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अफगानिस्तान में Taliban-ISKP की जंग, भारत के लिए डबल खतरे की घंटी

आईएस तालिबान राज को अमेरिका का ही छद्म शासन मानता है. ऐसे में अपने नागरिकों समेत हिंदू-सिख धर्म के अफगानी नागरिकों के बचाव अभियान में जुटे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.

Updated on: 27 Aug 2021, 07:30 AM

highlights

  • अफगानिस्तान में Taliban-ISKP के बीच वर्चस्व की जंग शुरू
  • तालिबान राज समेत भारत के खिलाफ हैं आईएसकेपी आतंकी
  • इस गुट में केरल के जिहादी युवा भी बड़ी संख्या में शामिल 

नई दिल्ली:

काबुल (Kabul) के हामिद करजई एयरपोर्ट के बाहर गुरुवार शाम हुए श्रखंलाबद्ध धमाकों ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में आसन्न संकट को और गहरा दिया है. इन धमाकों की जिम्मेदारी आईएसआईएस के खुरासान मॉडल (ISKP) ने ली है. इसके साथ ही यह साफ हो गया है कि अब अफगानिस्तान तालिबान और आईएसआईएस के अफगान चैप्टर के बीच वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र बनेगा. इसे आतंकी संगठन को आईएस-खुरासान प्रांत के नाम से भी जाना जाता है. वर्चस्व की लड़ाई के इस आगाज के खतरे का अंदाजा इस्लामिक स्टेट के मुख पत्र 'अल नभा' के बीते हफ्ते की संपादकीय से लगाया जा सकता है. इस संपादकीय में आईएसआईएस (ISIS) ने अफगानिस्तान पर तालिबान राज की वापसी को 'मुल्ला ब्रेडली प्रोजेक्ट' कहकर खारिज किया था. इसका अर्थ यह निकलता है कि आईएस तालिबान (Taliban) राज को अमेरिका का ही छद्म शासन मानता है. आतंक के इन दो खतरनाक चेहरों के आलोक में कहा जा सकता है कि अपने नागरिकों समेत हिंदू-सिख धर्म के अफगानी नागरिकों के बचाव अभियान में जुटे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि आईएस-केपी से केरल के जिहादी युवाओं का जुड़ाव सामने आ चुका है. फिलहाल मोदी सरकार (Modi Government) 'देखो औऱ इंतजार करो' की नीति पर चल रही है. 

तालिबान राज के खिलाफ है आईएस-केपी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी काबुल के श्रखंलाबद्ध धमाकों के बाद आईएस-खुरासान प्रांत की ओर ही अंगुली उठाई है. यह अलग बात है कि आईएस-केपी ने धमाकों की जिम्मेदारी लेते हुए बेलौस अंदाज में धमकी जारी कर दी है कि तालिबान राज वाले नए अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ जंग जारी रहेगी. यहां यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान अफगानिस्तान पर जल्द से जल्द पूरी तरह कब्जा कर नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहता है. इस कड़ी में उसने अमेरिका तक को चेतावनी जारी कर दी है कि 31 अगस्त के बाद अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में नहीं दिखे. तालिबान की अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित करने की हड़बड़ी का सीधी संबंध आईएस-केपी की मंशा है. गौरतलब है कि आईएस-केपी ने आखिरी आतंकी हमला 8 जून को बगलान में किया था, जब उसके लड़ाकों ने ब्रिटिश चैरिटी हैलो के लिए काम करने वाले 10 लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया था. मरने वाले हजारा समुदाय के थे, जो शिया मुसलमान होते हैं. इसके पहले आईएस-केपी ने काबुल के एक स्कूल में धमाके की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 100 के लगभग बच्चे मारे गए थे. आईएस-केपी तालिबान पर इस्लामी शासन लागू करने को लेकर अविश्वास जाहिर कर चुका है. यही वजह उसे अब खूनी संघर्ष के लिए प्रेरित कर रही है.

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नई ताकत के साथ खड़ा हो रहा है आईएस-केपी
सामरिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान की मौजूदगी के बीच आईएस-केपी मॉड्यूल 2018 से अपना वर्चस्व स्थापित करने की लड़ाई लड़ रहा है. खासकर कुनार और नांगरहार इलाके में आईएस-केपी ने कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया. बीते साल काबुल के एक गुरुद्वारे पर आतंकी हमले के बाद काबुल के एक अस्पताल के जच्चा-बच्चा विभाग में आत्मघाती आतंकी हमले को अंजाम दिया गया था. वॉशिंग्टन स्थित थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर के सौरव सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 आईएस-केपी के लिए आतंकी हमलों के लिहाज से काफी सुस्त साल रहा था. इस साल इस आतंकी संगठन ने अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों में 11 हमले किए थे, जबकि 2019 में इसी मॉड्यूल ने 343 आतंकी हमलों को अंजाम दिया था. यह इस बात का परिचायक है कि आईएस-केपी को संसाधनों, जिहादियों और संगठन क्षमता में कमी से जूझना पड़ रहा है. यानी अब आईएस-केपी मॉड्यूल नई शक्ति के साथ तालिबान को चुनौती देने का युद्ध छेड़ चुका है. 

पाकिस्तान की वजह से जन्मा आईएस-केपी
आईएस-केपी का जन्म भी आतंक की धुरी पाकिस्तान की सरपरस्ती में ही हुआ. थिंक टैंक के मुताबिक वजीरिस्तान इलाके में तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ पाकिस्तान जनरल राहिल शरीफ के नेतृत्व में अभियान चलाया जा रहा था. 2014 में तहरीक-ए-तालिबान से अलग होकर कुछ तालिबान लड़ाकों ने आईएस-केपी गुट बनाया. ये बागी लड़ाके मुल्ला फजलुल्लाह उर्फ मुल्ला रेडियो की खिलाफत कर अलग हुए थे. बगावत का नेतृत्व उमर खालिद खुरासानी ने किया था, जिसने मुजाहिदीनों की हत्या के जिम्मेदार ताकतों को तहरीक-ए-तालिबान को बेचने का आरोप लगाया था. उस वक्त इस गुट ने अलग होकर आईएस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी. बाद में इस मॉड्यूल ने लश्कर-ए-जांघवी, लश्कर-ए-इस्लाम और उजबेकिस्तान के इस्लामिक मूवमेंट, चीन के उइगर मुसलमानों और अफगान तालिबान के बागियों के साथ मिलकर कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया.

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आईएस-केपी में केरल के जिहादी शामिल
आतंक का आईएस-केपी चैप्टर भारत के लिए भी बड़ा खतरा है. अपदस्थ अफगान सरकार का आरोप रहा है कि आईएस-केपी वास्तव में पाकिस्तान की देन है, जबकि पाकिस्तान नेतृत्व इसे अफगान भारतीय का धड़ा बताता है. काबुल गुरुद्वारे पर आतंकी हमले के बाद सुरक्षा बलों द्वारा साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किए गए आतंकियों में कश्मीरी आतंकी एजाज अहंगार भी शामिल था. खुफिया सूत्र बताते हैं कि आईएस-केपी ने अपने शिखर के दिनों केरल से लगभग 100 युवकों का ब्रेन वॉश कर उन्हें जिहादी बनाया था. काबुल गुरुद्वारे पर आतंकी हमला करने वाला आतंकी केरल का ही रहने वाला था, जिसे सुरक्षा बलों ने ढेर कर दिया था. आईएस-केपी का यही भारत कनेक्शन भारतीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है.