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Brain Dead युवक ने बचाई 8 जिंदगी, जानें- देश में अंगदान का पूरा हाल

सफदरजंग अस्पताल ( Safdarjung Hospital, Delhi ) में एक ब्रेन डेड युवक ने सात-आठ लोगों को नया जीवन दे दिया. अस्पताल में पांच साल के लंबे अंतराल के बाद कैडवर डोनर ( मृत व्यक्ति के अंगदान) से किडनी का सफल ट्रांसप्लांट ( Kidney Transplant ) किया गया.

Updated on: 04 Jun 2022, 03:06 PM

highlights

  • निर्जीव शरीर का दान भी कई लोगों की जान बचा सकता है
  • सफदरजंग अस्पताल में अंगदान से आठ लोगों को नई जिंदगी 
  • भारत में फिलहाल महज तीन फीसदी रजिस्टर्ड ऑर्गन डोनर हैं

नई दिल्ली:

'वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।'  श्रीमदभगवदगीता ( Srimad Bhagavad Gita) के दूसरे अध्याय के 22वें श्लोक के अनुसार ' मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चला जाता है.' हिंदू धर्म को मानने वाले किसी की मृत्यु होने के बाद संवेदना जताने के लिए इस श्लोक को दोहराते हैं. वहीं, आत्मा के शरीर छोड़ने के बाद निर्जीव शरीर भी कई दूसरे प्राणों को बचा सकता है.

इस लिहाज से देहदान और अंगदान ( Organ and Body Donation )  का चलन मेडिकल जगत में नई क्रांति ला रहा है. फ्रांस में हर व्यक्ति ऑर्गन डोनर है. वहीं, ईरान और स्पेन में विश्व में सबसे अधिक अंगदान होते हैं. भारत में भी अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ रही है. हाल ही में नोएडा में सड़क हादसे के शिकार एक 38 साल के युवक राकेश प्रसाद के ब्रेन डेड होने पर उनके परिवार के अंगदान के निर्णय ने सफदरजंग अस्पताल ( Safdarjung Hospital, Delhi ) में सात-आठ लोगों को नया जीवन दे दिया. अस्पताल में पांच साल के लंबे अंतराल के बाद कैडवर डोनर ( मृत व्यक्ति के अंगदान) की मदद से किडनी का सफल ट्रांसप्लांट ( Kidney Transplant ) किया गया.

सफदरजंग अस्पताल में 5 साल बाद ऑपरेशन

सड़क हादसे के शिकार युवक के किडनी दान से हर सप्ताह तीन डायलिसिस करवाने पर मजबूर 40 साल की एक महिला मरीज को बेहतर जीवन की उम्मीद मिली है. सफदरजंग अस्पताल में साल 2016 में हादसे में जान गंवाने वाले डोनर से मिली किडनी के ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा शुरू की गई थी. ऑपरेशन की अगुवाई करने वाले नेफ्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. हिमांशु वर्मा ने बताया कि साल 2017 में तकनीकी कारणों से अस्पताल में कैडेवर डोनर किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन बंद हो गया था. सिर्फ रिश्तेदारों के अंगदान वाले ट्रांसप्लांट ही किए जा रहे थे. बीच में कोविड-19 महामारी की वजह से भी रुकावट जारी रही.

रोबोटिक सर्जरी में नाकामी की आशंका बेहद कम

सफदरजंग अस्पताल के यूरोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. अनुप कुमार ने बताया कि सफल किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज रीता झा की सेहत में उम्मीदों के मुताबिक सुधार हो रहा है. उन्होने बताया कि यहां रोबोटिक सर्जरी भी की जाती है. इसमें नाकामी की आशंका बेहद कम है. वहीं, डॉ. संजय सूद ने बताया कि ऐसे ट्रांसप्लांट बेहद चुनौतीपूर्ण होते हैं और ऑपरेशन हमेशा रात में किए जाते हैं. इससे पहले डोनर और रिसीवर के बहुत तरह की जांच करने पड़ते हैं. चार-पांच रिसीवर में एक सबसे सटीक का चयन किया जाता है. वहीं, ट्रांसप्लांट के बाद भी कई दिनों तक मरीज की निगरानी करनी पड़ती है. 

भारत में अंगदान को लेकर बढ़ रही है जागरुकता

भारत में साल 2010 से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) की ओर से हर साल 27 नवंबर को ‘राष्ट्रीय अंग दान दिवस’ (National Organ Donation Day) मनाया जाता है.  इसका मकसद लोगों को अंगदान के लिए जागरूक करना और स्वास्थ्य सेवा और मानव हित में मृत शरीर के निस्वार्थ योगदान को बढ़ावा देना है. एक अनुमान के मुताबिक, देश में प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 0.65 अंगदान होते हैं. इसकी तुलना में स्पेन में 35 और अमेरिका में 26 अंगदान किया जाता है. भारत में फिलहाल महज तीन फीसदी रजिस्टर्ड ऑर्गन डोनर (Organ Donor) हैं.

कोविड-19 महामारी की वजह से भी घटा अंगदान

कोविड -19 महामारी (COVID19 Pandemic) के चलते बीते दो सालों में भारत सहित दुनिया भर में अंगदान में भारी कमी दर्ज की गी. द लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक उच्च संक्रमण दर वाले देशों में अंग दान (Organ Donation) में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट देखी गई. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों में जाने से बचने की वजह से यह बढ़कर 70 फीसदी तक हो गई. देश में सरकार के अलावा कई गैर सरकारी संगठन और सार्वजनिक संगठन इस बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

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देश में अंगदान की आवश्यकता और उपलब्धता

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS)की ओर से साल 2019 में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल 1.5-2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन लगभग 8,000 (4 प्रतिशत) रोगी को मिल पाते हैं. इसी तरह, हर साल लगभग 80,000 रोगियों को लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 1,800 ही ट्रांसप्लांट किए जाते हैं. लगभग 1 लाख रोगियों को सालाना कॉर्नियल या आई ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन आधे से भी कम लोगों को ही मिल पाते हैं. 10 हजार हृदय रोगियों को हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) की आवश्यकता होती है. उनमें से केवल 200 ही अंगदाताओं के साथ मेल खाते हैं.