logo-image

अमेरिका ने अब चीन को घेरने चला नया दांव, उइगर मुसलमान बनेंगे तुरुप का इक्का

अमेरिका ने अब चीन को उइगर (Uighur) मुसलमानों के उत्पीड़न पर घेरने का खाका बना लिया है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने उइगर मुस्लिमों के जिम्मेदार अधिकारियों पर प्रतिबंध (Sanctions) लगाने वाले कानून को भारी बहुमत से मंजूरी दे दी है.

Updated on: 28 May 2020, 08:58 AM

highlights

  • कोरोना संक्रमण पर चीन को घेरने के बाद अमेरिका का नया दांव.
  • अब उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर बहुमत से पास किया बिल.
  • इसकी मदद से चीन पर नए सिरे से प्रतिबंध लगा सकेगा अमेरिका.

नई दिल्ली:

अमेरिका (America) ने चीन को हर मोर्चे पर घेरने की कवायद तेज कर दी है. कोरोना संक्रमण (Corona Virus) के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में जवाबदेही तय करने के लिए प्रस्ताव पेश करने के बाद अमेरिका ने अब चीन को उइगर (Uighur) मुसलमानों के उत्पीड़न पर घेरने का खाका बना लिया है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने उइगर मुस्लिमों के जिम्मेदार अधिकारियों पर प्रतिबंध (Sanctions) लगाने वाले कानून को भारी बहुमत से मंजूरी दे दी है. अमेरिका के इस मुस्लिम कार्ड (Muslim Card) से उन तमाम देशों की आवाज और मुखर हो जाएगी, जो फिलहाल चीन (China) की दबंगई के चलते उइगर मुसलमानों पर हो रहे जुल्म को लेकर खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं. जाहिर है इससे पाकिस्तान (Pakistan) के वजीर-ए-आजम इमरान खान (Imran Khan) की 'मुस्लिम सियासत' पर भी विपरीत असर पड़ेगा, जो भारतीय मुसलमानों को लेकर तो वैश्विक मंचों पर दुष्प्रचार करते आ रहे हैं, लेकिन उइगर मुसलमानों पर चुप्पी साधे रहते हैं.

उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न के जिम्मेदार अधिकारियों पर लगेगा प्रतिबंध
उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न के जिम्मेदार अधिकारी पर प्रतिबंध का रास्ता साफ करता यह बिल अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में भारी बहुमत से पास हुआ. इस बिल के लिए हुए मतदान में इसके पक्ष में 413 वोट पड़े, जबकि महज एक वोट विरोध में पड़ा. सीनेट में बिल के पारित होने के बाद अब चीन पर उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए प्रतिबंध लगाया जा सकेगा. इसकी दायरे में सबसे पहले शिनजियांग के शीर्ष कम्युनिस्ट अधिकारी चेन क्वांगो की गरदन आएगी. इसके साथ ही उन कंपनियों और उनके निदेशकों पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा, जिन्होंने शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के लिए डिटेंशन कैंप बनाए हैं. सीनेट में बहुमत से पारित होने के बाद अब इस बिल को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी के लिए व्हाइट हाउस भेजा गया है.

यह भी पढ़ेंः मोदी है तो मुमकिन है... लड़ने को तैयार चीन के बदले सुर, सीमा पर भारतीय सेना अड़ी

शिनजियांग की सीमा मिलती है आठ देशों से
इस्लाम को मानने वाले उइगर समुदाय के लोग चीन के सबसे बड़े और पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग प्रांत में रहते हैं. इस प्रांत की सीमा मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के साथ-साथ चीन के गांसू एवं चिंघाई प्रांत एवं तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से मिलती है. तुर्क मूल के उइगर मुसलमानों की इस क्षेत्र में आबादी एक करोड़ से ऊपर है. इस क्षेत्र में उनकी आबादी बहुसंख्यक थी, लेकिन जबसे इस क्षेत्र में चीनी समुदाय हान की संख्या बढ़ी है और सेना की तैनाती हुई है तब से यह स्थिति बदल गई है.

उइगुर का इतिहास
करीब दो हजार साल तक आज के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र पर एक के बाद एक खानाबदोश तुर्क साम्राज्य ने शासन किया. उनमें उइगुर खागानत प्रमुख है जिसने आठवीं और नौवीं सदी में शासन किया. उइगुरों ने अपने अलग साम्राज्य की स्थापना की. मध्यकालीन उइगुर पांडुलिपि में उइगुर अली का उल्लेख है जिसका मतलब होता है उइगुरों का देश. उइगुर का चीनी इतिहास 1884 में शुरू होता है. चिंग वंश के दौरान इस क्षेत्र पर चीन की मांचू सरकार ने हमला किया और इस इलाके पर अपना दावा किया. फिर इस क्षेत्र को शिनजियांग नाम दिया गया जिसका चीनी भाषा मैंड्रिन में अर्थ होता है 'नई सीमा' या 'नया क्षेत्र'. 1933 और 1944 में दो बार उइगुर अलगाववादियों ने स्वतंत्र पूर्वी तुर्किस्तान गणराज्य की घोषणा की. 1949 में चीन ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया और 1955 में इसका नाम बदलकर शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र कर दिया.

यह भी पढ़ेंः भारत में अभी तक की सबसे भयंकर मंदी की आशंका, इस बड़ी रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट

हान समुदाय ने बदली क्षेत्र की डेमोग्राफी
बीते कुछ समय के दौरान इस क्षेत्र में हान चीनियों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई है. उइगरों का कहना है कि चीन की वामपंथी सरकार हान चीनियों को शिनजियांग में इसीलिए भेज रही है कि उइगरों के आंदोलन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' को दबाया जा सके. चीनी सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियां भी कुछ ऐसा ही दर्शाती हैं. शिनजियांग प्रांत में रहने वाले हान चीनियों को मजबूत करने के लिए चीन सरकार हर संभव मदद दे रही है यहां तक कि इस क्षेत्र की नौकरियों में उन्हें ऊंचे पदों पर बिठाया जाता है और उइगुरों को दोयम दर्जे की नौकरियां दी जाती हैं. कुछ जानकार चीनियों को नौकरियों में ऊंचे पदों पर बिठाने का एक कारण यह भी मानते हैं कि सामरिक दृष्टि से शिनजियांग प्रांत चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और ऐसे में चीनी सरकार ऊंचे पदों पर विद्रोही रुख वाले उईगरों को बिठाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती.

उइगरों और हान चीनियों के बीच हिंसक झड़पें
चीन की वामपंथी सरकार के इस रुख के चलते इस क्षेत्र में हान चीनियों और उइगरों के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं. 2008 में शिनजियांग की राजधानी उरुमची में हुई हिंसा में 200 लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश हान चीनी थे. इसके बाद 2009 में उरुमची में ही हुए दंगों में 156 उइगुर मुस्लिम मारे गए थे, उस समय तुर्की ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए इसे एक बड़े नरसंहार की संज्ञा दी थी. इसके बाद 2010 में भी कई हिंसक झड़पों की खबरें आईं. 2012 में छह लोगों को हाटन से उरुमची जा रहे एयरक्राफ्ट को हाइजैक करने की कोशिश के चलते गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने इसमें उइगरों का हाथ बताया. 2013 में प्रदर्शन कर रहे 27 उइगरों की पुलिस फायरिंग में मौत हो गई थी. सरकारी मीडिया का कहना था कि प्रदर्शनकारियों के पास हथियार थे जिस वजह से पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं. इसी साल अक्टूबर में बीजिंग में एक कार बम धमाके में पांच लोग मारे गए जिसका आरोप उइगरों पर लगा. ये भी वे मामले ही हैं जो विदेशी मीडिया की सक्रियता से सामने आ गए वरना माना जाता है कि ऐसे सैकड़ों मामले चीनी सरकार ने दबा दिए.

यह भी पढ़ेंः उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 7 हजार के करीब, अब तक 182 मरीजों की मौत

उइगर मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर भी रोक
इस क्षेत्र में उइगर मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता पर भी सरकार ने अंकुश लगा रखा है. 2014 में शिनजियांग की सरकार ने रमजान के महीने में मुस्लिम कर्मचारियों के रोजा रखने और मुस्लिम नागरिकों के दाढ़ी बढ़ाने पर पाबंदी लगा दी थी. 2014 में ही राष्ट्रपति जिनपिंग के सख्त आदेशों के बाद यहां की कई मस्जिदें और मदसों के भवन ढहा दिए गए. इस साल भी ऐसी खबरें थी कि कोरोना संक्रमण के कारण चीन ने उइगर मुसलमानों के रोजा रखने और आदेश नहीं मानने पर दंड लगाने की धमकी दी थी. इसके अलावा उइगर मुसलमानों को जिन डिटेंशम कैंप में रखा जाता है, वहां कम्युनिस्ट साहित्य पढ़ने को दिया जाता है और उन्हें इस्लाम का परित्याग करने को बाध्य किया जाता है.

चीनी सरकार के साथ तनाव की वजह
शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिम 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' चला रहे हैं जिसका मकसद चीन से अलग होना है. दरअसल, 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान, जो अब शिनजियांग है, को एक अलग राष्ट्र के तौर पर कुछ समय के लिए पहचान मिली थी, लेकिन उसी साल यह चीन का हिस्सा बन गया. 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र की आजादी के लिए यहां के लोगों ने काफी संघर्ष किया. उस समय इन लोगों के आंदोलन को मध्य एशिया में कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला था लेकिन, चीनी सरकार के कड़े रुख के आगे किसी की एक न चली.

यह भी पढ़ेंः कोरोना वायरस और अम्‍फान से निपटने में फेल रही ममता बनर्जी की सरकार : बीजेपी

आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर
चीनी सरकारी मीडिया की बात मानें तो इस सब के लिए उइगरों का संगठन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' दोषी है. सरकार का कहना है कि इस हिंसा के लिए विदशों में बैठे उइगर नेता जिम्मेदार हैं. उसने 2014 में इन घटनाओं के लिए सीधे तौर पर वरिष्ठ उइगर नेता लहम टोहती को जिम्मेदार ठहराया था. इसके अलावा इन घटनाओं में डोल्कन इसा का हाथ बताते हुए उन्हें 'मोस्ट वांटेड' की सूची में रखा गया है. इन मामलों को लेकर चीन में कई उइगर नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया है. वहीं, उइगर नेता और यह संगठन इन सभी आरोपों को झूठा और मनगढ़ंत बताते हैं, उनका कहना है कि इन सभी मामलों के लिए चीनी सरकार दोषी है. जहां तक बाकी दुनिया की बात है तो अमेरिका ने 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' को उइगरों का एक अलगाववादी समूह तो बताया है. लेकिन, उसका यह भी कहना है कि इस समूह में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की क्षमता नहीं है.