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गर्मी में और भी आ सकते हैं भूकंप के झटके, वजह है चौकाने वाली

इसकी वजह से हमें गर्मियों (Summer) में ज्यादा झटके महसूस हो सकते हैं जिसके लिए सतर्क रहने की जरूरत है.

Updated on: 28 Apr 2021, 03:31 PM

highlights

  • 2021 में देश में भूकंपों का खतरा बढ़ रहा है
  • गर्मियों में धरती के अंदर गतिविधियां बढ़ती हैं
  • पिछले साल भारत की धरती 965 बार हिली है

नई दिल्ली:

28 अप्रैल की सुबह असम (Assam) के गुवाहाटी समेत पूर्वोत्तर राज्यों में भूकंप (Earthquakes) का एक बड़ा झटका महसूस किया गया. 7.51 बजे पर आए इस भूकंप की तीव्रता 6.4 बताई जा रही है. भूकंप का केंद्र असम का सोनितपुर है. भूकंप के बाद जमीन में उठ रही लहरें कई मिनटों तक महसूस की गई हैं. असम में इस महीने यह दूसरा बड़ा झटका है. इससे पहले 5 और 6 अप्रैल को 5.4 और 2.7 तीव्रता का भूकंप आया था. गौरतलब है कि 2021 में देश में भूकंपों का खतरा बढ़ रहा है. खासकर जब कि ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट की तरफ खिसक रही है. इसकी वजह से हमें गर्मियों (Summer) में ज्यादा झटके महसूस हो सकते हैं जिसके लिए सतर्क रहने की जरूरत है. 

गर्मी में बढ़ जाती है धरती के अंदर गतिविधियां
वैज्ञानिकों के अऩुसार गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है. ऐसे मौसम में अक्सर धरती के अंदर गतिविधियां बढ़ जाती हैं. कई बार दो टेक्टोनिक प्लेटों की बीच में बनी गैस या प्रेशर जब रिलीज होता है तब भी हमें भूकंप के झटके महसूस होते हैं. ये हालात गर्मियों में ज्यादा देखने को मिलते हैं. इस साल फरवरी में भी आधा भारत भूकंप के झटके से हिल गया था. 12 फरवरी की रात आए भूकंप के बाद अभी शांति थी, लेकिन अचानक इस तीव्रता का भूकंप ये बताता है कि धरती में गतिविधियां बढ़ रही हैं.

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बीते साल 965 बार हिली धरती
पिछले साल एक जनवरी से 31 दिसंबर तक भारत की धरती 965 बार हिली है, जो कि एक चौंकाने वाली बात है और देश के विज्ञान, तकनीकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने खुद यह बात संसद में स्वीकार की है. भूकंपों के ट्रेंड को देख कर लगता है कि भूकंप से सबसे ज्यादा असुरक्षित शहरों में दिल्ली प्रमुख है. पिछले साल लगे 965 झटकों में 13 सिर्फ दिल्ली एनसीआर में आए और ये सभी तीन तीव्रता के ऊपर के थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि 2021 में भूकंप का बड़ा झटका दिल्ली की गगनचुम्बी इमारतों को हिला सकता है.

समझें प्लेट टैक्टॉनिक सिद्धांत को
भूगर्भ विज्ञान के अऩुसार धरती के भीतर कई प्लेटें होती हैं जो समय-समय पर विस्थापित होती हैं. इस सिद्धांत को अंग्रेजी में प्लेट टैक्टॉनिक और हिंदी में प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं. इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत लगभग 80 से 100 किलोमीटर मोटी होती है जिसे स्थल मंडल कहते हैं. पृथ्वी के इस भाग में कई टुकड़ों में टूटी हुई प्लेटें होती हैं जो तैरती रहती हैं. सामान्य रूप से यह प्लेटें 10-40 मिलिमीटर प्रति वर्ष की गति से गतिशील रहती हैं. हालांकि इनमें कुछ की गति 160 मिलिमीटर प्रति वर्ष भी होती है. भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है. इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है. भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है.

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भारतीय उपमहाद्वीप में कई जगह खतरा
भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का खतरा हर जगह अलग-अलग है. भारत को भूकंप के क्षेत्र के आधार पर चार हिस्सों जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5 में बांटा गया है. जोन 2 सबसे कम खतरे वाला जोन है तथा जोन-5 को सर्वाधिक खतनाक जोन माना जाता है. उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं. उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं. मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं.

आर्कटिक की बढ़ती गर्मी भी ला सकती है तीव्र भूकंप
अब एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में लगातार बढ़ती गर्मी से भी विनाशकारी भूकंप आ सकते हैं. आर्कटिक के प्रेमाफ्रोस्ट और शेल्फ जोन से मीथेन गैस का रिसाव सबसे ज्यादा होता है. जलवायु का गर्म करने में इस गैस भूमिका सर्वाधिक रहती है. प्रेमाफ्रोस्ट ऐसे क्षेत्र को कहते हैं जो दो या उससे अधिक वर्षो तक बर्फ से ढका रहे और शेल्फ जोन से आशय ऐसे महाद्वीपीय इलाके से है जो जल के भीतर समुद्रतल से कम ऊंचाई पर स्थिति हो. ऐसे इलाकों में पानी की गहराई कम होती है.

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एक सदी में दो बार बढ़ा आर्कटिक का तापमान
जब से शोधकर्ताओं ने आर्कटिक की निगरानी शुरू की है तब से दो बार अचानक गर्मी बढ़ने के मामले देखे गए. पहला मामला पिछली सदी के दूसरे और तीसरे दशक के बीच और दूसरा मामला पिछली सदी के आठवें दशक बाद शुरू हुआ जो आज तक जारी है. इस अध्ययन में रूस के मकाऊ इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता लियोपोल्ड लॉबकोवस्की ने कहा कि अचानक तापमान में बदलाव भू-आवेग (जियो-डायनामिक) कारकों को प्रभावित कर सकते हैं. विशेष रूप से उन्होंने अलेउतियन आर्क में बड़े भूकंपों की एक श्रृंखला की ओर भी इशार किया, जो आर्कटिक के सबसे नजदीक स्थिति एक ज्वालामुखी क्षेत्र है. 

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