी नहीं आती. दूसरे देशों के जो कलाकार आते हैं, उनकी बात तो अलग है, हिंदी भाषी क्षेत्रों के कलाकार भी रोमन में लिखी हिंदी पढ़ते हैं. यह चिंताजनक है.
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