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EXCLUSIVE : अगर आप हैं टीचर तो रहे सावधान, ये खबर जरूर पढ़ें

एसटीएफ ने पूरे प्रदेश में छापेमारी कर ये खुलासा किया है कि यूपी के सरकारी स्कूलों में तैनात तमाम अध्यापक फर्जी हैं. एक ही नाम और पते के अध्यापक प्रदेश के कई जिलों में एक साथ पढ़ा रहे हैं.

Updated on: 06 Jan 2021, 05:02 PM

लखनऊ:

अगर आप उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूल में अध्यापक बनने के लिए तैयारी कर रहे हैं या बन चुके हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि हो सकता है कि आपके क्लोन किसी दूर के दूसरे जिले के सरकारी स्कूल में अध्यापक बन कर आपके नाम से वेतन उठा रहा हों और आपको भनक तक नही हो. स्पेशल टास्क फोर्स ने पिछले कुछ दिनों में प्रदेश के कई जिलों में ऐसे नकली शिक्षकों को गिरफ्तार किया है जो असली अध्यापकों के डिग्री की क्लोनिंग करके उसके नाम के साथ उसके पिता का नाम भी अपना लेते थे और फर्जी कागजातों की बदौलत सालों से वेतन उठा रहे थे. आज हम करेंगे इसी मामले की तहकीकात और जानने की कोशिश करेंगे कि जालसाज यह गोरखधंधा कब से और कैसे संचालित करते आ रहे हैं. 

यूपी में सरकारी स्कूलों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. प्रदेश सरकार लाख कोशिश कर रही है कि शिक्षा का स्तर ऊपर उठाया जाए, लेकिन अध्यापकों की लापरवाही की वजह से आज भी यह नही हो पा रहा है. इन सबके बीच एसटीएफ के खुलासे ने इस बदहाल व्यवस्था की हकीकत सामने ला दी है. एसटीएफ ने पूरे प्रदेश में छापेमारी कर ये खुलासा किया है कि यूपी के सरकारी स्कूलों में तैनात तमाम अध्यापक फर्जी हैं. एक ही नाम और पते के अध्यापक प्रदेश के कई जिलों में एक साथ पढ़ा रहे हैं. एसटीएफ के इस जाँच रिपोर्ट पर हमने भी तहकीकात करने की शुरुआत की और सबसे पहले हम पहुंचे देवरिया.

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देवरिया जिले के भाटपार रानी इलाके में एक गांव है कुचईवर. यह गांव आज ना सिर्फ इस जिले में बल्कि आसपास के दर्जनों जिलों में जाना जाने लगा है, लेकिन इसकी पहचान इसलिए है क्योंकि इसी गांव के रहने वाले एक जालसाज राकेश सिंह के द्वारा प्रदेश के कई जिलों में तमाम लोगों को फर्जी डिग्री और कागजातों की बदौलत अध्यापक बनाया गया है. राकेश सिंह खुद भी सिद्धार्थनगर में अध्यापक है और अपने सहयोगी अश्विनी श्रीवास्तव के साथ इस फर्जीवाड़े के धंधे में पिछले कई सालों से लगा हुआ है. 

कुचईवर गांव में राकेश का आलीशान मकान और प्रॉपर्टी देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार की इस काली कमाई को उसने कैसे खर्च किया है. राकेश का अपना प्राइवेट स्कूल भी है जो उसके पिता के द्वारा संचालित किया जाता है . पिछले 5 सालों में एसटीएफ ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में जब कभी किसी फर्जी अध्यापक को गिरफ्तार किया तो उस मामले में सरगना के रूप में राकेश सिंह का ही नाम सामने आया है. कुछ दिन पहले इसी गांव के रहने वाले बृजेन्द्र उर्फ बृजकिशोर उर्फ भोला यादव को जब एसटीएफ ने जाली सर्टिफिकेट के आधार पर सिद्धार्थनगर में नौकरी करते हुए पकड़ा तो उसने भी एसटीएफ को बताया कि उसकी फर्जी डिग्री राकेश सिंह और उसके सहयोगी अश्वनी ने साल 2015 में तैयार कर उसे नौकरी दिलाई है. सबसे पहले हम इस गांव में राकेश सिंह के घर पहुंचे जहां पर उसके पिता भागवत सिंह मिले. राकेश के बारे में पूछने पर उसके पिता ने बताया कि वह अभी कहीं बाहर गया है और हमारी उससे मुलाकात नहीं हो पाएगी. राकेश के पिता से जब हमने इस आरोप के बारे में बात की तो उन्होंने इसे पूरी तरह से गलत बताया और एसटीएफ के ऊपर ही बार-बार अपनी बेटे को फंसाने का आरोप लगा दिया.

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राकेश परिवार के बाद हम इसी गांव के रहने वाले बृज किशोर यादव के घर पहुंचे जिसे सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज में फर्जी कागजों के सहारे नौकरी करते हुए एसटीएफ ने पकड़ा है. बृजकिशोर के पिता और परिवार के लोग उसके पकड़े जाने से काफी दुखी दिखाई दिए. इनका कहना है कि उनके बेटे ने अपनी पढ़ाई काफी गंभीरता से की थी और उसने बताया था कि उसकी सरकारी नौकरी लग गई है. इनको यकीन नहीं हो रहा है कि उनका बेटा फर्जी कागजों के सहारे अध्यापक बनकर पिछले 5 साल से सिद्धार्थनगर में पढ़ा रहा है. बृजकिशोर के परिजनों का कहना है कि उनसे उनकी बहुत बात नहीं होती थी और राकेश के साथ उनका क्या संबंध था इसके बारे में भी उनको बहुत कुछ पता नहीं है. हालांकि यह परिवार यह मानने को तैयार नहीं है कि इनके बेटे ने इतना बड़ा फर्जीवाड़ा किया होगा. 

बृज किशोर यादव उर्फ भोला सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज में जहां पढ़ाता था. वहां के अध्यापकों का कहना है कि उनको पहले से ही शक था कि इस अध्यापक की डिग्री फर्जी है क्योंकि उसके हावभाव और पढ़ाई कराने के तरीके से उनको कई बार शक हुआ था. बृज किशोर दूसरे साथी अध्यापकों से भी कम मिलता था और बच्चों की कक्षाएं भी कम ही लेता था. 

देवरिया जिले के जगन्नाथ छपरा स्कूल के एक अध्यापक केशव कांत मिश्र को एसटीएफ ने फर्जी कागजातों के सहारे नौकरी करने का आरोप में गिरफ्तार किया है. केशव कांत मिश्र देवरिया से सलेमपुर इलाके का रहने वाला है, लेकिन इसने भदोही में तैनात अध्यापक कमल कांत मिश्र के दस्तावेजों का हेरा फेरी किया और खुद केशव कांत से कमलकांत बन बैठा. पिछले 10 सालों से केशव कांत उर्फ कमल कांत जगरनाथ छपरा स्कूल में सहायक अध्यापक और अब प्रधानाध्यापक के पद पर काम कर रहा था. स्कूल की दीवारों से लेकर सरकारी दस्तावेजों में यह कमलकांत था. केशवकांत के गिरफ्तारी के बाद से उसके साथ काम करने वाले दूसरे अध्यापक सदमे में है. इनको यकीन नहीं हो रहा है कि इनके साथ पिछले कई सालों से बच्चों को पढ़ाने वाला अध्यापक पूरी तरह से फर्जी है. इस स्कूल में जितने भी कार्यक्रम होते थे उसमें केशव उर्फ कमल बेहद प्रमुखता से भाग लेता था और विद्यालय से लेकर के जिले तक का सारा कागजी काम भी वही किया करता था. इसकी गिरफ्तारी के बाद से इसके साथ वाले अध्यापकों का कहना है कि उनको बेहद दुख हो रहा है कि इस तरह का व्यक्ति उनके साथ पढ़ा रहा था जो कहीं से भी अध्यापक नहीं था. जिसने एक अध्यापक के हक को मारकर इस पेशे के साथ खिलवाड़ किया था. 

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वही नकली कमलकांत की गिरफ्तारी के बाद से असली कमलकांत काफी खुश नजर आ रहे हैं. इनका कहना है कि इनको पता ही नहीं था कि इनके डिग्री पर कोई और व्यक्ति कहीं पर पिछले 10 साल से पढ़ा रहा है. भदोही में तैनात असली कमलकांत का कहना है कि उन्होंने कई जिलों में एक साथ आवेदन किया था और अपने दस्तावेज उन जिलों के बेसिक शिक्षा कार्यालय में जमा किए थे. 

कुछ इसी तरह के सदमे से महाराजगंज के रहने वाले सूरज उपाध्याय गुजर रहे हैं. सूरज की टीचर की डिग्री का फर्जीवाड़ा कर सुभाष पांडेय नामक एक व्यक्ति ने सूरज उपाध्याय के नाम से ना सिर्फ अपना फर्जी डिग्री बनवाया बल्कि अपने पिता का नाम आधार कार्ड और पैन कार्ड भी सूरज उपाध्याय के नाम से ही बनवा लिया. सुभाष उर्फ सूरज इन फर्जी दस्तावेजों के सहारे बाराबंकी में पिछले कई सालों से एक सरकारी स्कूल में अध्यापक भी हो गया था. असली सूरज को अपने एक मित्र के माध्यम से पता चला कि कोई व्यक्ति उसके नाम से दूसरे जिले में पढ़ा रहा है. इस बात को लेकर उसने शिकायत की एसटीएफ ने जब जांच कर नकली सूरज उर्फ सुभाष को गिरफ्तार किया, तब जाकर असली सूरज को चैन मिला. सूरज का कहना है कि जब अपने दस्तावेजों की जांच के लिए उन्होंने डायट में अपने मूल प्रपत्र जमा किए होंगे तभी शिक्षा माफियाओं के हाथ उनके दस्तावेज लगे होंगे और यह फर्जीवाड़ा किया गया होगा. 

यह कुछ मामले तो सिर्फ एक बानगी हैं. उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में नकली डिग्री नकली मास्टर का खेल ख़ूब हो रहा है. इनमें एक टीचर असली है और बाक़ी फ़र्ज़ी. जब एक के बाद एक ऐसे कई मामले सामने आए तो स्पेशल टास्क फोर्स को जांच की ज़िम्मेदारी दी गई. इस जांच में अब तक हजारों से ज़्यादा ऐसे फ़र्ज़ी टीचरों की पहचान कर ली गई है. अंदेशा है कि इनकी तादाद इससे कहीं ज़्यादा है. कहा तो ये भी जा रहा है कि प्राइमरी शिक्षा पर उत्तर प्रदेश सरकार के पूरे बजट का क़रीब 10 से 15 हज़ार करोड़ ऐसे ही फ़र्ज़ी टीचर्स पर खर्च हो रहा है.