कोरोना काल में काजू की बेतहाशा खपत, 60 फीसदी से ज्यादा रिकॉर्ड इंपोर्ट
देश में काजू के निर्यात में कमी को साफ देखा जा रहा है. आठ साल पहले तक भारत सालाना 1,00,000 टन काजू का निर्यात करता था. इस साल 2021-22 में यह घटकर लगभग आधा यानी 51,908 टन रह गया है.
highlights
- देश में काजू की 60 फीसदी खपत आयात के जरिए पूरी की जाती है
- सितंबर के बाद त्योहारों के सीजन में काजू की कीमतो में तेजी आएगी
- DCCD के मुताबिक एक साल में ब्रांडेड काजू की बिक्री 30-40 % बढ़ी
नई दिल्ली:
कोरोना काल (Corona Virus Pandemic) में देश में सूखे मेवे की खपत बढ़ी है. कारोबारी इसे इम्युनिटी बढ़ाने को लेकर लोगों में फैली जागरूकता को बड़ी वजह बता रहे हैं. कोरोना महामारी के बाद खासकर काजू की खपत में डेढ़ गुणा से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. देश में अब काजू की सालाना खपत बढ़कर तीन लाख टन पहुंच गई है. कोरोना महामारी से पहले इसकी खपत दो लाख टन तक रहती थी. काजू एवं कोकोआ विकास निदेशालय (DCCD) ने इसके साथ ही बताया कि एक साल पहले के मुकाबले ब्रांडेड काजू की बिक्री भी 30-40 फीसदी बढ़ गई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में बढ़ती काजू की खपत को देखकर उत्पादक भी निर्यात ( Export) की जगह घरेलू बाजार ( Domestic Market) पर फोकस कर रहे हैं. इसकी वजह से बाजार में काजू की कीमतों में उछाल आने की संभावना भी बढ़ गई है. सूखे मेवे के बाजार के जानकारों के मुताबिक सितंबर के बाद त्योहारों के सीजन शुरू होने से काजू की कीमतों में तेजी आनी शुरू होगी. यानी वित्तवर्ष की दूसरी छमाही में काजू की कीमतों में उछाल आने की उम्मीद है. फिलहाल काजू की मांग और खपत के मुताबिक कीमतों में ज्यादा बढ़त दर्ज नहीं की गई है.
लगभग आधा हो गया देश से काजू का निर्यात
देश में काजू के निर्यात में कमी को साफ देखा जा रहा है. DCCD के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद काजू की घरेलू खपत बढ़ने से उत्पादकों-कारोबारियों के घरेलू बाजार पर फोकस से निर्यात में कमी दिख रही है. आठ साल पहले तक भारत सालाना 1,00,000 टन काजू का निर्यात करता था. इस साल 2021-22 में यह घटकर लगभग आधा यानी 51,908 टन रह गया है. कारोबारियों का कहना है कि दो कारणों से काजू के निर्यात में तेजी से गिरावट आ रही है.
काजू के आयात-निर्यात को लेकर ये है गणित
निर्यातकों के संगठन से सामने आई जानकारी के मुताबिक निर्यात कम होने का पहला कारण घरेलू खपत बढ़ने से बाहर माल भेजने की ज्यादा जरूरत नहीं रही है. उन्होंने बताया कि अगर हम 20 फीट के कंटेनर को घरेलू बाजार में बेचते हैं तो इसमें करीब 15 टन काजू आता है. इससे हमें 5-8 लाख रुपये ज्यादा मिल जाते हैं. वहीं, दूसरा कारण कच्चे काजू आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगाए जाने से यह महंगा हो गया है. साथ ही निर्यात पर इंसेंटिव अब 6 फीसदी से घटकर 2.15 फीसदी रह गया है. ऐसे में भारतीय काजू ग्लोबल मार्केट के लिए प्रतिस्पर्धी नहीं रहा.
सबसे बड़ा काजू निर्यातक देश बना वियतनाम
भारत से काजू के निर्यात घटने के बाद वियतनाम जैसे देशों ने काजू का निर्यात बढ़ा दिया है. वहीं भारत से उलट कोरोना काल में वियतनाम में काजू की स्थानीय खपत घट गई है. इसलिए वहां निर्यात में तेजी आ रही है. अब वियतनाम दुनिया का सबसे बड़ा काजू निर्यातक देश बन गया है. वहां से हर महीने इतने काजू का निर्यात होता है, जितना भारत अब सालभर में करता है. भारतीय निर्यातकों के मुताबिक हमारे काजू की ग्लोबल मार्केट में कीमत 3.50 डॉलर प्रति पाउंड है, जबकि वियतनाम के काजू की कीमत 2.8 डॉलर प्रति पाउंड है.
अफ्रीका से सबसे ज्यादा कच्चे काजू का आयात
दूसरी ओर देश में काजू की 60 फीसदी खपत आयात ( Import) के जरिए पूरी की जाती है. क्योंकि देश में खपत के मुकाबले काजू का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है. ऐसी हालत में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अफ्रीका से कच्चे काजू का आयात किया जाता है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2021-22 में भारत ने 7.5 लाख टन काजू का उत्पादन किया. वहीं इस दौरान कच्चे काजू का आयात 9.39 लाख टन रहा. माना जा रहा है कि देश में जिस हिसाब से काजू की खपत बढ़ रही है जल्द ही आयात 10 लाख टन को पार कर जाएगा.
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काजू की व्यक्तिगत खपत महज 10-15 फीसदी
DCCD के मुताबिक देश में काजू की प्रोसेसिंग कैपेसिटी भी 18 लाख टन पहुंच गई है. एक साल पहले तक यह 15 लाख टन थी. काजू की ज्यादातर खपत उद्योगों में होती है. इसकी व्यक्तिगत खपत महज 10-15 फीसदी ही होती है. यहा कारण है कि फिलहाल देश में काजू की मांग के अनुरूप अभी कीमतों में ज्यादा उछाल नहीं दिखा है. अभी 950-1,200 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाला प्रीमियम काजू तोक बाजार में 700-850 रुपये के भाव बिक रहा है. इतना ही नहीं सामान्य तौर पर काजू का थोक भाव अभी 550-650 रुपये प्रति किलोग्राम तक है.
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