आम नहीं बहुत खास होते हैं अंतरिक्ष में जाने वाले लोग, जानें क्या आप में भी है वो बात
चलिए आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि अगर आप भी भविष्य में अंतरिक्ष यात्री बन देश दुनिया के लिए कुछ अलग करना चाहते हैं तो आप में क्या खास होना चाहिए.
नई दिल्ली:
हम में से कई लोग अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना रखते हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि एक अंतरिक्ष यात्री बनना कितना कठिन है या कह सकते हैं कि इसके लिए आपकों कितना आम से खास होना होगा. तो चलिए आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि अगर आप भी भविष्य में अंतरिक्ष यात्री बन देश दुनिया के लिए कुछ अलग करना चाहते हैं तो आप में क्या खास होना चाहिए.
क्या है 'द राइट स्टफ'
मसलन आप में तुरंत फ़ैसला करने की क़ाबिलियत होनी चाहिए. आपकी सेहत आम लोगों के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर होनी चाहिए. दबाव होने के बावजूद आपका ज़हनी सुकून डगमगाना नहीं चाहिए. एक अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए ये चंद बुनियादी बातें हैं जिन्हें 'द राइट स्टफ़' कहा जाता है.
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क्या हैं शर्तें
आम तौर से अंतरिक्ष यात्री एयरफ़ोर्स के बेहतरीन पायलट होते हैं. 1950 में नासा ने भी अपना पहला अंतरिक्ष यात्री एयरफ़ोर्स के पायलट को ही चुना था. यही काम सोवियत संघ ने भी किया था.
फर्क सिर्फ इतना था कि सोवियत संघ ने इस क्षेत्र में महिलाओं को भी शामिल कर लिया था. साथ ही लंबाई की बंदिश लगा दी. यानी किसी भी अंतरिक्ष यात्री की लंबाई पांच फीट छह इंच से ज़्यादा नहीं हो सकती थी. करीब 60 साल से रिसर्च के लिए इंसान अंतरिक्ष में जा रहे हैं. लेकिन वहां जाने के लिए शर्तें आज भी वही हैं.
मिसाल के लिए 2009 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपने यहां 6 अंतरिक्ष यात्री भर्ती किए. इनमें से 3 फ़ौज के पायलट हैं. एक पेशेवर पायलट है. एक स्काई डाइवर है. जबकि, एक पर्वतारोही है.
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आसान नहीं है अंतरिक्ष में रह पाना
कोशिश यही रहती है कि बेहतरीन लोगों को ही अंतरिक्ष में भेजा जाए. लेकिन आम इंसान का अंतरिक्ष में रह पाना आसान नहीं होता है. धरती से दूर अंतरिक्ष में रहने वाले बनावटी सांसों के सहारे जीते हैं. उन्हें ब्रह्मांड में मौजूद रेडिएशन झेलना पड़ता है. इसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है. शरीर कमज़ोर पड़ने लगता है. हर समय मतली महसूस होती रहती है. आंखें कमज़ोर हो जाती हैं. कमज़ोरी इतनी बढ़ जाती है कि बीमारियों से लड़ने की क़ुव्वत नहीं रहती.
क्या होती हैं परेशानियां?
अंतरिक्ष यात्री ल्यूका परमितानो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क़रीब साढ़े पांच महीने रहे. वो कहते हैं कि जैसे-जैसे दिन गुज़रते जाते हैं, आपकी टांगें ख़ुद आपको ही कमज़ोर और पतली महसूस होने लगती हैं. चेहरा गोल होने लगता है. वापस धरती पर आने के बाद भी नॉर्मल होने में काफ़ी समय लग जाता है.
अंतरिक्ष में शुरुआत के दिनों में एक ही दिशा में चलना पड़ता है. छह महीने बाद आप धीरे-धीरे दूसरी दिशाओं में घूमना शुरू कर देते हैं. स्पेस स्टेशन की जगह को पहचानना शुरू करते हैं.
ज़ीरो गुरुत्वाकर्षण की वजह से अंतरिक्ष यात्री हवा में ही झूलते रहते हैं. लिहाज़ा आपकी टांगों का कोई काम नहीं रहता. अंतरिक्ष में बहुत लंबे समय तक टिक पाना आसान नहीं है.
अंतरिक्ष यात्री वैलेरी पोलियाकोव ने अब तक अंतरिक्ष में सबसे लंबा समय गुज़ारा है. वो 437 दिन तक अंतरिक्ष में रहे. हालांकि विचार किया जा रहा है कि अंतरिक्ष में ही ऐसी व्यवस्था की जाएं जहां रिसर्चर फिट रह सकें. इसके लिए सबसे अहम है, उन्हें रेडिएशन से बचाना. साथ ही उनके लिए लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम की व्यवस्था होना भी ज़रूरी है. इस सिलसिले में कई वर्कशॉप भी की जा चुकी हैं.
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